मजदूर मोर्चा ने विस्तार से बताया था कि किस प्रकार से अदालत और वकीलों के सहयोग से इस महाघोटाले के अभियुक्तों को जेल से बाहर निकालने की योजना तैयार की गई थी

मजदूर मोर्चा ने विस्तार से बताया था कि किस प्रकार से अदालत और वकीलों के सहयोग से इस महाघोटाले के अभियुक्तों को जेल से बाहर निकालने की योजना तैयार की गई थी
July 18 07:33 2020

 

एसआरएस ग्रुप को हाईकोर्ट का झटका

बिल्डर घोटालेबाजों की याचिका खारिज

मोर्चा ब्यूरो मजदूर

फरीदाबाद के एसआरएस ग्रुप द्वारा किए गए महाघोटाले के संबंध में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दिनांक 29 जून, 2020 के अपने आदेश के द्वारा फरीदाबाद के तत्कालीन अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजेश मल्होत्रा के दिनाँक 27 मार्च, 2019 के उस आदेश को संशोधित किया है जिसके द्वारा उन्होंने एसआरएस गु्रप के चेयरमैन अनिल जिंदल को उनकी अदालत में चल रहे सभी केसों में ज़मानत प्रदान करने का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय का यह आदेश तथ्यात्मक और  कानूनी दृष्टि से काफी उपयुक्त है तथा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के भी अनुकूल हैं। इस आदेश के पश्चात मुख्य अभियुक्त अनिल जिंदल और इस महाघोटाले में उसके साथी रहे अन्य सह-अभियुक्तों की परेशानियां बढ़ गयी हैं तथा निकट भविष्य में उनके जेल से शीघ्र बाहर आने की संभावना को जबरदस्त झटका लगा है।

संक्षेप में, उच्च न्यायालय द्वारा उक्त संशोधन मुख्यत: दो बिंदुओं पर किया गया है ।

  1. अभियुक्त के विरुद्ध वर्तमान में फरीदाबाद पुलिस के समक्ष अनेकों एफआईआर दर्ज है और उसने अपने विरुद्ध दर्ज केवल एक एफआईरआर नं. 113 दिनाँक 04 मार्च, 2018 में अतिरिक्त जि़ला व सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद के सम्मुख जमानत प्रदान करने के लिए आवेदन किया था। किन्तु अतिरिक्त जि़ला व सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद ने अपने आदेश दिनाँक 27 मार्च, 2019 के द्वारा उक्त अभियुक्त अनिल जिंदल को उक्त एफआईआर संख्या 113 के साथ साथ उनकी अदालत में उसके विरुद्ध चल रहे समस्त केसों में ज़मानत पर रिहा करने के आदेश दे दिए थे बशर्ते अभियुक्त कम से कम 100 करोड़ रूपये की संपत्तियों के दस्तावेज न्यायालय में जमानत के तौर पर जमा करा दे।
  2. अतिरिक्त जि़ला व सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद के समक्ष जमानत हेतु उक्त आवेदन केवल एक अभियुक्त अनिल जिंदल द्वारा प्रस्तुत किया गया था, किन्तु उक्त न्यायालय ने अपने आदेश दिनाँक 27 मार्च, 2019 के द्वारा न केवल आवेदनकर्ता अनिल जिंदल को जमानत प्रदान करने संबंधी आदेश दिया बल्कि इसी आदेश के द्वारा इस महाघोटाले के अन्य सह-अभियुक्तों बिशन बंसल, नानक चन्द तायल और राजेश सिंगला को भी जमानत प्रदान के आदेश जारी कर दिए।

ज्ञात हो कि गत वर्ष मजदूर मोर्चा ने अपने 7-13 अप्रैल, 2019 के अंक में इस विषय पर ” मिलीभगत से हुआ एस.आर.एस. के अनिल जिंदल की जमानत का रास्ता साफ”  शीर्षक से एक विस्तृत लेख लिखा था। इसमें मजदूर मोर्चा ने विस्तार से बताया था कि किस प्रकार से अदालत और वकीलों के सहयोग से इस महाघोटाले के अभियुक्तों को जेल से बाहर निकालने की योजना तैयार की गई थी। उच्च न्यायालय के इस आदेश से हमारे समाचार पत्र में वर्णित तथ्यों की पुष्टि ही हुई है।

इस घोटाले के अभियुक्तों ने जमानत पर अपनी रिहाई के लिए न्यायालय के साथ भी गम्भीर धोखाधड़ी करने के प्रयास किये गए। अदालत ने अपने आदेश में ज़मानत के रूप में कम से कम 100 करोड़ रुपये की संपत्ति के मूल दस्तावेज़ न्यायालय में जमा कराने के जो आदेश दिए थे उसके एवज में अनिल जिंदल द्वारा जमानत पर रिहाई के लिए अपने ही एक ऐसे प्रोजेक्ट के दस्तावेज अदालत के समक्ष प्रस्तुत किये गए, जिनकी कीमत उसने 100 करोड़ रुपये से ऊपर की आँकी। किन्तु वास्तव में यह सम्पूर्ण प्रोजेक्ट एक वित्तीय संस्थान रुढ्ढष्ट॥स्न लिमिेटड से लिये गए 140 करोड़ रुपये के ऋण के बदले में उसके पास गिरवी रखा हुआ था। इस बारे में पता चलने पर पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा, इस महाघोटाले के बिसेल ब्लोअर और शिकायत कर्ताओं के एक सक्रिय समूह की तरफ से पूरी जानकारी एकत्र करके अदालत के सम्मुख प्रस्तुत की गई कि उक्त सम्पत्ति पर 137.04 करोड़ रुपये का ऋण उस समय पर भी रुढ्ढष्ट॥स्न लिमिटेड की तरफ बकाया था तथा ऋण की यह समस्त राशि हृक्क्र हो चुकी थी।

साथ ही इस महाघोटाले के  बिसेल ब्लोअर  और शिकायत कर्ताओं के एक सक्रिय समूह की तरफ से यह आपत्ति भी सम्बन्धित अदालत के समक्ष दर्ज कराई गई कि एक एफआईआर में जमानत के आवेदन पत्र के अंतर्गत जारी न्यायिक आदेश के द्वारा सभी केसों में जमानत कैसे प्रदान की जा सकती है और वह भी न केवल आवेदनकर्ता अभियुक्त को बल्कि इस महाघोटाले में संलिप्त अन्य सह-अभियुक्तों को भी।

इसके पश्चात फरीदाबाद के अतिरिक्त जि़ला व सत्र न्यायाधीश श्री जग भूषण गुप्ता द्वारा 20 सितम्बर, 2019 के आदेश के द्वारा अनिल जिंदल के जमानत पर रिहा करने के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अभियुक्त द्वारा पूर्व के अदालती आदेश के अनुसार मांगी गई 100 करोड़ रुपये की जिस सम्पत्ति से जुड़े जो दस्तावेज़ अदालत में प्रस्तुत किये हैं, उस सम्पत्ति पर बैंकों / वित्तीय संस्थानों का ऋण बकाया है, अत: इस सम्पत्ति को जमानत के रूप में स्वीकार नही किया जा सकता।

फरीदाबाद की अदालत के द्वारा दिये गए उक्त दोनों आदेशो के विरुद्ध अभियुक्त अनिल जिंदल ने पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष मई/ जून, 2020 में एक याचिका इस आधार पर प्रस्तुत की कि जिला न्यायालय द्वारा लगाई गई 100 करोड़ रूपए की संपत्ति के दस्तावेज जमा कराने की जो शर्त अभियुक्त पर लगाई गई है वह अनावश्यक रूप से बहुत ज्यादा है और उसे पूरा करना अभियुक्त के लिए लगभग असम्भव सा कार्य है और ऐसी शर्त लगाना जो पूरी न हो सके, जमानत नामंजूर करने के समान है।यह तर्क भी दिया गया कि अभियुक्त पिछले 2 वर्षों से अधिक अवधि से जेल में बन्द है।

इस पर पुलिस विभाग द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष निम्न तथ्य प्रस्तुत किये गए कि अभियुक्त को अगर एफआईआर नं. 113 में जमानत दे भी दी जाए तब भी अभियुक्त जेल से बाहर नही आ सकता क्योंकि उसके विरूध्द अभी तक कुल मिलाकर 916 शिकायतों के आधार पर फरीदाबाद पुलिस के द्वारा कुल 67 एफआईआर  दर्ज हैं तथा अभियुक्त ने किसी भी अन्य केस में अभी तक जमानत हेतु कोई प्रार्थना पत्र अदालत में प्रस्तुत नही किया है। उक्त 67 केसों में संभावित फ्रॉड और गबन की गई कुल राशि मिलाकर 295.38 करोड़ रुपये आँकी गयी है। इसके अतिरिक्त काफी सारी शिकायतें अभी भी पुलिस के विचाराधीन है जिन पर अभी कोई केस दर्ज नही हुआ है।उच्च न्यायालय के समक्ष यह बात भी लायी गयी कि जब अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद ने 100 करोड़ रुपये की संपत्ति के मूल दस्तावेज जमा करने के आदेश अभियुक्त को दिए थे तब न्यायालय के समक्ष  विचाराधीन केसों में अभियुक्त द्वारा संभावित गबन, फ्रॉड और घोटाले की अनुमानित राशि लगभग 85 करोड़ आँकी गयी थी।

इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए उच्च न्यायालय के दिनाँक 29 जून, 2020 के इस आदेश के द्वारा फरीदाबाद के अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायालय के आदेशों में यह संशोधन किए गए हैं। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में लिखा है कि फरीदाबाद के अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनाँक 27 मार्च, 2019 तकनीकी रूप से ही त्रुटिपूर्ण है। जिला न्यायालय के समक्ष जो जमानत याचिका दायर की गई थी वह एक ही केस/ एफआईआर  से संबंधित थी, अत: जिला न्यायालय को उसके समक्ष विचाराधीन समस्त केसों में अभियुक्त अनिल जिन्दल को जमानत देने का कोई अधिकार नही था। इसी प्रकार अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद के समक्ष जमानत हेतु उक्त आवेदन केवल एक अभियुक्त अनिल जिंदल द्वारा प्रस्तुत किया गया था, किन्तु अतिरिक्त जिला व सत्र न्यायाधीश, फरीदाबाद द्वारा अपने आदेश दिनाँक 27 मार्च, 2019 के द्वारा न केवल आवेदनकर्ता अनिल जिंदल को जमानत प्रदान करने संबंधी आदेश दिया गया बल्कि इसी आदेश के द्वारा अन्य सह-अभियुक्तों बिशन बंसल, नानक चन्द तायल और राजेश सिंगला को भी जमानत देने के आदेश जारी कर दिए गए, जिसके लिए वह किसी भी तरह से अधिकृत नही थे, इसलिए उन्हें जो भी आदेश पारित करने थे वह केवल एफआईआर नं. 113 के संबंध में और आवेदक अभियुक्त अनिल जिन्दल के संबंध में ही होने चाहिए थे।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि उनके समक्ष जो याचिका विचाराधीन है वह मात्र एक एफआईआर नं. 113 को लेकर है जिसमें कि अभियुक्तों के द्वारा संभावित रूप से धोखाधड़ीपूर्ण तरीकों से और षडय़ंत्रपूर्वक गबन और फ्रॉड की गई अनुमानित राशि 2,74,57,361/- रुपए आँकी गयी है। इसलिए उच्च न्यायालय ने इस एफआईआर में जमानत के लिए प्रार्थना पत्र देने वाले अभियुक्त अनिल जिंदल को इस शर्त पर जमानत प्रदान करने के आदेश को संशोधित किया है कि वह इस केस में जमानत के रूप में ऐसी सम्पत्ति से संबंधित मूल दस्तावेज न्यायालय में जमा कराएगा जिनकी कीमत? 3 करोड़ रुपये या उससे अधिक हो तथा उक्त सम्पत्ति पर किसी भी बैंक या वित्तीय संस्थान का किसी भी प्रकार का कोई अधिभार न हो। इस संपत्ति के दस्तावेजों के साथ ही इतनी ही राशि की अर्थात 3 करोड रुपए की राशि की एक और श्योरिटी  देने का आदेश भी दिया गया है। साथ ही यह भी आदेश दिए गए हैं कि अभियुक्त को उसके विरुद्ध दर्ज प्रत्येक केस में जमानत हेतु कानून के अनुसार अलग अलग प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करना होगा, जिस पर उपयुक्त न्यायालय कानून के अनुसार उपयुक्त आदेश पारित करेंगे। इसी प्रकार प्रत्येक अभियुक्त को अलग अलग रूप से जमानत हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत करने होंगे। सभी सह अभियुक्तों को एक साथ रखते हुए जमानत नही दी जा सकती।

कानून के जानकारों का मत है कि अब महाघोटालेबाज अनिल जिंदल के समक्ष दो रास्ते बचे है। एक तो उच्च न्यायालय की बड़ी खंडपीठ के समक्ष अपील करने का और दूसरा उच्चतम न्यायालय जाने का। क्योंकि जब तक उच्च न्यायालय का यह आदेश लागू रहेगा तब तक जिला न्यायालय के समक्ष विचाराधीन अभियुक्तों के जमानत हेतु जो आवेदन आएंगे उन पर उच्च न्यायालय के उक्त आदेश की पालना करने की अनिवार्यता होगी। और वर्तमान में क्योंकि लगभग 295.38 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी और फ्रॉड के मामलों में 67 केस अब तक दर्ज हो चुके हैं तो इस आधार पर अभियुक्त को जमानत प्राप्त करने के लिए धोखाधड़ी की गई राशि के लगभग 110 प्रतिशत राशि अर्थात 325 से 330 करोड़ रुपये के बराबर की सम्पत्ति के मूल दस्तावेज न्यायालय में जमा कराने होंगे। साथ ही इतनी ही राशि की श्योरिटी  का प्रबन्ध भी करना पड़ सकता है। बाकी शिकायतें अलग हैं जिनमें अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नही हो पाई है।

पता चला है कि गत दिनों उच्च न्यायालय के इस आदेश के विरुद्ध अभियुक्त अनिल जिन्दल द्वारा उच्च न्यायालय में ही अपने निर्णय पर पुनर्विचार हेतु / आदेश में संशोधन हेतु याचिका प्रस्तुत की गई थी, जिसे उच्च न्यायालय द्वारा दिनाँक 14 जुलाई, 2020 के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया है।

ज्ञात हो कि जनवरी, 2020 में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा भी एसआरएस गु्रप की लगभग 2,510.84 करोड़ रुपये की सम्पत्ति जब्त करने के आदेश पहले ही जारी हो चुके हैं।

 

सांप निकलने के बाद लकीर पीटती सीबीआई

प्राप्त जानकारी के अनुसार केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) के द्वारा आज एसआरएस गु्रप द्वारा विभिन्न बैंकों व वित्तीय संस्थानों के साथ किये गए हजारों करोड़ रूपए की हेराफेरी, जालसाजी और घोटालों के मामलों में इस गु्रप से जुड़े विभिन्न निदेशकों  तथा अन्य लोगों के कुल 19 ठिकानों पर छापामारी की गयी जिनमें फरीदाबाद व बैंगलोर स्थित निम्न 9 स्थान सम्मिलित है :

  1. एसआरएस टावर, सेक्टर 30, मथुरा रोड, फरीदाबाद।
  2. एसआरएस मॉल, सेक्टर 12, फरीदाबाद।
  3. फ्लैट न. 701, ओंकारेश्वर सोसायटी, सेक्टर – 65, फरीदाबाद ( बिशन बंसल का निवास स्थान )।
  4. मकान न. श्व-1/111, सेक्टर – 11, फरीदाबाद ( नानक चन्द तायल का निवास स्थान )।
  5. मकान न. 413, सेक्टर – 9, फरीदाबाद ( राजेश सिंगला का निवास स्थान )।
  6. मकान न. 117, सेक्टर – 9, फरीदाबाद ( जे के गर्ग के भाई रविन्द्र गर्ग का निवास स्थान )।
  7. मकान न. 529, सेक्टर – 14, फरीदाबाद ( जे के गर्ग के भाई शैलेन्द्र गर्ग का निवास स्थान )।
  8. मकान न. 888, सेक्टर – 15, फरीदाबाद ( अनिल जिन्दल के समधी गोपाल गर्ग का निवास स्थान )।
  9. फ्लैट न. 2071, टावर – 2, प्रेस्टीज व्हाइट मीडोज, नजदीक व्हाइट फील्ड पुलिस स्टेशन, व्हाइट फील्ड, बैंगलोर (अनिल जिन्दल और उसके भाई विनोद जिन्दल का निवास स्थान )।

जानकारी मिली ह सीबीआईै की प्रत्येक जाँच टीम में 5 सदस्य थे जिनमें से 3 सी.बी.आई. अधिकारी और 2 बैंक अधिकारी सम्मिलित थे। पता चला है कि गत कई वर्षों से घोटाले की जाँच के चलते किसी के यहाँ से कोई बहुत ज्यादा आपत्तिजनक कागजात तो टीमों के हाथ नही लगे। किन्तु फिर भी यह टीमें अपने साथ कुछ दस्तावेज ले गयी है। साथ ही उक्त टीमों के द्वारा प्रत्येक स्थान पर उपस्थित किसी एक प्रमुख व्यक्ति के बयान भी कलमबद्ध किये गए।

एसआरएस पीडि़त संघ के संयोजक सीए सतीश मित्तल ने बताया कि कुछ बिसेल ब्लोअर और विभिन्न बैंकों की शिकायतों पर लगभग 1 वर्ष पूर्व सीबीआई ने अपने यहाँ प्राथमिक जाँच हेतु शिकायतें दर्ज कर उनकी जाँच की कार्यवाही प्रारम्भ कर दी थी। इस दौरान उन्होंने विभिन्न बैंकों से घोटालों से सम्बंधित अनेकों दस्तावेज बैंकों से व अन्य स्रोतों से एकत्र कर लिए थे। उक्त जांच की कार्यवाही सीबीआई के स्तर पर लगातार जारी थी। आज की कार्यवाही उसी जाँच की दिशा में एक और कदम है।

सीए सतीश मित्तल ने यह भी बताया कि सीबीआई द्वारा की गई आज की कार्यवाही का सम्बन्ध केनरा बैक द्वारा एसआरएस गु्रप की एक कम्पनी,एसआरएस रियल इस्टेट लिमिटेड को प्रदान किये गए 110 करोड़ रुपये के ऋण से था, जो अब पूर्णतया एनपीए हो चुका है तथा इस सम्बन्ध में कैनरा बैंक द्वारा काफी समय पूर्व सीबीआई के पास शिकायत दर्ज की जा चुकी है।

सीए सतीश मित्तल ने आगे बताया कि उक्त ऋण कैनरा बैंक द्वारा गु्रप के एक प्रोजेक्ट एसआरएस रॉयल हिल्स को पूरा करने के लिए प्रदान किया गया था। कैनरा बैंक को धोखे में रख कर इसी प्रोजेक्ट पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से भी ऋ ण प्राप्त किया गया। इस सम्बन्ध में भारतीय स्टेट बैंक की शिकायत पर एक मुकदमा फरीदाबाद की अदालत में भी विचाराधीन है। सतीश मित्तल के अनुसार एसआरएस गु्रप की अनेकों कम्पनियों पर इस समय विभिन्न बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों का लगभग 2,163.50 करोड़ का ऋण बकाया है जो पूरी तरह से एनपीए हो चुका है।

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Mazdoor Morcha
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