यह दौर देश के इतिहास के एक अविस्मरणीय काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा ! भारत के इतिहास में प्लेग और स्पेनिश फ्लू से होने वाली मौतों

यह दौर देश के इतिहास के एक अविस्मरणीय काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा ! भारत के इतिहास में प्लेग और स्पेनिश फ्लू से होने वाली मौतों
March 31 11:09 2020

लॉकडाउन में मजदूरों का दिल्ली से पलायन…विशेष रिपोर्ट

जनता मोदी सरकार को कब लॉकडाउन करेगी

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

नई दिल्ली: कोरोना अजीब इत्तफ़ाक़ लेकर आया है। हम तमाम लोगों ने कल्पना की थी कि एनआरसी लागू होने के बाद एक बड़ी आबादी कागज़़ नहीं दिखा पाएगी वो एक शहर से दूसरे शहर और गाँवों की तरफ़ कूच करेगी। कुछ सरहद पार करेंगे। इनके सिरों पर गठरियां और बैग होंगे। कुछ बेहाल होकर दम तोड़ देंगे, कुछ भूख से गिड़गिड़ाएंगे, कुछ धर्म परिवर्तन करके अखंड हिंदू राष्ट्र का हिस्सा बन जाएंगे।

उस नौबत के आने से पहले वैसे ही दृश्य हमें आज दिल्ली उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर दिखाई दे रहे हैं। ये वो मज़दूर वर्ग है जिनकी मेहनत के दम पर अमीर साँस लेते हैं और पूँजीपति दिल्ली-मुंबई में अट्टालिकाएं खड़ा करता है और कोरोना उनके एजेंट रेसकोर्स रोड से लेकर राजपथ तक विचरण करते हैं।

लॉकडाउन से पहले क्यों नहीं सोचा

प्रधानमंत्री मोदी ने जब तीन दिन पहले देश में लॉकडाउन की घोषणा की तो उससे पहले यह नहीं सोचा गया कि दिहाड़ी पर काम करने वाले उन लाखों मज़दूरों का क्या होगा? अमीरों और मतलबपरस्त मिडिल क्लास के लिए सरकार सोशल डिस्टेंसिंग लाई और उनके लिए दुकानें भी खुलवा दीं। लेकिन मज़दूर जब गठरी लादे सडक़ों पर आया तो न उसके लिए बसें थीं, न रेल थी और न सरकार थी।

उसके लिए तमाम जगहों पर पुलिस डंडा बरसाने के लिए ज़रूर मौजूद थी। लेकिन पुलिस की ऐसी करतूतों को छिपाने के लिए गोदी मीडिया फ़ौरन खड़ा नजऱ आया। वह उन फ़ोटो और वीडियो को जारी करता नजऱ आया जिनमें चंद पुलिस वाले कुछ लोगों की मदद करते नजऱ आए।

के नाम पर अभी तक जितनी घोषणाएँ की गईं हैं उसमें अमीरों और मतलबी मध्यम वर्ग को लेकर ही सारी योजनाएँ बनाई गईं। चूँकि मज़दूर वर्ग के संघर्ष का अपहरण कतिपय वामपंथी-दक्षिणपंथी पार्टियाँ या उनके नागपुरी संगठन कर चुके हैं तो ऐसे में उनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है। इन नागपुरी संगठनों के बजाय वो एनजीओ या वो लोग ज़्यादा मददगार साबित हो रहे हैं जो इनके बीच खाना-पानी लेकर पहुँचे।

कुछ लोग उस समय पड़ोसी देशों के विस्थापितों या प्रताड़ितों के लिए सीएए जैसा क़ानून लेकर भी आए थे। लेकिन अपने देश में विस्थापित हो रहे वर्ग को वो लोग भूल गए। ऐसे लोग उनकी शाखा में संख्याबल बढ़ाने के मोहरे बनकर रह गए और अब शहर से कूच करने को मजबूर हुए।

हवाई यात्रा बंद करने के तीन दिन पहले बता दिया गया! और तीन सप्ताह का देशव्यापी लॉकडाउन के लिए रात में मात्र चार घंटे पहले बताया गया! यह हुकूमत जनता के ऊपर कोरोना से भी बड़ा कहर बरपा कर रही है !

टीवी और अखबार में सारी घोषणाएं

देश भर के महानगरों और औद्योगिक क्षेत्रों से मजदूर जिंदा रह पाने के लिए अपने घरों की और निकल पड़े हैं ! इन्हें सैकड़ों या हजारों मील का पैदल सफर तय करके बिहार, झारखंड, पूर्वी उ.प्र., बुंदेलखंड, छत्तीसगढ़, म.प्र., ओडिशा या कर्नाटक के सुदूर क्षेत्र स्थित अपने गाँव पहुँचना है! पूरे देश के बारे में अनुमानत: कहा जा सकता है कि लाखों-लाख मजदूर इस समय सडकों पर हैं, और जो शहरों में बचे रह गए हैं वे अपनी झोंपडिय़ों में भूखे-प्यासे होकर रह गए हैं ! जो भी राहत और बुनियादी जरूरत की चीजों को लोगों तक पहुँचाने संबंधी इंतजामात की घोषणायें हो रही हैं, वे अभी तक 80 प्रतिशत अखबार के पन्नों और टी वी के स्क्रीन तक ही सिमटी हुई हैं ! सडकों पर पुलिस का आतंक राज कायम है !

कोरोना से निपटने में आपराधिक देरी और लापरवाही के बाद मोदी सरकार ने ताबड़तोड़ तुगलकी फरमान जारी करके भारी आबादी को असहनीय आपदाओं और मौत की अंधी घाटी में धकेल दिया है! नागरिकों की व्यापक जाँच का इंतजाम करने में अभी भी हफ्तों का समय लग जाएगा! डाक्टरों के लिए सुरक्षा मास्क और जरूरी सुरक्षा उपकरणों की जरूरत भी कबतक पूरी हो सकेगी, कहा नहीं जा सकता ! जब जाँच ही दूसरे प्रभावित देशों के मुकाबले बहुत छोटे पैमाने पर हो रहे हैं तो कोरोना-प्रभावित लोगों की संख्या के सरकारी आँकड़ों पर तो कत्तई भरोसा नहीं किया जा सकता|

मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही के बाद, इस सनक भरे फरमान ने उसके नोटबंदी जैसे फैसलों को मीलों पीछे छोड़ दिया है| इसकी कीमत देश की आम आबादी आने वाले लम्बे समय तक चुकाएगी ! यह दौर देश के इतिहास के एक अविस्मरणीय काले अध्याय के रूप में याद किया जाएगा ! भारत के इतिहास में प्लेग और स्पेनिश फ्लू से होने वाली मौतों, बंगाल के अकाल की तबाही, देश विभाजन के समय हुई मौतों और विस्थापन तथा गुजरात-2002 के नर-संहार के बाद, इस समय मौतों, विस्थापन और तबाहियों का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है ! कोरोना से भी अधिक कहर सरकार की निरंकुश स्वेच्छाचारिता भरे फैसलों ने बरपा किया है ! महामारी से भी अधिक विकराल आम गरीब आबादी के लिए भुखमरी का खतरा हो गया है !

नर्सिंग होम, प्राइवेट अस्पतालों का अधिग्रहण करो

अभी भी सत्ताधारी अगर सत्ता की अफीम की पिनक में डूबे रहे तो उन्हें जनता के प्रचंड दुर्निवार कोप का सामना करना ही पड़ेगा ! राहत के कुछ अविलम्ब और कठोर कदम उठाने होंगे ! सबसे पहले तो सभी निजी क्षेत्र के अस्पतालों, नर्सिंग होमों और मेडिकल कॉलेजों का सरकार को अविलम्ब अधिग्रहण कर लेना चाहिए ! सभी पाँच-सितारा होटलों और रिसॉर्ट्स का अधिग्रहण करके वहाँ आइसोलेशन वार्ड और क्वैरेन्ताइन वार्ड बना देना चाहिए ! सभी नागरिकों की घर-घर नि:शुल्क जाँच युद्ध स्तर पर शुरू करना चाहिए और इसमें सेना एवं अर्द्धसैनिक बालों के मेडिकल स्टाफ को भी लगा देना चाहिए !

जो मजदूर शहरों से पैदल अपने घरों की ओर जा रहे हैं, उन्हें रास्ते में रुकने-ठहरने और भोजन उपलब्ध कराने के लिए सभी स्कूलों-कॉलेजों की इमारतों, रेलवे और बस स्टेशनों के परिसरों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ! वहीं इन सभी के संक्रमण की जाँच भी की जानी चाहिए और फिर घर पहुँचाया जाना चाहिए ! भारी संख्या में गरीबों के पास न तो अन्त्योदय कार्ड हैं न ही जन-धन खाते ! ऐसी स्थिति में उन तक भोजन, दवाएँ और अन्य सभी राहत सामग्री पहुँचाने के लिए गाँवों और मुहल्लों की नागरिक कमेटियाँ गठित करके उनकी मदद ली जाए ! आम लोगो को दी जाने वाली मदद की राशि में कम से कम दस गुने की बढ़ोत्तरी की जरूरत है ! साथ ही कई और राहत-परियोजनाएँ चलाने की जरूरत है !

मठ, मंदिरों, आश्रमों का अधिग्रहण करो

इसके लिए मठों-मंदिरों और धर्माचार्यों के आश्रमों और पीठों की अकूत संपदा का अधिग्रहण करके उसे जनहित में खर्च करने की जरूरत है ! इसके अतिरिक्त सभी पूँजीपतियों, व्यापारियों और उच्च-मध्य वर्ग पर विशेष संकटकालीन लेवी लगाने की जरूरत है ! एन.पी.आर.-एन.आर.सी. को रद्द करके तथा दिल्ली में सेंट्रल विस्ता के निर्माण के फैसले को रद्द करके उसके लिए निर्धारित सारी रकम कोरोना के मुकाबले में लगाई जानी चाहिए ! सभी मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और नौकरशाहों के वेतन-भत्तों और सुविधाओं में भारी आपातकालीन कटौती की जानी चाहिए ! किसी भी बुर्जुआ लोकतंत्र को आम जन जीवन पर टूट पड़े इतने गंभीर संकट का मुकाबला करने के लिए कम से कम इतना तो करना ही चाहिए !

हमें इन माँगों के पक्ष में हर संभव माध्यम से जनमत तैयार करना चाहिए और इस सरकार पर दबाव बनाना चाहिए !

 

 

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Mazdoor Morcha
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