ताली, थाली और मदारी
अब मज़दूरों पर जूत बजाने की बारी
दिल्ली और बड़े शहरों से गरीब मज़दूरों का लाखों की संख्या में अपने गांवों घरों की ओर सफर जारी है। अचानक की गयी देशबन्दी से बर्बाद, बेसहारा और अपने ही रहमों करम पर छोड़ दिये गये लोग सैंकड़ों मील की यात्रा भूखे प्यासे आगे करने को मजबूर हैं। मदारी ने रात आठ बजे 24 मार्च को डुगडुगी बजा दी ओर कहा देश बंद। सब अपने-अपने घरों में बैठो। आज से लगभग साढे तीन साल पहले भी रात आठ बजे 8 नवम्बर 2016 को इस मदारी ने डुगडुगी बजायी थी और कहा था हजार रुपये और पांच सौ के नोट बन्द। कागज के टुकड़े होंगे अब ये। तब भी लोगों ने बड़ी तालियां पीटी थी और मदारी के इस जादू की तारीफ की थी। उनको विश्वास था कि इससे कालाधन खत्म होगा और उनकी जिन्दगी बेहतर होगी। लोग चुपचाप परेशानी झेलते रहे, नोट बदलवाने के लिये लाईन में लगकर पुलिस की लाठियां खाते रहे। और सबकुछ सहकर अगर परिणाम कुछ अच्छा निकलता तो कोई बात नहीं थी। लेकिन आज साढे तीन साल बाद भी स्थिति पहले से बदतर है। इस बीच कई बैंकों को लुटा के मदारी $िफर से अगला मजमा जोड़ चुका है कोरोना का।
चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस अब तक दुनिया भर में पौने छ: लाख से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है। लगभग 25000 लोग मारे जा चुके हैं। चीन ने दिसम्बर 2019 में इस वायरस के फैलने की जानकारी पूरे विश्व को दे दी थी। लेकिन अपने-अपने स्वार्थों के चलते ज्यादातर देशों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। ट्रम्प महोदय तो अमेरिका स्थित भारतीय मूल के लोगों की वोटों के लिये भारत में फरवरी में चुनाव प्रचार करते घूमते रहें और मोदी जी उनकी अगवानी में करोड़ों रुपये खर्च करते रहे। इस बीच मोदी ने न दिल्ली में हुये दंगों की परवाह की और न कोरोना वायरस की। जबकि भारत में कोरोना का पहला केस 30 जनवरी 2020 को त्रिशूर, केरल में पता चल चुका था।
जब मार्च में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसको इमरजेंसी घोषित कर दिया और भारत को इसके बड़े स्तर पर फैलने की चेतावनी दी तब मोदी को कुछ तमाशा करने की सूझी। सो उन्होंने 19 मार्च को घोषणा की कि 22 मार्च को एक दिन का जनता कफ्र्यू लागू किया जायेगा और उसी दिन शाम को पांच बजे सभी लोगों से ताली और थाली बजाकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में लगे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों का धन्यवाद करने को कहा। अपनी आदत के मुताबिक मोदी ने जनता को तो उसके काम और कत्र्तव्य बता दिये पर उनकी सरकार क्या करेगी यह नहीं बताया। ना ही इस बीच सरकार ने कुछ किया। इस बीच 22 से 31 मार्च तक राज्य सरकारों ने ‘लॉकडाउन’ की घोषणा कर दी। पर 24 मार्च को फिर मोदी जी टीवी पर अवतरित हुए और ड्रामेबाज़ी करते हुये पूरे देश को 21 दिन यानी 14 अप्रैल तक बन्द करने की घोषणा कर दी। उनकी इस नौटंकी से देश के करोड़ों लोगों के अनेकों कष्ट झेलने की शुरूआत हुई।
इस पूरे ड्रामे से कुछ सवाल उभरते हैं जिनका जवाब देश की जनता मांग रही है।
अगर सरकार कुछ योजना बनाये, उस पर वास्तव में अमल करे तो लोगों को सरकार पर विश्वास होता है। वो उन योजनाओं को सफल करने के लिय सरकार का सहयोग करते हैं। आपको उसके लिये लाठी चार्ज नहीं करना पड़ता।
अभी तो हाल ये है कि लोग अपने दाने-पानी का इंतजाम करने के लिये घर से बाहर निकलते हैं और पुलिस उन्हें दुश्मनों की तरह कूटती है। फिर हमारी पढी लिखी जनता इनका वीडियो बनाकर चटखारे लेकर इन्हें एक दूसरे को भेजती है। ये अपनी बर्बादी का उत्सव मनाने जैसा माहौल है। उस से भी शर्म की बात है कि पढा लिखा, खाता-पीता मोदी भक्त वर्ग वाट्सएप पर सिर्फ उपदेश पेले जा रहा है-सरकार का साथ दीजिये, मोदी जी का साथ दीजिये, घर पर रहिये, सुरक्षित रहिये।
अरे भाई अगर मेरी सभी जरूरतें घर पर पूरी हो रही हैं तो मुझे कुत्ते ने नहीं काटा कि मैं बाहर जाऊं। पर पहले सरकार अपने इन्तजाम बताये तो। हर बात को ड्रामा करके कहने, झूठ बोलने और खुद लोगों के लिये कुछ न करने के अपने अंदाज के कारण मोदी जी अपनी विश्वसनियता खो चुके हैं। जबकि उनकी भाड़े की सेना, आईटी सेल उनकी छवि उज्जवल करना चाहता है। यही हमारी वर्तमान समस्या है और अगर इसको नहीं सुलझाया गया तो चाहे कुछ भी प्रचार कर लें, $िफर तो मज़दूर वर्ग के जूत बजाने की बारी है। -अजातशत्रु