बैंकों को फिर बैड लोन की चिंता, मोदी सरकार की घोषणाओं से डरे तीन लाख करोड़ रुपये से छोटे और मझोले उद्योगों के खड़े हो पाने में शक, घपलों की आशंका से भी इनकार नहीं

बैंकों को फिर बैड लोन की चिंता, मोदी सरकार की घोषणाओं से डरे  तीन लाख करोड़ रुपये से छोटे और मझोले उद्योगों के खड़े  हो पाने में शक, घपलों की आशंका से भी इनकार नहीं
May 17 17:27 2020

 

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

नई दिल्ली: लघु और मझोले उद्योगों (एमएसएमई) के लिए केंद्र सरकार की घोषणाएं बैंकों को पसंद नहीं आई हैं और खासकर प्राइवेट सेक्टर बैंकों से लघु और मझोले उद्योगों को कोई फायदा नहीं होने जा रहा है। वित्त मंत्री ने बुधवार को जिस पहले राहत पैकेज की घोषणाएं की थीं उसमें पांच लाख करोड़ में से तीन लाख करोड़ का लोन एमएसएमई यूनिटों के लिए था। सुनने में तीन लाख करोड़ बहुत अच्छा लगता है। सरकार के पिठ्ठू उद्योग संघों फिक्की और एसोचैम ने फौरन गाल बजाते हुए प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री की तारीफों के पुल बांध दिए।

पूरा खेल बैंकों पर टिका है

सरकार ने लघु और मझोले उद्योगों के लिए जो तीन लाख करोड़ घोषित किया है, उसके लिए बीस हजार करोड़ की गारंटी भी दी है। लेकिन बैंकों का बैड लोन का जो खऱाब अनुभव रहा है, उसे देखते हुए, उन्होंने सरकार की घोषणा का न तो स्वागत किया और न ही यह कहा कि वे इन उद्योगों को लोन देने में देर नहीं लगाएंगे। बैंकर्स बहुत सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कोई भी सार्वजनिक रूप से बोलने को तैयार नहीं है लेकिन वे दबी जबान से कह रहे हैं कि खतरे बहुत हैं। पंजाब नैशनल बैंक और आईसीआईसीआई बैंक के अलावा पीएमसी, येस बैंक के साथ जो बैड लोन का जो खेल हुआ, उसे वे अभी तक नहीं भूले हैं। बैंकों का कहना है कि इस बार तो खतरा और भी ज्यादा लग रहा है।

बैंकिंग विशेषज्ञों ने बताया कि सरकारी बैंकों के मुकाबले प्राइवेट बैंकों के पास लोन देने और गारंटी लेने के ज्यादा विकल्प नहीं है। इसीलिए प्राइवेट बैंक लघु और मझोले उद्योगों को लोन देने में बहुत ज्यादा सतर्कता बरतेंगे। बल्कि यह कहना चाहिए कि वे ऐसे उद्योगों को लोन देने के लिए चुनेंगे जिनसे उन्हें वापसी का भरोसा होगा। वे छोटे उद्योग जिनका बैकग्राउंड बेहतर है, उनसे प्राइवेट बैंक ज्यादा सहज होंगे। तमाम बैंक आरबीआई के पास 3.75 फीसदी ब्याज पर रोजाना करीब 53,11,38,99,99,99,999.94 रुपये (7.83 ट्रिलियन) रखती हैं। मतलब ये ऐसा पैसा है जो आरबीआई के पास रहता है और यहां से बैंक पैसे लेकर अपनी बैंकिंग करते हैं। सरकार के इशारे पर आरबीआई ने एक महीने के अंदर दो बार रिवर्स रेपो रेट 115 बेसिक पॉइंट इसीलिए कम कर दिए कि बैंक यह पैसा हमारे पास रखने की बजाय लोन के रूप में बांटें।

लेकिन आरबीआई की इस कोशिश का कोई खास नतीजा नहीं निकला। जब आरबीआई ने एक महीना पहले रिवर्स रेपो रेट घटाया था तो 27 मार्च को आरबीआई के पास बैंकों का 35,35,08,00,00,00,000 रुपये (4.43 ट्रिलियन) रखे थे। लेकिन 17 अप्रैल को दूसरे आरआर कट के समय आरबीआई के पास बैंकों का 7.09 ट्रिलियन था।

केयर रेटिंग्स ने 14 मई की अपनी रिपोर्ट में कहा कि जिस लोन के पैसे की गारंटी सरकार लेती है, सुनने में वह अच्छा लगता है। उससे छोटे और मझोले उद्योगों को फायदा भी होता है। लेकिन इसके लिए पूरी तरह बैंकों पर निर्भर रहने से बात नहीं बनती। केयर रेटिंग्स ने कहा कि हो सकता है इस साल बैंकों का बैड लोन इतना ज्यादा न दिखे लेकिन अगले साल बैंकों को बैड लोन के कठिन दौर से गुजरना होगा।

अक्टूबर तक ही आवेदन मांगे

जिन लघु और मझोले उद्योगों को यह लोन चाहिए, उन्हें अक्टूबर तक का समय आवेदन के लिए दिया गया है। भारत में सरकारी दफ्तरों और बैंकों का जो हाल है, उसे देखते हुए यह समय सीमा बहुत कम लग रही है। कंपनियां जल्दबाजी में सारे कागज और दस्तावेज जुटाएंगी और जमा कराएंगी। इस जल्दबाजी में बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान इन दस्तावेजों की गहराई में जाकर पड़ताल नहीं कर पाएंगे। भारतीय परंपरा के  मुताबिक उन कंपनियों को पहले लोन मिलेगा, जिनके लिए सरकार से आदेश होगा। यानी सरकार की कृपा पात्र कंपनियां ये लोन लेंगी। ऐसे में बैंकों के हाथ भी बंधे होंगे। ऐसे ही मामलों में घोटाले की ज्यादा संभावना होती है। जब इस तरह के लोन बांटे जाते हैं तो फर्जी कंपनियां खड़ी की जाती हैं और राजनीतिक दबाव या बैंकों के आला अफसरों को सुरा-सुंदरी सप्लाई कर लोन ले लिया जाता है।

इधर, पिछले कुछ वर्षों से आरएसएस समर्थक लघु और मझोले उद्योगों के संगठन फरीदाबाद समेत तमाम औद्योगिक शहरों में खड़े हो गए हैं। इन संगठनों से जुड़े लोग बाकायदा अपने संगठन के कार्यक्रमों में आरएसएस के बड़े पदाधिकारियों को बुलाते हैं। जाते समय उपहारों से लदे ये पदाधिकारी गदगद होकर जाते हैं। फरीदाबाद में अब तमाम नए उद्योगपति आ गए हैं या उनके बेटों ने कमान संभान ली है। लेकिन किसी समय इसी फरीदाबाद में सुदर्शन सरीन का सिक्का चलता था। उसके पास सेक्टर 24 में एक छोटी सी फैक्ट्री थी। जिसमें काम कम होता था लेकिन संघ से जुड़ी गतिविधियां ज्यादा होती थीं। उस समय सुदर्शन सरीन ने कई कार्यक्रमों में संघ के पदाधिकारियों को बुलाया। सरीन के ही संगठन का धंधा अब दूसरे चला रहे हैं।

कहां गई जोखिम की बातें

अगर जनता को याद हो तो 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता संभाली तो उस समय उन्होंने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा था कि कांग्रेस ने तमाम फर्जी कंपनियों को अपने शासनकाल में लोन बांटे। लेकिन तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन कुछ और ही कह रहे थे। उनका कहना था कि बैंकों से लोन डकारने वाले लोग बड़े उद्योगपति हैं। उन्हीं के समय आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को एक सूची भेजी थी, जिसमें वे बड़े नाम थे जिन्होंने लोन डकारे हुए थे। मोदी सरकार इस बात पर और उस समय प्रस्तावित नोटबंदी जैसे कुछ अन्य मुद्दों पर राजन से खफा हो गई।

मोदी ने राजन की विदाई तय कर दी। उसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के जरिए उन कंपनियों पर छापे पड़े, जिनके बारे में मोदी सरकार ने प्रचार किया था। लेकिन इस घोटाले के केंद्र में गुजरात के दो बड़े व्यापारी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी भी आ गए। इन लोगों ने पंजाब नैशनल बैंक को तगड़ी चोट दी और देश से फरार हो गए। अभी तक फरार हैं। उस समय एक फोटो और वीडियो बहुत चर्चित हुए थे। एक फोटो में नीरव मोदी उस सरकारी दल में नजर आ रहा है जो मोदी के नेतृत्व में विदेश यात्रा पर गया था। एक वीडियो सामने आया था, जिसमें एक सरकारी प्रोग्राम में मेहुल चौकसी बैठा हुआ और मोदी ने उसका नाम लेकर अपने मेहुल भाई संबोधित किया था।

 

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