यहां की वीनस कम्पनी में मजदूरों की उंगलियों का कटना लगातार जारी है।  दूसरी तरफ हरियाणा का श्रम विभाग मूकदर्शक बना हुआ है…

यहां की वीनस कम्पनी में मजदूरों की उंगलियों का कटना लगातार जारी है।  दूसरी तरफ हरियाणा का श्रम विभाग मूकदर्शक बना हुआ है…
August 01 15:38 2020

वीनस कम्पनी में फिर कटी मजदूर की उंगलियां

सो रहा है खट्टर का श्रम विभाग

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

फरीदाबाद: यहां की वीनस कम्पनी में मजदूरों की उंगलियों का कटना लगातार जारी है।  दूसरी तरफ हरियाणा का श्रम विभाग मूकदर्शक बना हुआ है। उसने पहले के मामलों में ही  कोई कार्रवाई नहीं की। इसी बीच 29 जुलाई को सेक्टर 25 स्थित वीनस कम्पनी में एक और मजदूर सागर की दो उंगलियाँ कट गईं।

24 वर्षीय सागर ने बताया कि 10 जुलाई को उन्हें कंपनी ने बतौर हेल्पर 9000 रुपये प्रति माह पर भर्ती किया था, ड्यूटी रखी 12 घंटे की। 29 जुलाई को मशीन चलाने वाला कुशल ऑपरेटर जिसका वेतन 25000 रुपये मासिक है, काम पर नहीं आया तो सुपरवाइजर दीपक ने हेल्पर सागर को ही मशीन चलाने के लिए मजबूर किया। इनकार करने पर मैनेजर राजकुमार ने मौके पर आकर धमकाया कि मशीन पर काम करना है तो कर वरना अपने घर जा। अनुभवहीन सागर ने मजबूरी में मशीन पर ज्यों ही काम करना शुरू किया उसे अंदाजा हो गया कि मशीन में कुछ खराबी है जिसकी सूचना उसने सुपरवाइजर दीपक को दी। सागर के बताये अनुसार दीपक और मैनेजर राजकुमार ने उस पर इसके बावजूद ये कहते हुए मशीन चलाने का दबाव बनाया कि उन दोनों के ऊपर भी मलखान सिंह (प्लांट हेड) एवं एचआर मैनेजर सुरेन्द्र का प्रोडक्शन पूरा करने के लिए दबाव है, इसलिए जैसी भी मशीन है उसी पर काम कर। सागर काम करता रहा और अचानक उसकी उंगलियां मशीन की खराबी के कारण कट गईं।

वीनस के मजदूरों ने बताया कि जब सागर की उंगलियाँ कटीं तब पुलिस आ गई थी, पर उसके साथ अस्पताल नहीं गई, जबकि कंपनी सागर को नीलम चौक के पास स्थित निजी हास्पिटल सूर्या में ले गई और यह भी कहा कि लिख कर दो कि तुम किसी प्रकार की शिकायत और कानूनी कार्रवाई नहीं करोगे। सागर ने शर्त न मानते हुए अपना इलाज सरकारी बीके अस्पताल से कराने की बात की। बीके पहुँचते ही नियमानुसार डॉक्टरों ने पुलिस को सूचित किया। मामूली मरहम पट्टी करके एमएलआर बना दिया जिसकी 255/- रुपये फीस भी सागर को देनी पड़ी, जबकि पुलिस यदि साथ जाती तो यह फीस नहीं लगती है।

सागर और मजदूरों ने थाना सेक्टर 58 फरीदाबाद पुलिस को अपनी दरखास्त लिख कर दी जिस पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता 287, 337 और 34 के तहत मुकदमा नंबर 335 रात 9.35 पर दर्ज कर लिया, जबकि घटना दिन में 10 बजे घटी। कंपनी द्वारा पीडि़त को निजी सूर्या अस्पताल ले जाने के पीछे चालाकी यह थी कि कंपनी ने उसको न तो ईएसआई में कवर कराया था न ही कंपनी उसकी एक्सीडेंट रिपोर्ट भरके श्रम विभाग को सूचित करना चाहती थी। और तो और कंपनी पुलिस केस से भी बचने की फिराक में थी, लेकिन सागर की सूझ-बूझ के चलते कंपनी की साजिश नहीं चल पायी और पुलिस को 12 घंटे बाद केस दर्ज करना पड़ा व श्रम विभाग को एक्सीडेंट रिपोर्ट भेजना भी कंपनी की मजबूरी बन गया।

ऐसे अधिकांश मामलों में मजदूरों की नासमझी का फायदा उठा कर कंपनी अपने ऐसे साजिशों में कामयाब हो जाती है।

30 जुलाई को सागर अपने परिवार और मजदूर साथियों के साथ वीनस के सामने धरने पर बैठ गया। आनन-फानन में पुलिसिया खानापूरी करने के लिए फिल्मी अंदाज में एएसआई विकास अपने अन्य तीन पुलिसकर्मियों के साथ पहुंचे, शर्ट के बटन खुले, और चुलबुल पांडे अंदाज में विकास ने एफआईआर की कॉपी अनपढ़ मजदूरों के हाथ में देते हुए कहा-लो कर दी एफआईआर, अब जरा मैं अन्दर देख आऊं कि इनका क्या ड्रामा चल रहा है? एएसआई विकास इतने आश्वस्त दिख रहे थे जैसे ये उनके लिए आम बात हो। जाहिर है सागर से पहले भी कई मजदूर अपनी उंगली और हाथ कटवा चुके हैं, विकास जैसे पुलिस वाले अगर इन सबके आदि न हो गए होते तो वहां खड़े 23 मजदूर जो कई वर्षों से एक-एक कर हाथ व उंगलियाँ कटवा रहे हैं अन्याय के भागी न बने होते। 23 मजदूर जिनके हाथ इसी फैक्ट्री में दसियों वर्ष पहले कटे, आज तक न्याय के लिए धरना प्रदर्शन कर न्याय की बाट जोह रहे हैं।

श्रमिक हितों की रक्षा के लिए हरियाणा सरकार ने बाकायदा एक श्रम मंत्रालय खोल रखा है जिसमे एक वरिष्ठ आईएएसअधिकारी के नीचे अफसरों की लम्बी-चौड़ी खौज है। इस विभाग की दो शाखाएं हैं, श्रम निरीक्षक से लेकर श्रम आयुक्त तक के अधिकारियों का दायित्व है कि वे मजदूरों को शोषण से बचाने के लिए उन्हें समय पर न्यूनतम वेतन दिलाएं। उनके हितों के लिए बने तमाम श्रम कानूनों को लागू कराएं। दूसरी शाखा जिसमे फैक्ट्री इंस्पेक्टर से लेकर मुख्य फैक्ट्री इंस्पेक्टर होते हैं जिन्हें आजकल सहायक निदेशक, उपनिदेशक, निदेशक आदि कहा जाता है। इनकी जिम्मेवारी है कि वे समय-समय पर तमाम कारखानों की जांच करें व तय करे कि सुरक्षा के सभी उपकरण एवं प्रबंध हर तरह से दुरुस्त हैं। लेकिन यह पूरा विभाग चपरासी से लेकर मंत्री तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा रहता है और मजदूरों हितों की अनदेखी करने की एवज में कंपनी मालिकान से मोटी वसूली करने में जुटा रहता है।

मौके पर मौजूद मजदूरों में चर्चा है कि पुलिस द्वारा लिखी ढीली-ढाली एफआईआर में कारखाना मालिक को बचाने की कोशिश है। एफआईआर में लगाई गईं धाराओं में सागर को ही लापरवाह बताते हुए मामला रफा-दफा करने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि अन्य समेत मुख्य आरोपी जोकि कंपनी मालिक है को हर बार की तरह बचा लिया गया। एफआईआर की तीनों धाराओं में सिर्फ मजदूरों और कर्मचारियों को नापने का ही खेल चलेगा, जिसमे दबाव देकर काम करवाना और लापरवाही बरतने का आरोप है। जाहिर है पहले सागर को ही लापरवाह सिद्ध किया जाएगा फिर बात नहीं बनी तो दीपक और राजकुमार पर आरोप लगेगा कि इन्होने दबाव डाला। जबकि असल दबाव डालने का अपराधी तो कंपनी मालिक है।

सागर को बतौर हेल्पर भर्ती करने के बाद भी उससे एक प्रशिक्षित मजदूर का काम वो भी बिना किसी भी तरह की ट्रेंनिंग दिए करवाया गया। इसके पीछे कारण है कि कंपनी रेगुलर कर्मचारियों की छंटनी कर कामचलाऊ सस्ते में मिलने वाले नए लोगों को अपने पैसे बचाने की खातिर काम पर रखती है। ऐसे मजदूरों का न तो पीएफ कटता है न कंपनी ईएसआई जमा करती है, पर ज्यों ही कोई हादसा हो जाता है कंपनी ईएसआई जमा कर अपनी पूँछ बचा लेती है। इन सभी कुकर्मों में कंपनी मालिकों का साथ देता है प्रशासन का पूरा तंत्र क्योंकि, कंपनी लेबर विभाग और पुलिस सभी के मुंह में पैसा ठूंस देती है तो इनमे से किसी की भी आवाज नहीं निकलती। फिलहाल सागर अपने परिवार समेत फैक्ट्री के सामने धरने पर बैठे हैं।

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Mazdoor Morcha
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