यहां तो हालत ये है कि हमारे सैनिक अपना ही पैसा वापिस लेने के लिये भिखारियों की तरह अफसरों की मिन्नतें करते घूम रहे हैं

यहां तो हालत ये है कि हमारे सैनिक अपना ही पैसा वापिस लेने के लिये भिखारियों की तरह अफसरों की मिन्नतें करते घूम रहे हैं
July 11 09:06 2020

न पैसे वापिस देंगे न मकान देंगे सैनिकों की कष्ट कमाई पर हाऊसिंग बोर्ड का डाका

अजातशत्रु

रोज देशभक्ति का राग अलापने वाली भाजपा के ही राज में हरियाणा हाऊसिंग बोर्ड, सैनिकों के करीब 1000 करोड़ रुपये दबाये बैठा है और कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही। सैनिक हर दफ्तर में और मंत्रियों, मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

हरियाणा हाऊसिंग बोर्ड ने सन् 2014 मार्च में सैनिकों/भूतपूर्व सैनिकों तथा अर्धसैनिक  बलों के जवानों के लिये सस्ते मकान उपलब्ध कराने की एक स्कीम निकाली थी। इसमें 11 जि़लों के 19 शहरों में बनने वाले 13 हजार 696 फ्लैटों के लिये आवेदन मांगे गये थे।

दिसम्बर 2014 में इनका ड्रा भी निकाल दिया गया और 13 हजार से ऊपर सफल अलाटियों से फ्लैट की कीमत का 25 प्रतिशत भी फरवरी 2015 तक जमा करवा लिया गया। एक अलाटी से करीब 6.5 लाख रुपये जमा करवा लिये गये। इस तरह यह रकम 900 करोड़ रुपये से ऊपर बैठती है। लेकिन शर्म की बात ये है कि इतने रुपये जमा करवाने के बाद भी फ्लैट बनाना तो दूर हाउसिंग बोर्ड अभी तक कहीं जमीन भी नहीं ले पाया है। सिर्फ पंचकूला में ही हाऊसिंग बोर्ड जमीन ले पाया है, वहां भी फ्लैट अभी तक दिये नहीं गये हैं।

भुक्त भोगी एक भूतपूर्व आर्मी जेसीओ ने बताया कि फरीदाबाद में अपना घर होने की आस में उसने ड्रा में नाम आते ही तुरन्त मांगी गयी सारी रकम जमा करवा दी। लेकिन फरवरी 2015 में 6.5 लाख रुपये भरने के बाद भी फ्लैटों का आज तक कोई नामों निशान नहीं। जब हाउसिंग बोर्ड के फरीदाबाद के एक्सइएन से जानकारी हासिल की गयी तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि अभी तो ज़मीन तक भी नहीं ली गई है तो फ्लैट बनने की तो कई सालों तक कोई आस ही नहीं है। क्यूंकि ज़मीन मिलने पर उसका ले आउट बना कर पहले हुडा से वह पास होगा फ़िर मकानों के नक्शे बन कर पास होंगे, तब कहीं जाकर टेंडर किये जायेंगे। निर्माण में लगने वाले समय का तो कोई भरोसा है ही नहीं। जब पैसे वापिस लेने के बाबत पूछा गया तो उन्होंने इसके बारे में नियमों की जानकारी न होने की बात कही। लेकिन उनका मानना था कि ब्याज तो दूर आपको मूल भी शायद कुछ कट कर ही मिलेगा। अगर 1000 करोड़ पर आज के दिन के हिसाब से भी एफडी का ब्याज लगायें तो छ: प्रतिशत के रेट से एक साल का ब्याज 60 करोड़ रुपये बैठता है। यानी 2015 से अब तक पांच सालों में सरकार 300 करोड़ से ऊपर तो ब्याज कमाये बैठी है और हमारे सैनिक उधर किराये के मकानों में पड़े डबल नुकसान भुगत रहे हैं। अगर वास्तव में इस सरकार में कुछ शर्म हया बची है तो उसे तुरन्त मकान बनाकर इन लोगों को देने चाहिये नहीं तो कम से कम 12 प्रतिशत की दर से ब्याज देकर इनका पैसा वापिस कर दे। और ब्याज में सरकार को जो नुकसान हो वो सम्बन्धित अधिकारियों की तनख्वाह में से काट लिया जाये। पर यहां तो हालत ये है कि हमारे सैनिक अपना ही पैसा वापिस लेने के लिये भिखारियों की तरह अफसरों की मिन्नतें करते घूम रहे हैं और प्राइवेट बिल्डरों पर निर्माण में देरी के लिये सख्त कार्यवाही करने वाली सरकार अपने ही एक विभाग के खिलाफ कुछ भी करने की हिम्मत नहीं दिखा रही है।

विभिन्न योजनाओं में देरी के लिये रोज कांग्रेस को पानी पी पीकर कोसने वाली भाजपा अपनी ही सरकार के इस छ: साल से अधूरे पड़े (या शुरू भी ना हुये) प्रोजेक्ट पर चुप है। क्या इसमें देरी के लिये भी नेहरू जिम्मेवार हैं?

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Mazdoor Morcha
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