मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा किसानों ने पकड़ा, लाचार भक्त रह गये फडफ़ड़ाते…

मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा किसानों ने  पकड़ा, लाचार भक्त रह गये फडफ़ड़ाते…
December 14 11:37 2020

 

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो

लोकसभा में प्रचंड बहुमत तथा राज्यसभा में हेरा-फेरी व दादागिरी के बल पर किसान विरोधी तीन बिल पास करा कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरी तरह निश्चिंत हो चुके थे। बीते लोकसभा चुनाव में मोदी के मित्र कार्पोरेट घरानों द्वारा जो अरबों रुपये उनकी पार्टी को जिताने पर खर्च किये गये  थे, उसके बदले उनके लिये बड़ी लूट का मार्ग तीन किसान विरोधी कानूनों द्वारा प्रशस्त कर दिया गया था।

गौरतलब है कि कोविड-19 के नाम पर जब देश में सब कुछ बंद था तो इन तीनों कानूनों के लिये अध्यादेश लाया गया और फिर शीघ्र ही सितम्बर में संसद का संक्षिप्त सा सत्र बुला कर संसद व राष्ट्रपति की मुहर लगवा दी गयी। मोदी सरकार की इस सारी कार्यवाही के दौरान देश भर के किसानों व जागरूक नागरिकों ने इन बिलों का खुल कर विरोध किया। सबसे आगे रहे पंजाब के किसानों ने तो करीब दो माह तक पूरे पंजाब को जाम करके रख दिया महीनों तक रेलगाडिय़ां नहीं चलने दी गयी। परन्तु अंधभक्तों या गोदी मीडिया की लहर पर सवार मोदी सरकार ने किसान आन्दोलन की कोई परवाह नहीं की। सरकार यह सोच कर खामोश रही कि पंजाब बंद है तो बंद रहे, रेल गाडिय़ां नहीं चल रही हैं तो न चलें, सरकार को क्या फर्क पड़ता है, जो नुकसान हो रहा है उन्हीं लोगों का हो रहा है। सरकार यहभी मान कर चल रही थी कि थोड़े दिन में थक-हार कर बैठ जायेंगे; कानून तो लागू हो ही जायेगा।

बस मोदी जी यहीं मार खा गये। उन्होंने अपने चापलूसों व अंधभक्तों को ही पूरा देश समझ लिया था। इसी भ्रम के चलते मोदी जी अपने आप को देश का सर्व प्रिय नेता मानने लगे थे, मानते भी क्यों नहीं जब उनके कहने से लोग थाली-ताली बजाने लगें, रात के नौ बजे दीये-मोमबत्ती जलाने लगें, उनके हर झूठ को सत्यवचन मानने लगें तो यह भ्रम तो पैदा होना ही था। लेकिन यह भ्रम पंजाब के किसानों ने ऐसा तोड़ा कि तमाम मोदी गिरोह अवाक रह गये। जिन किसानों से कृषि मंत्री तक वार्ता न करके अपने सचिव को भेज कर टरकाते रहे थे वहीं अब दो-दो मंत्री सात-आठ घंटों तक लगातार वार्ता पर वार्ता करने को मजबूर हैं, केवल वार्ता ही नहीं, बल्कि वार्ता से पहले खुद मोदी, अमितशाह व अन्य मंत्री बैठक करके वार्ता की रणनीति बनाने को मजबूर हैं।

मोदी सरकार के ख्वाबो-ख्याल में भी यह बात नहीं थी कि जिस देश की जनता को वह अपना भक्त मान बैठी थी वह आज सारी की सारी उनके विरोध में नज़र आ रही है। प्रदर्शनकारी किसानों के का$िफलों को दिल्ली की सरहद से दूर रखने के हरियाणा की खट्टर सरकार के तमाम उपाय किसानों ने तिनकों की तरह हवा में उड़ा दिये और दिल्ली के दो बार्डर-सिंघू व टीकरी-पूरी तरह से जाम कर दिये। बार्डर तो शायद पहले भी कई बार जाम हुए होंगे लेकिन इस बार जितना जन समर्थन इन किसानों को मिला  है, वह बेमिसाल है। पूरे रास्ते किसान काफिले का जो स्वागत जनता ने किया, जिस तरह से रोक-रोक कर, भोजन व $फल आदि चलते काफिलों को दिये, उससे 1965 के वे दिन याद आते हैं जब पाकिस्तान के विरुद्ध जंग में जाते फौजी काफिलों का स्वागत होता था। जींद के एक गांव में स्थित पेट्रोल पम्प मालिक ने तो प्रदर्शन हेतु दिल्ली जाने वाले ट्रैक्टरों में डीजल तक भी मुफ्त डाला।

यह सब दिखाता है कि प्रदर्शनकारी किसानों के साथ देश की आम जनता भी जुड़ती जा रही है। पंजाब से शुरू हुआ यह आन्दोलन हरियाणा से होता हुआ लगभग पूरे देश में फैलता जा रहा है, और तो और मोदी के गढ़, गुजरात में भी यह उग्र रूप धारण करता जा रहा है।

पंजाब से आ रहे प्रदर्शनकारी जिस तैयारी के साथ आये हैं वह धरना-प्रदर्शन की एक नई राह दिखा रहा है। इनके तौर-तरीके पूरी तरह से फौज से मिलते-जुलते हैं। जैसे फौज जब चलती है तो वह अपना पूरा साजो-सामान लेकर चलती है, उसे किसी भी चीज़ के लिये किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ता; इसी शैली में ये लोग भी अपना चूल्हा-चौका, बोरी-बिस्तर, यानी जरूरत का हर सामान साथ लाये हैं। यहां तक कि बिजली के लिये जनरेटर और मेडिकल टीम तक भी इनके साथ है। यानी दिल्ली के मुहाने पर पड़ाव ऐसा डाल दिया कि महीनों तक भी डटे रहने में उन्हें कोई दिक्कत होने वाली नहीं। वैसे इस पड़ाव के जरिये राजमार्ग बंद कराने की मूर्खता भी खुद मोदी सरकार ने ही की है वरना उनका प्रोग्राम तो दिल्ली के भीतर आने का था। सरकार ने उनके भीतर प्रवेश से होने वाली परेशानी से बचने के लिये यह मूर्खता की थी जो अब सरकार को भारी पड़ रही है।

इनसे निपटने के लिये सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिया है। बहाना कोरोना व दिल्ली-वासियों की बढती समस्याओं का लिया है। सुप्रीम कोर्ट को यदि अपनी बची-खुची इज्जत प्यारी होगी तो वह उल्टे सरकार से ही पूछेगी कि कोरोना काल में ये कानून पास करने की क्या मजबूरी थी। और दिल्ली वासियों की मुसीबत बढाने के लिये प्रदर्शनकारी नहीं बल्कि खुद मोदी सरकार जिम्मेवार है; सरकार को यदि जनता की इतनी ही चिन्ता है तो क्यों नहीं काले कानून रद्द कर देती? सुप्रीम कोर्ट चाहे कितनी ही आंखे मीच ले उसे देश भर में भडक़ते आंदोलन की आवाजें तो सुनती ही होंगी। इसके बरक्स यदि सुप्रीम कोर्ट को अपनी बची-खुची इज्जत का बिल्कुल ही $फलूदा बनवाना होगा तो प्रदर्शनकारियों को तुरंत वहां से उठाने का आदेश देकर अपनी फजीहत कराने के साथ-साथ देश भर में एक व्यापक  एवं भयंकर संघर्ष की ओर धकेल देगी; क्योंकि जिस तरह से ये लोग जमे  हुए हैं उन्हें वहां से उखाडऩा पुलिस तो क्या फौज के लिये भी आसान नहीं होगा, खून खराबे की स्थिति में देश को भयंकर परिणाम भुगतने होंगे।

उक्त कानूनों को बेशक किसान विरोधी बता कर आज केवल किसान ही विरोध करते नज़र आ रहे हैं। वास्तव में इनका व्यापक असर उपभोक्ताओं के रूप में तमाम देशवासियों पर पडऩा तय है। कार्पोरेट्स एक ओर तो किसानों से सस्ता माल खरीद कर उन्हें लूटेंगे वहीं बहुत महंगे दामों में बेचकर उपभोक्ता को लूटेंगे। शायद यही बात अब धीरे-धीरे आम जनता की समझ में आने लगी है जिसके चलते देश भर में जनता भी किसानों के समर्थन में खड़ी होने लगी है।

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Mazdoor Morcha
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