बीते मार्च के मात्र 10 दिन के लॉकडाउन में ही हरियाणा की खट्टर सरकार का खजाना रिक्त हो चुका है, कर्मचारियों को वेतन व पेंशनर्स को पेंशन देने के लिये केन्द्र सरकार से जुगाड़बाज़ी करके 15-20 दिन की देरी से वेतन आदि का भुगतान किया गया

बीते मार्च के मात्र 10 दिन के लॉकडाउन में ही हरियाणा की खट्टर सरकार का खजाना रिक्त हो चुका है, कर्मचारियों को वेतन व पेंशनर्स को पेंशन देने के लिये केन्द्र सरकार से जुगाड़बाज़ी करके 15-20 दिन की देरी से वेतन आदि का भुगतान किया गया
April 26 09:11 2020

खट्टरो कुछ तो शर्म करो,

और कितना लूटोगे

चंडीगढ (म.मो.) पहले से ही संतप्त एवं भुखमरी के कगार पर खड़े किसान से हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर कह रहे हैं कि वे मंडी में लेकर आ रहे अपने गेहूं में से पांच किलोग्राम प्रति क्विंटल उनकी सरकार को दान कर दें। मुद्रा की भाषा में कहें तो यह करीब 96 रुपये प्रति क्विंटल पड़ता है। यानी सरकार जो गेहूं 1925 रुपये प्रति क्विंटल खरीदने का खोखला दावा कर रही है, उक्त कटौती के बाद यह भाव करीब 1829 रुपये प्रति क्विंटल ही रह जायेगा तो किसानों की मेहनत की सीधी लूट होगी। मगर राज्य भर के किसान, चन्द भक्तों को छोडक़र, इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। यह कोई थाली बजाने या मोमबत्ती जलाने का काम नहीं है, यह तो सीधे किसान को ठगने की साजिश है।

किसानों के अलावा दिल्ली में बैठे बड़े खट्टर इस कोरोना संकट को युद्ध के समान बता कर छात्रों से 5-5 रुपये सरकारी कर्मचारियों से एक-एक दिन का वेतन तथा महिलाओं से अपने जेवरात मोदी फंड में दान करने का आह्वान कर रहे हैं। हां, अब ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा फंड’ के सथान पर ‘प्रधानमंत्री केयर फंड’ हो जाने के बाद यह सीधे मोदी $फंड हो गया है।  मोदी इसे चाहे जैसे भी खर्च करे; चाहे बिहार के आगामी चुनाव में खर्चे या देश में संघ के जहरीले एजेंडे को प्रचारित करने पर खर्च करें, उन्हें कोई पूछने वाला नहीं होगा।

देश भर के तमाम सरकारी कर्मचारियों का एक-एक दिन का वेतन तो सरकार ने जबरन डकार ही लिया है, अब योजना यह है कि वे सब आगामी एक वर्ष तक ऐसे ही हर माह एक दिन का वेतन काटने की भी सहमति प्रदान कर दें। अगले माह मिलने वाला महंगाई भत्ता तो पहले ही रोक दिया गया है। संभावनायें तो यहां तक व्यक्त की जा रही हैं कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन में भी कटौती हो सकती है।

सवाल यह भी उठ रहा है कि 20 रुपये के भाव बिक  सकने वाला डीज़ल-पेट्रोल 70 रुपये प्रति लिटर बेच कर भी जिस सरकार का पेट नहीं भर रहा तो यह सारा पैसा आखिर जा कहां रहा है? रिजर्व बैंक का आरक्षित फंड पहले ही डकारा जा चुका है। तमाम बैंकों की हालत दिन-ब-दिन पतली होती जा रही है। लोग अब बैंकों में पैसा रखने से भी घबराने लगे हैं। अपने पैसे को सुरक्षित रखने के नये-नये उपाय सोचे जा रहे हैं। जनता से यह रहस्य छिपा नहीं है कि 2014 तक यानी मनमोहन सरकार के समय तक बैंकों को जो एनपीए मात्र दो लाख करोड़ था, वह आज चार गुणा बढ कर आठ लाख करोड़ हो चुका है। दिल्ली के सबसे पॉश एवं कीमती इलाके में 800 करोड़ की लागत से बना भाजपा का पंचतारा कार्यालय कोई मंत्र-तंत्र से नहीं बल्कि जनता की लूट से ही बना है। अम्बानियों, अडानियों की धन-सम्पदा दिन दूणी रात चैगुणी ऐसे ही नहीं बढ रही।

बीते मार्च के मात्र 10 दिन के लॉकडाउन में ही हरियाणा की खट्टर सरकार का खजाना रिक्त हो चुका है, कर्मचारियों को वेतन व पेंशनर्स को पेंशन देने के लिये केन्द्र सरकार से जुगाड़बाज़ी करके 15-20 दिन की देरी से वेतन आदि का भुगतान किया गया। अब देखना है कि मई माह में ये सब भुगतान कहां से और कैसे हो पायेंगे? ऊपर से गेहूं की खरीद का हरियाणा सरकार के हिस्से का, भुगतान भी सैंकड़ों करोड़ रुपये का होना है। इसे टालने व लम्बा खींचने के लिये सरकार खरीदारी के समय लम्बा खींचती जा रही है। पूरे राज्य भर में डॉक्टरों, मास्टरों, क्लर्कों आदि के तमाम तरह के हज़ारों पद केवल इसलिये खाली पड़े हैं कि वेतन न देना पड़े। वेतन की यह बचत राज्य पर कितनी भारी पड़ रही है, इसकी न तो शासकों को कोई समझ है न चिंता। हां अपनी ऐयाशियों के लिये करोड़ों-करोड़ की कार सैंकड़ों करोड़ हवाई जहाज व हेलीकॉप्टर खरीदने में कोई कंजूसी नहीं की जा सकती। अपने चमचों व भक्तों को पालने पोसने के लिये चेयरमैनों व सलाहकारों की अच्छी-खासी पलटन  जनता की छाती पर छोड़ रखी है।

शासकवर्ग की मूर्खता एवं लापरवाही से कोरोना संकट में घिरे देश की जनता से अब ये लोग अपील करते हैं कि वे भूखों को भोजन करायें उनकी मदद करें और दान सरकार को देकर, देशहित में मोदी जी के हाथ मजबूत करें। लेकिन इस संकट की घड़ी में भी सरकार अपनी किसी भी फिजूल खर्ची पर अंकुश लगाने की कोई बात नहीं कर रही। यदि सरकार अपनी विज्ञापनबाज़ी, विदेशी दौरे, अपनी स्वयं की सुरक्षा के नाम पर की जाने वाली फिजूल खर्ची को बंद कर दे तो लाखों करोड़ यूं ही बच जाते हैं। परन्तु इन्हें बचाने की क्या जरूरत है इन्हें तो ‘देश हित’ के नाम पर देश की ऐसी-तैसी करने से मतलब है।

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Mazdoor Morcha
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