मजदूर मोर्चा ब्यूरो
तस्करी या अन्य अवैध तरीकों से ले जायी जा रही शराब को पुलिस या आबकारी विभाग जब पकड़ लेता है तो उसे अलग गोदाम में सील करके रख दिया जाता है। और फिर काफी मात्रा में ऐसी शराब जमा होने पर उसे नष्ट कर दिया जाता है। आबकारी कानून के अनुसार ऐसी शराब को न तो नीलामी द्वारा बेचा जा सकता है न उसे ठेकेदारों को बेचने के लिये दिया जा सकता है। बस उसे बड़े अफसरों की कमेटी के सामने नष्ट ही करना एक मात्र रास्ता है। उसमें से छिटपुट चोरी तो हो सकता है सरकारी कारीन्दे पहले भी कर लेते हों, लेकिन इन गोदामों में डाका पहली बार पड़ा है।
पता चला है कि फतेहाबाद और खरखौदा (सोनीपत) के शराब के सरकारी गोदामों में से करोड़ों रुपये की शराब गायब मिली है। वैसे सरकार के आबकारी मंत्री व उपमुख्यमंत्री द़ष्यंत चौटाला, द्वारा जारी बयान के अनुसार 53 अन्य थोक गोदामों में भी अनियमितता पायी गयी है यानी कि वहां भी स्टॉक में चोरी मिली है। लेकिन उपरोक्त दो जगह की चोरी चोरी नहीं डाका है। बताया गया है कि फतेहाबाद में दो लाख बोतल तो खरखौदा में 5500 पेटी यानी तकरीबन 66000 बोतल शराब हिसाब में कम पायी गयी है।
खरखौदा के डाके के लिये तो एसएचओ व दो पुलिस वालों को सस्पेंड भी किया गया है। इन दो बड़े डाकों के अलावा पूरे राज्य भर में शायद ही कोई दुकान /ठेका ऐसा मिला हो जिसमें उसका हिसाब किताब पूरा मिला हो। इस चोरी को छिपाने के लिये जगह-जगह शराब के ठेकेदार पुलिस में चोरी की रपट दर्ज करा रहे हैं और जिसे पुलिस तुरन्त खुशी-खुशी दर्ज कर भी रही है।
क्या ये बात किसी को हजम होगी कि लॉकडाउन के बावजूद इतनी भारी मात्रा में शराब चोरी हो रही थी, लूटी जा रही थी और बेची जा रही थी पर पुलिस और आबकारी महकमे के अफसरों और मंत्रियों आदि को पता न चला हो। डेढ महीने के लॉकडाउन में चले चोरी और अवैध बिक्री के इस करोड़ों रुपये के कारोबार का यदि ऊपर के आबकारी व पुलिस के अफसरों और मंत्रियों को पता नहीं था तो उनसे बड़ा निकम्मा कोई नहीं और यदि पता था तो उनसा भ्रष्ट सरकार में आज कोई नहीं।
इसलिये चोरी की रपट लिखने-लिखाने के नाटक के बजाय सभी सम्बन्धित आबकारी और पुलिस अधिकारियों पर चोरी और गबन के मुकदमे दर्ज करिये और ठेकेदारों से माल पर पूरा टैक्स वसूल करिये। और यदि जरा भी शर्म बची हो तो आबकारी व कराधान मंत्री दुष्यंत चौटाला और गृहमंत्री अनिल विज को, जांच का नाटक छोडक़र इस्तीफा दे देना चाहिये। वैसे इस्तीफा तो ऐसे भ्रष्ट लोगों को मंत्री बनाने के लिये आपका भी बनता है खट्टर साहब, यदि नैतिकता बची हो तो। या आप भी उसी हाण्डी में मुंह मार रहे थे?