रथ यात्रा प्रतिबंध के 18 जून के आदेश के समय धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की बात करने वाले संविधान के अनुच्छेद 25 की दुहाई देने वाला सुप्रीम कोर्ट 22 जून को धार्मिक बराबरी के इस अधिकार को चार दिन में ही भूल जाता है।

रथ यात्रा प्रतिबंध के 18 जून के आदेश के समय धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की बात करने वाले संविधान के अनुच्छेद 25 की दुहाई देने वाला सुप्रीम कोर्ट 22 जून को धार्मिक बराबरी के इस अधिकार को चार दिन में ही भूल जाता है।
June 27 12:32 2020

 

पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा : सुप्रीम कोर्ट ने मारी पलटी

अजातशत्रु

जैसा कि उम्मीद थी, पलटी मारते हुये सुप्रीम कोर्ट ने उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी शहर में हर साल आयोजित की जाने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा आयोजित करने की इजाजत दे दी है। भगवान जगन्नाथ यानी श्री कृष्ण, उनके भाई बलभद्र (यानी बलराम) और बहन सुभद्रा की यह रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ के शुक्लपक्ष की द्वितीया को आयोजित की जाती और यह उत्सव 10-12 दिन चलता है। इस साल यह यात्रा 23 जून को आयोजित की गई। इसमें तीन रथों पर इन तीनों की प्रतीक मूर्तियों को बिठाकर पूरे नगर की सैर करवाई जाती है। यात्रा लगभग पांच किलोमीटर तक की होती है और इसमें रथों को श्रद्धालुओं द्वारा ही खींचा जाता है। रथ यात्रा के लिये हर वर्ष नये भव्य रथ तैयार किये जाते हैं।

बता दें कि ये रथ तैयार करने की प्रक्रिया एक-डेढ महीने पहले ही शुरू हो चुकी थी जबकि अखिल भारतीय स्तर पर लॉकडाउन लागू था। इससे सम्बन्धित कुछ उत्सव भी इस दौरान मनाये गये। जबकि केन्द्र सरकार के निर्देशानुसार सारे देश में सभी धार्मिक संस्थान कोरोना महामारी के कारण 30 जून तक बंद थे। जगन्नाथ मंदिर भी इसी कारण से बंद था लेकिन आश्चर्य की बात है कि यात्रा के लिये नये रथ बनाने का काम जारी था। ये देखते हुये और रथ यात्रा आयोजित होने और उसकी भीड़ से कोरोना के भयंकर प्रसार की आशंका के मद्देनजर उड़ीसा विकास परिषद ने हाईकोर्ट में एक एक याचिका दायर कर इस रथ यात्रा को रोकने की मांग की। उड़ीसा सरकार ने हाई कोर्ट में ये बताते हुये कि पुरी ‘हाई रिस्क जोन’ में है यात्रा आयोजित न करने का पक्ष लिया जबकि केन्द्र सरकार ने ढुलमुल रवैया अपनाया।

हालांकि हाईकोर्ट ने अपने 9 जून के आदेश में यात्रा पर खुद कोई प्रतिबन्ध तो नहीं लगाया लेकिन राज्य सरकार को, कोरोना संक्रमण के फैलाव की आशंका और 30 जून तक सभी धार्मिक स्थलो को बंद रखने और सभी धार्मिक उत्सवों पर प्रतिबंध के चलते, उचित कदम उठाने को कहा। इस आदेश के विरोध में जगन्नाथ संस्कृति जागरण मंच ने सुप्रीम कोर्ट में जगन्नाथ रथ यात्रा की अनुमति के लिये याचिका दायर कर दी। इस याचिका पर सुनवाई करने के बाद मुख्य न्यायधीश एस ए बोबड़े की तीन सदस्यीय पीठ ने 18 जून को दिये अपने फैसले में इस रथ यात्रा पर रोक लगा दी।

अपने निर्णय में चीफ जस्टिस ने कहा था कि ‘‘यदि हमने इस साल रथ यात्रा की इजाजत दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे। महामारी के दौरान इतना बड़ा समागम नहीं हो सकता है।’’

कोर्ट ने अपने आदेश में उड़ीसा सरकार से यह भी कहा कि कोरोना वायरस को फैलनेे से रोकने के लिये राज्य में कहीं भी यात्रा, तीर्थ या इससे जुड़ी गतिविधियों की इजाजत न दें। लेकिन 22 जून को भगवान जगन्नाथ  ने कोर्ट को माफ कर दिया और उन्होंने 18 जून के अपने ही आदेश को पलटते हुए 23 जून को शुरू होने वाली रथ यात्रा की इजाजत दे दी। अलबत्ता अपनी इज्जत ढांपने को कुछ शर्तो के साथ। कोर्ट ने अपने आदेश में शर्तें लगायी थी कि एक रथ के साथ 500 से ज्यादा आदमी न हों, दो रथों के बीच में एक घण्टे का अंतराल हो, सभी भाग लेने वाले अधिकारी और पुजारी आदि कोरोना नेगेटिव हों, पूरे शहर की बॉर्डर सील कर दी जायें, शहर में 22 तारीख की रात आठ बजे से ही कफ्र्यू लगा दिया जाये, किसी भी शर्त के उल्लंघन की स्थिति में यात्रा को तुरन्त रद्द कर दिया जाये आदि। स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने उलटबांसी की है उससे होने वाली फजीहत से ध्यान हटाने के लिये यह दिखावा मात्र है। वास्तव में ये निर्णय लेने का काम सरकार का है कोर्ट का नहीं कि महामारी के चलते उसे नियंत्रित करने के लिये क्या कदम उठाये जायें। पर जब कोई उनकी बला अपने सिर लेने को तैयार हों, जब एक राज्य सभा सीट के बदले अपनी इज्जत बेचने को तैयार हो, तो सरकार को क्या जरूरत है अपनी फजीहत करवाने की। वरना तो सुप्रीम कोर्ट को हाई कोर्ट की तरह ही ये निर्णय राज्य और केन्द्र सरकार पर छोड़ देना चाहिए था।

जब तबलीगी जमात इकठ्ठा होती है तो उससे कोरोना फैलता है और सरकार तुरन्त कार्यवाही करती है उन पर मुकदमे बनाती है, उन्हें टीवी और रेडियो पर जलील करती है, पर जब रथ यात्रा के श्रद्धालु इकट्ठे होते हैं तो सुप्रीम कोर्ट बताती है कि कैसे ये समागम आयोजित करना है। जब ईद आती है तो मस्जिदों में  इकठ्ठा होकर नमाज पढ़ने से कोरोना फैलता है, लॉकडाउन टूटता है इसलिये सरकार उसकी इजाजत नहीं दे सकती लेकिन पांच-पांच सौ की भारी भीड़ को रथ खींचने की इजाजत तो सुप्रीम कोर्ट दे ही सकता है। लॉकडाउन में रथ निर्माण का कार्य कैसे चल रहा था, ये सवाल सरकार तो न पूछे लेकिन सुप्रीम कोर्ट भी बड़े आराम से इससे कन्नी काट लेता है। धारा 370 और महत्वपूर्ण संवैधानिक मुकदमों से छ: महीने से मुंह छुपाये बैठे सुप्रीम कोर्ट को रथ यात्रा जैसे महत्वहीन मामले में एक सप्ताह में दो बार निर्णय देते देखकर स्पष्ट हो जाता है कि उसकी प्राथमिकता क्या है। जैसे कि चीफ जस्टिस बोबड़े अपने पद भार ग्रहण करते वक्त कह चुके हैं कि हमें सरकार के साथ मिलकर काम करना है, टकराव से नहीं। इसलिये जहां भी सरकार को मदद की जरूरत होती है कोर्ट हाजिर हो जाता है। इसलिये रथ यात्रा प्रतिबंध के 18 जून के आदेश के समय धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की बात करने वाले संविधान के अनुच्छेद 25 की दुहाई देने वाला सुप्रीम कोर्ट 22 जून को धार्मिक बराबरी के इस अधिकार को चार दिन में ही भूल जाता है।

कोर्ट अपने आदेश के पक्ष में तर्क देता है कि पहले (18 जून को) सरकार ने बिना भीड़ के यह यात्रा आयोजित करने में असमर्थता जाहिर की थी लेकिन अब उन्होंने पब्लिक या भीड़ के बिना यह आयोजित करने का आश्वासन दिया है, इसलिये अब इसकी अनुमति दी जाती है। यानी आर्टिकल 25 के अनुसार दूसरे धर्मों को उनके त्योहार मनाने की छुट नहीं दी जा सकती चाहे कम लोग हाजिर हों लेकिन हिन्दूओं को दी जा सकती है। आपके अनुसार 500 आदमी भी भीड़ नहीं होते जबकि ईद पर पांच से ज्यादा आदमी भी भीड़ होते हैं, गुड फ्राइडे पर भी। और पुरी में 500 आदमियों के इकठ्ठा होने पर भी कफ्र्यू नही टूटता जबकि बाकि जगह पर एक आदमी पर भी टूट जाता है।

अगर आप संविधान की रक्षा नहीं करेंगे मीलॉर्ड तो वक्त पडऩे पर ये भी आपकी रक्षा नहीं कर पायेगा। राज्य सभा की कुर्सी का लालच आप को और देश को, दोनों को ले डूबेगा।

 

 

 

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Mazdoor Morcha
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