यूँ तो भारत देश में अव्यवस्थाओं की कोई कमी नहीं पर कुछ अव्यवस्थाएं ऐसी हैं जिन्हें अदालतों द्वारा ही फैलाया जाता है। देश की न्यायपालिका ठीक से काम करने लगे तो शायद आधे से अधिक मामले समाप्त होने की तरफ बढ़ जाएँ। सरकारी नौकरी में जो चमक थी वह उसमे सुरक्षा बोध के कारण थी पर खट्टर-मोदी सरकार में अब वह सुरक्षा समाप्त हो चुकी है। कर्मचारियों को गाजर मूली की तरह संस्थान से उखाड़ कर फेंका जाना अब बच्चों का खेल है।
1983 पीटीआई के सन्दर्भ में वर्ष 2006 में भर्ती के आवेदन करने के बाद साल 2010 में 1983 अभ्यथियों ने जॉइनिंग की। पर देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने 8 अप्रैल 2020 पूरी भर्ती को ही निरस्त करने का आदेश दिया। अदालत को ये फैसला देने में 10 साल लग गए। इस फैसले से जिन शारीरिक शिक्षा अध्यापकों पर असर होगा उन्होंने हरियाणा के सभी 22 जिलों में धरना प्रदर्शन शुरू किया है। ऐसा ही एक प्रदर्शन फरीदाबाद डीसी दफ्तर के सामने भी चल रहा है।
कोर्ट के फैसले का सीधा असर तकरीबन 2000 लोगों पर पड़ेगा, धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों की बात तर्कसंगत है पर फिर भी न जाने कैसे अदालतें अपने फैसलों के बाद या पहले इसपर गौर नहीं कर पाती प्रदर्शन में बैठे अजय कबड्डी खेल के प्रशिक्षक थे। अजय ने बताया कि सभी राजनैतिक दलों ने इन्हें सिर्फ धोखा ही दिया है। उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायलय ने भर्ती प्रक्रिया में खामी होना बताया न कि किसी विशेष पीटीआई के रिकॉर्ड में कोई कमी बताई है।
उपरोक्त भर्ती में 35 पीटीआई का देहांत हो चुका है, और सरकार की एक्स ग्रेशिया पालिसी के तहत मिलने वाले वेतन से ही उनके परिवार का भरण-पोषण होता है। 60 प्रतिशत पीटीआई 45 की उम्र पार कर चुके हैं जो आगामी भर्ती प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे। 20 से 25 विधवा महिला पीटीआई हैं और उनके वेतन से ही उनका परिवार पलता है। 68 पीटीआई भर्ती से पहले अलग-अलग सरकारी विभागों में कार्यरत थे और वहां से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने इस नौकरी को ज्वाइन किया था तो उनका क्या होगा? एक्स सर्विस मैन के तौर पर जो भर्ती हुए थे उनकी सेवानिवृति की तारीखें आने को हैं तो क्या वे अब दोबारा से भर्ती में बैठेंगे? सामान्य वर्ग से भर्ती हुए पीटीआई 2006 में 40 वर्ष के थे तो आज उनकी आयु 55 वर्ष है अब ऐसे में वे कौन सी भर्ती में शामिल होने लायक बचे होंगे?
इन्ही सब तर्कों का हवाला जिला शारीरिक शिक्षक संघ ने भी दिया है और ये सवाल तर्क सांगत जान पड़ते हैं। यह तो बात हुई पीडि़तों की, अब यदि सरकारी नजरिया देखें तो कोर्ट के अनुसार भर्ती प्रक्रिया में अनियमितता पायी गई है, तो इस अनियमितता की सजा इन लोगों को क्यों दी जा रही है। क्यों कोर्ट दोषियों को नहीं सजा दे रहा, जबकि ये जिम्मेवारी तो सरकार और सम्बंधित मंत्रालय की है।
अजय ने बताया कि भाजपा सरकार ने जान बूझ कर कोर्ट में मुकद्दमे की पैरवी कमजोर तरीके से की, क्योंकि सरकार खुद नहीं चाहती कि हम जैसों की नौकरी बचे। सरकार का मानना है कि क्योंकि इनकी भर्ती कांग्रेसी सरकार के वक्त में हुई है इसलिए ये तो कांग्रेस के समर्थंक होंगे, सो इन्हें मरने दिया जाए।
अब राजनीतिक दल तो अपने वोट से मतलब रखने वाले वो पिस्सू हैं जो अपने ही वोटरों का खून चूस कर उन्हें मरता छोड़ देते हैं। पर न्यायपालिका जिसका काम न्याय देना है क्या वे सच में न्यायसंगत फैसले दे रही हैं?