फरीदाबाद (म.मो.) दानवीरों की लिस्ट में अपना नाम लिखाने के लिये स्थानीय एवं केन्द्रीय मंत्री कृष्णपाल गूजर ने भी प्रधानमंत्री राहतकोष में 101 लाख रुपये दान देने की घोषणा कर डाली। मजे की बात तो यह है कि इस दान के रूप में गूजर ने एक पैसा भी अपनी जेब से नहीं दिया। एक करोड़ तो भारत सरकार द्वारा उन्हें दिये गये पांच करोड़ के एमपी-एलएडी (सांसद के स्थानीय क्षेत्र विकास) फंड से दिया है तथा एक लाख उसमें से, जो सरकार उन्हें मंत्री होने के नाम पर देती है। यानी जो कुछ भारत सरकार उन्हें, जनता से वसूले गये टैक्स में से देती है, उसी में से उन्हेंने यह राशि देकर दानवीर होने का तमगा हासिल कर लिया है।
विदित है कि भारत सरकार प्रत्येक एमपी को पांच करोड़ रुपये अपने क्षेत्र के विकास के नाम पर देती है। इस रकम को सांसद अपनी इच्छानुसार, अपने क्षेत्र में जहां मर्जी, जैसे मर्जी खर्च कर सकता है। इस रकम से सांसद किसी स्कूल में कमरा, किसी गांव में सडक़ या चौपाल आदि कुछ भी बनवा सकता है। देश प्रचलित भ्रष्टाचार के अनुसार बमुश्किल आधा पैसा तो काम पर खर्च होता है शेष सांसद व उसके लग्गुए-भग्गुओं की जेब में समाता है। ऐसे में किसी भी सांसद द्वारा इस फंड में से प्रधानमंत्री राहतकोश में दान देने से उसे व उसके लग्गुओं-भग्गुओं को केवल उतना ही नुक्सान होता है जितना कमीशन उनकी जेबों में आना था। कुल मिला कर सरकार का पैसा सरकार को चला गया और नाम लिखा गया दानवीर के नाम।
इस श्रेणी में केपी गुजर अकेले नहीं, अनेकों भाजपाई सांसद हैं। इन्हीं में से एक हिसार के सांसद बिजेन्द्र सिंह पुत्र बिरेन्द्र सिंह (कद्दावर नेता) भी हैं। इन्होंने तो इसी निधि में से एक करोड़ चार लाख का चेक काट कर अपनी छाती पर लगा कर फोटो खिंचवा कर प्रधानमंत्री को भेजा था। क्या कहना ऐसे दानवीरों का! हां यदि ये तथाकथित दानवीर अपनी लूट कमाई से बनाई अकूत सम्पत्ति में से कोई अंश दान करते तो कोई बात होती। अधिक कुछ नहीं तो कम से कम बुढिया नाले पर कब्ज़ा करके बनाई करोड़ो की जायदाद में से ही कुछ दे दिया होता।