यहां तो दाल में काला नहीं बल्कि  पूरी दाल ही काली है और आम जनता ने इसे अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है।

यहां तो दाल में काला नहीं बल्कि  पूरी दाल ही काली है और आम जनता ने इसे अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है।
March 09 17:56 2020

फरीदाबाद नगर निगम में बजट की रस्म पूरी, भ्रष्टाचार पर कोई कार्यवाही नहीं

अजातशत्रु

फरीदाबाद नगर निगम ने स्थानीय सेक्टर-12 के कन्वेंशन सेन्टर में मीटिंग करके सन् 2020-21 का वार्षिक बजट  पास करने की रस्म पूरी कर दी। इस अवसर पर छिटपुट आरोपों के अलावा न तो अधिकारियों ने पार्षदों के किसी भ्रष्टाचार पर अंगुली उठाई और न ही पार्षदों ने अधिकारियों के ऊपर कोई आरोप लगाये। लेखा नियंत्रक सतीश पर कुछ आरोप हल्के-फुल्के ढंग से जरूर लगाये गये पर उन पर ज्यादा जोर न देते हुए पार्षदों ने बिना किसी बहस के तुरन्त-फुरन्त बजट पास कर दिया। निगम ने 2394 करोड़ रुपये का बजट पास करके अगले साल 2020-21 के लिये पार्षदों और अधिकारियों के दाने-पानी का जुगाड़ कर दिया।

निगम को आय का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा सरकार से ग्रांट के रूप में प्राप्त होता है। इस बार सरकार से लगभग 1211 करोड़ रुपये की राशि निगम को मिलने की उम्मीद है। निगम लाइसेंस फीस से 480 करोड़ रुपये, करों से 300 करोड़ व अन्य मदों से 34.63 करोड़ रुपये की आमदनी की उम्मीद करता है। करों से होनेवाली आमदनी में प्रोरोपर्टी टैक्स से 120 करोड़ रुपये, पानी से 68 करोड़ रुपये, बिजली पर टैक्स से 100 करोड़ रुपये, फायर टेक्स डयूटी से 200 करोड़, विज्ञापनों से 5 करोड़, सीवरेज शुल्क से पांच करोड़, टावर शुल्क से 39 करोड़ व अन्य से 221. 2 करोड़ रुपये है।

अगर निगम में किसी दैवीय प्रकोपों से अगर भ्रष्टाचार बंद हो जाय तो न सिर्फ आमदनी तीन से चार गुणा बढ सकती है बल्कि निगम द्वारा कराये जा रहे कामों में भी बहुत सुधार हो सकता है। निगम में काम करने वाले एक ठेकेदार के अनुसार निर्माण कार्यों में लगभग 10 प्रतिशत पार्षदों और 10 प्रतिशत अधिकारियों को कमीशन देना  ड़ता है जिसकी पूर्ति खराब काम कर के करनी पड़ती है। फर्जी बिल भी बनाये जाते हैं। भ्रष्टाचार का दूसरा सबसे बड़ा जरिया निगम को विज्ञापनों से होने वाली आय है। एक मोटे अनुमान के अनुसार अवैध विज्ञापनों (होर्डिग आदि) से पार्षदों व अधिकारियों को कुल मिलाकर 10-15 करोड़ रु ये सालाना की रिश्वत प्राप्त होती है। तीसरे नंबर  पर अवैध पार्किंग व रोड के किनारे की ज़मीन का दुकानदारों द्वारा अवैध इस्तेमाल से मिलने वाली रिश्वत है। ये सभी लगी बन्धी रिश्वतें हैं जो हर महीने या हर बिल के आधार पर वसूल होती हैं और सम्बंधित लोगों में बंट जाती है।

इसके अलावा अन्य कई कामों की रिश्वत है जो बहुत छोटी से बहुत मोटी हो सकती है। पानी के बिल को 15000 रुपये से 2000 रुपये किया जा सकता है जिसके लिये आप से 1000 से 2000 रुपये रिश्वत ली जायेगी। अवैध निर्माण में काम के अनुसार लाखों करोड़ों रुपये में भी रिश्वत हो सकती है। मजे की बात ये है कि आप के अवैध निर्माण के पैसे न मिलने पर ढहा जाने वाला निगमकर्मी पड़ोस के आपसे पहले बन रहे अवैध भवन को छुएगा भी नहीं जिसके पैसे पहुंचे हुए हैं। इसमें किसी तरह की शर्म हया का कोई प्रावधान न निगम में है और न कोर्ट कचहरी में। प्रॉपर्टी टैक्स में भी इसी तरह की अन्धेरगर्दी है। इसके अलावा जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र, शादी का रजिस्ट्रेशन ऐसे क्षेत्र है जिनमें रिश्वत तो छोटी सी होने के कारण आदमी को नहीं अखरती लेकिन उनको लेने के लिये विदाई जो होती है वो रूला देती है।

इसके बाद यह भी पता चला है कि निगम अपना खाता कैश बेसिस पर चलाता है न कि एक्रूएल बेसिस पर। यानी कि कोई टैक्स या भुगतान आप द्वारा जब देना बनता है उस दिन से निगम उसको खाते में नहीं चढ़ाता बल्कि जिस दिन आप वास्तव में देते हो उस दिन से। इससे निगम को ब्याज और जुर्माने के रूप में ली जाने वाली राशि में बहुत नुक्सान होता है। इस लेखा सिस्टम को ठीक करने के निगम ने अभी प्रयास किये हैं।

इनमें से ज्यादातर चोरियां रोकी जा सकती है यदि निगम अपने कामों को कम्प्यूटराइज/डिजिटलाईज कर दे व उनमें पारदर्शिता लाये। जैसे कि पानी, सीवर के बिल, प्रॉपर्टी टैक्स आदि को डिजिटलाइज करना, सारे प्रमाण पत्रों को डिजिटलाईज करना आदि। सभी विज्ञापनों का विवरण वेब साईट पर डालना और अवैध होर्डिंग्स पार्किंग, सीवर व  पानी कनेक्शन, भवन निर्माण का शिकायत का ऐसा प्रबन्ध करना कि जिसको कोई भी देख सके और जिसमें समयबद्ध तरीके से निपटरा हो। एक तय समयसीमा में निपटारा न होने पर अधिकारियों पर जुर्माना लगे। लेकिन ऐसा होना बहुत मुश्किल है क्योंकि यहां तो दाल में काला नहीं बल्कि  पूरी दाल ही काली है और आम जनता ने इसे अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है।

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Mazdoor Morcha
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