पुलिस पर दंगाइयों की तरफ़ होने के आरोप बेबुनियाद हैं, पुलिस अब खुद दंगाई है, मौका मिलते ही साबित करेगी….

पुलिस पर दंगाइयों की तरफ़ होने के आरोप बेबुनियाद हैं, पुलिस अब खुद दंगाई है, मौका मिलते ही साबित करेगी….
September 11 02:54 2023

विवेक कुमार

दो रोज पहले जनसत्ता अखबार की हेडिंग पढ़ी जिसमे उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने अपनी पुलिस को निर्देश दिए कि ‘हिन्दू पांचाग और चंद्रमा की गतिविधि के मुताबिक ड्यूटी करें पुलिसकर्मी’। इसमे वे जोडऩा भूल गए कि हिन्दुत्व मानसिकता के मुताबिक ड्यूटी करें। हालांकि इसमे जोडऩे की जरूरत नहीं है, पुलिस करती वही है। जोड़ देते तो लोग नंगे होकर कह देते कि नंगई हो रही है।

नूह में दंगे हुए, हमेशा की तरह सरकार समर्थित गुंडों ने पुलिस सुरक्षा में दंगों को अंजाम देने का बीड़ा उठाया, पर इस दफा पिट गए। रोते बिलखते सरकार में बैठे अपने माई-बाप के पास गए कि इज्जत बचा लो, गुट के लौंडे इज्जत नहीं करेंगे वरना। नेता जी ने भी इन्ही के दम चुनाव लडऩा है कमाई करनी है। बस फिर क्या, पुलिस को कहा जीप से उतरो और बुलडोजर पर चढ़ जाओ। जहां मुसलमानों का घर तोड़ तोड़ा, वहां दुकान भी तोड़ दी, तोड़ते हुए याद आया, अरे दो चार सरकारी धर्म वालों के घर-दुकान भी तोड़ कर मामला निष्पक्ष दिखा दिया जाए वरना लिबरांडू मीडिया वाले कह देंगे नाइंसाफी हुई।

लिबरांडू भी कहां मानने वाले थे, पकड़ लाए मामला यूट्यूब पर और लगे बुलडोजर के पहिये में पिन घुसाने। पुलिस ने आरोप बेबुनियाद बताए, जबकि मामले की बुनियाद तो सालों से नग्न खड़ी है, ठीक नेता जी की तरह। सबने देखा कि सिस्टम नंगा खड़ा है पर ना जाने क्यों नंगे ने जिद ठान ली है कि नंगा घूमूंगा पर मानूंगा नहीं कि नंगा हूं। दंगा तो बहुत बड़ा मामला है, शर्तिया तौर पर कह सकते हैं कि हर मामले में सिस्टम नंगा ही खड़ा रहा है। क्योंकि मामला पुलिस से शुरू हुआ है तो जिसके जितने सितारे वो उतना ही बड़ा नंगा, तो शुरू करते हैं अपनी आपबीती से।

सितम्बर 22, वर्ष 2019, मैं दिल्ली में अपना छोटा सा मकान बनवा रहा था। रोज कुछ पुलिस वालों से पाला पड़ता था। इसी पाले में कुछ ने गलतफहमी में न जाने मुझे कितना बड़ा आदमी समझ लिया और अचानक एक दिन 5 गुंडे मेरे घर में सुबह । बजे घुस आए। मुझे अकेला पाकर उठा ले गए। कहा कि हम सीबीआई से हैं। पहले तो खुद पर फक्र हुआ कि हाय यही है वो सीबीआई जिसको सुन सुन कर मैं बड़ा हुआ। थोड़ी देर तो उन पीडि़तों पर अचानक दया आने लगी कि इसी सीबीआई से अपने मामले की निष्पक्ष जांच की उम्मीद करते हैं वे? बड़े ही भोले हैं। बहरहाल, बिना नंबर की टाटा सूमो में मुझे डालकर घूसों  की बौछार शुरू हुई और फिर सवाल। पहले घूंसे का सवाल याद है, ‘पुलिस के खिलाफ लिखता है? ढीशुम। थोड़ा होश आया तो पाया तथाकथित सीबीआई वाले गुडग़ांव-फरीदाबाद हाइवे वाले टोल नाके पर टोल वाले को देर से गेट खोलने के लिए उसकी मां-बहन का पता पूछ रहे थे। तथाकथित सीबीआई वालों के सवालों के स्तर ने मुझे यकीन दिलाया कि ये सीबीआई तो नहीं ही हो सकती और उनकी सच्चाई हरियाणा पुलिस क्राइम ब्रांच निकली। बाद में उन्हे जो मेरे बारे में मालूम चला उसका शायद उन्हे अंदाजा नहीं था।

यहां से गाड़ी के स्टेयरिंग का कंट्रोल सबसे पीछे बैठे हुए भी मेरे हाथ आ गया। घूंसे मारने वाले सिपाही कपिल त्यागी ने अचानक मुझसे मेरे जबड़े का हाल पूछा और सबसे आगे बैठे सब इन्स्पेक्टर रविंदर से कहा ‘जनाब, कदि जूस जास वी पला दया क्रो। तुरंत जूस के 6 ग्लास आए। जूस वाला मुसलमान था सो यहां से गाड़ी में चर्चा का विषय मुस्लिम धर्म बन गया। एसआई रविंदर कालांतर में काफी नामी अफसर बने और उन्होंने मेरे जैसे टुच्चे आदमी उठाने से अपना कैरियर शुरू कर सीधे दारू की दुकान के मालिक को उठाने और उसकी दुकान में डाका डालने का काम किया। इन सबके बीच अचानक कपिल की नजर रोड पर पीछे आती एक गाड़ी पर पड़ी जिसे सर्वसम्मति से रुकवा लिया गया। गाड़ी में पड़े बॉडी बिल्डिंग में इस्तेमाल होने वाले प्रोटीन के डब्बे को पुलिस का रोब दिखा कर खींच लिया गया। इन्ही सब छोटी-मोटी डकैतियों, माफ करिए पुलिस की मुस्तैद चेकिंग का हिस्सा बनता हुआ मैं सेक्टर 30 फरीदाबाद की पुलिस लाइन में पहुंचा। मुझसे कहा गया कि आराम से यहीं रहो।

कपिल ने कहा, ‘हैं भई विवेक भाई, यार तुम मोदी जी के खिलाफ इतना लिखा करो हो, पुलिस के भी, यार देखो तो सही मोदी जी ने इन मुल्लों को कितना टैट किया हुआ है। इन सब बातों के बीच एक मोटा व्यक्ति कमरे में दाखिल हुआ और मेरे पत्रकार बुद्धि ने उसके और पुलिस की बातचीत को सुन कर ये तय किया कि ये व्यक्ति एक कार चोर है। उसने पुलिस को बताया कि कोई नया कार चोर इलाके में आ गया है जो मुस्लिम भी है। इतना सुनना था कि सबके चेहरे तमतमा गए और हिन्दू का पुलिस जाग गया। मेरी कस्टडी किसी और को सौंप कर कपिल और एक अन्य सिपाही अपना हिस्सा लेने भागे।
एक अन्य सिपाही जाखड़ ने अपने मोबाइल में एक विडिओ दिखाते हुए बताया कि कैसे मथुरा मंदिर में कृष्ण जी की शान में मोर नाच रहा है। क्योंकि कृष्ण जी भगवान हैं और उनके मंदिर के आधे हिस्से पर मस्जिद बना कर मुसलमानों ने कब्जा किया हुआ है इसलिए मुसलमानों को जिस दिन मौका आएगा काटा जाएगा।

अचानक इन सब बातों के बीच एक इन्स्पेक्टर रैंक के व्यक्ति को मालूम चला कि मेरी एक दोस्त मुस्लिम है और उनका सारा जोर इस बात पर आ गया कि क्यों न मैं उससे शादी कर लूं और उनकी एक लडक़ी अपने हिन्दू धर्म में ले आऊं, और अगर ऐसा न कर सकूं तो कम से कम उसके साथ संभोग तो कर ही लूं। ऐसा करने पर मैं 100 गाय दान करने के मुकाबले का काम करूंगा। इतना सुनना था कि लगभग 10 पुलिस वालों की नजर में मेरा ओहदा एक समाज सुधारक का बन गया। मुझे दिए गए खाने की रोटी और दाल में अलग से घी भी डलवाया गया और फिर सोने के लिए एसी भी चलाया गया। एक पूरा दिन रखने के बाद मुझे छोड़ दिया गया। वहां बिताए पूरे दिन में एक भी पुलिस वाला मुझे ऐसा नहीं दिखा जो संविधानपरक सोच रखता हो। बेशक वह किसी भी रैंक का पुलिस वाला था। साफ तौर पर मैंने पाया कि वे सब मानसिक रूप से सांप्रदायिक थे। उस समय मेरे मन में खयाल आया कि कहीं मैं आज मुस्लिम होता तो ये अपने खिलाफ लिखने के आरोप लगा कर मेरे साथ क्या करते?

इस घटना के बाद मुझे इसमे कोई शक नहीं रहा कि हर दंगे में पुलिस हिन्दू दंगाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पत्थर और गोलियां बरसाती है (रैफरेंस दिल्ली दंगा)। थाने में लाए जाने वाले किसी भी मुस्लिम की मौत पुलिस के मन में उसके प्रति बसी नफरत की मार से ही होती है। किसी भी मामले में मुस्लिम होना ही अपराधी होने के लिए काफी है और जिसका जीवंत उदाहरण उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे होनहार नौजवानों को बेल तक नहीं मिलना और वहीं दूसरी तरफ़ मोनू मानेसर सरीखे अवैध उगाही और हत्या के मामले में वांछित अपराधी का गिरफ्तार तक न होना है। मैं सोचता था कि इतनी तो गाय नहीं हैं जितने अचानक से गौसेवक पैदा हो गए। फिर जब पुलिस ने यह दिव्य ज्ञान दिया तो समझ आया कि मुस्लिम लड़कियों से बलात्कार को आजकल गोदान की श्रेणी में रखा गया है। तो लाज़मी है कुंठा से भरे समाज में गौसेवक कुकुरमुत्ते की तरह पैदा होंगे ही। और अगर इसी बात के पैसे भी मिल रहे हों तो बिना नसबंदी इनकी पैदाइश भी नहीं रुकेगी। प्रेमचंद ने अपने कालजयी उपन्यास गोदान के नायक होरी के साथ अन्याय किया जो उसे इस तरह का गोदान न करने दिया।

मेरी इस सोच को जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व पुलिस महानिदेशक एसपी वैद के ट्वीट जैसे मामलों ने और मजबूत ही किया है, जिसमे वे कहते हैं कि चंद्रयान 3 जब चांद पर उतरा तो वहां एक बोर्ड पर लिखा था कि ‘यह जमीन वक्फ बोर्ड की है’। ऐसी मानसिकता का इंसान डीजीपी जम्मू कश्मीर था। इस आदमी के दिमाग में जो जहर है क्या वो मुस्लिम बाहुल्य कश्मीरी लोगों पर उगला नहीं गया होगा? इसमे क्या शक रह जाता है कि क्यों कश्मीर में शांति नहीं स्थापित होती।

दो रोज पहले एक वीडिओ देख रहा था जिसमें हिन्दुत्व का एक सिपाही कह रहा था कि उसे संविधान में यकीन नहीं, इसलिए इसे बदलने का समय आ गया। ऐसा ही करने की सलाह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बीबेक देबरॉय ने भी दिया। क्या शानदार उदाहरण है समानता का, जिसमे आर्थिक सलाहकार और सडक़छाप छपरी की एक ही सोच है। वैसा देखा जाए तो बात सही ही कह रहा है, यकीन होगा भी किसे? अनुच्छेद 14, कानून के समक्ष सबको समान मानता है जबकि कानून लागू करवाने वाला हवलदार अगले ही पल अपने डंडे से इसकी व्याख्या कर देता है।
पर एक मिनट, मैं यह सब क्यों लिख रहा हूं? क्या मैंने आपको कोई नई बात बता दी जो आपको मालूम नहीं थी। क्या आप नहीं जानते कि नंगा एकदम नंगई पर उतारू है? और नहीं जानते तो आप भी उतने ही नंगे हैं। संविधान और लोकतंत्र खतरे में है जैसी लफ्फाजी का अब कोई मतलब नहीं। खतरे में मुसलमान है, और दूसरी पंक्ति में खड़े बाकी भी तभी तक खुद को सुरक्षित महसूस करें जब तक पहली लाइन में खड़ा मुसलमान गिर नहीं जाता।

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