कोर्ट ने वरूण को न्यायिक हिरासत में भेजा, पुलिस हाथ मलती रह गयी
फरीदाबाद (म.मो.) पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 21 मई को प्रात: छ: बजे वरूण श्योकंद को चंडीगढ से गिरफ्तार करके कद्दू में तीर मार लिया। विदित है कि स्थानीय विधायक एवं कैबिनेट मंत्री मूलचंद शर्मा के दवाब में उनके खिलाफ एक फर्जी मुकदमा दायर किया था, जिसका पूरा विवरण गतांक में प्रकाशित किया जा चुका है। इसके विरुद्ध श्योकंद ने स्थानीय सैशन कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी जिसे अपनी आदत के मुताबिक कोर्ट ने ठुकरा दिया। अगले कदम के तौर पर श्योकंद ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में याचिका दायर की जिसकी सुनवाई 21 तारीख को ही 10-11 बजे होनी थी। इसी बीच पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके अपनी पीठ थपथपाई।
सवाल यह पैदा होता है कि यदि श्योकंद उस दिन पुलिस के हाथ न आते तो क्या आफत आ जाती? यदि हाई कोर्ट अग्रिम जमानत न देती तो वे स्वयं आत्म समर्पण कर देते और यदि जमानत मंजूर हो जाती तो अदालती आदेश के तहत उन्हें शामिल तफतीश होने के लिये पुलिस के सामने हाजि़र होना ही पड़ता। दरअसल यहां पुलिस के ऊपर भारी राजनैतिक दबाद यह था कि श्योकंद को पहले लम्बे पुलिस रिमांड पर लेकर टॉर्चर किया जाय, फिर जेल भेज कर जमानत नहीं होने देंगे। यानी पुलिस का असली उद्देश्य मुकदमे की तफ्तीश करना न होकर केवल श्योकंद को रगड़ा लगा कर मूलचन्द को खुश करना रहा।
चंडीगढ में गिरफ्तारी के बाद, हसब जापता श्योकंद की स्थानीय पुलिस थाने में रपट रोजनामचा दर्ज करके स्थानीय कोर्ट में पेश करके राहदारी रिमांड लेकर पुलिस को यहां आना चाहिये था, लेकिन गिरफ्तार करने वाली पुलिस पार्टी ने ऐसा कुछ करने की अपेक्षा सरपट दौड़ते हुए करीब 10 बजे (प्रात:) तो यहां पहुंच गयी। करीब 11-12 घंटे अपनी हिरासत में रखने के बाद पुलिस ने सायं 5-6 बजे उन्हें न्यायिक मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करते हुए पांच दिन का रिमांड मांगा गहन पूछताछ के लिये। वरूण के वकील शेखर आनंद गुप्ता ने पुलिस के हर तर्क का जवाब ठोक कर देते हुए कहा कि बीते 12 घंटे से श्योकंद पुलिस की हिरासत में है और वे खुद स्वीकार कर रहे हैं कि रास्ते भर उन्होंने गहन पूछताछ की है तो अब कौन सी पूछताछ रह गयी? इसके बाद पुलिस का थोड़ा मान रखते हुए कोर्ट ने एक दिन का रिमांड तो दिया लेकिन इस शर्त के साथ कि इसी ‘गहन पूछताछ’ के लिये दोबारा रिमांड नहीं दिया जायेगा।
लेकिन मंत्री मूलचंद के इशारों पर नाचने वाली पुलिस भला कहां मानने वाली थी। लिहाजा 22 मई की शाम को छ: बजे श्योकंद को कोर्ट में पेश करते हुए पुलिस ने फिर से पांच दिन का रिमांड मांग लिया। इस बार ‘गहन पूछताछ’ के साथ-साथ उस दस्तावेज़ की असल प्रति बारामद करने की भी बात कही गयी थी जिसे पुलिस नकली बता रही थी। दरअसल यह वह दस्तावेज है जो श्योकंद ने सन् 2011 में बिजली विभाग का एक ठेका प्राप्त करने के लिये जमा कराया था। यह दस्तावेज और कुछ नहीं केवल इन्कम टैक्स रिटर्न की प्रति है जिसे पुलिस आयकर विभाग से भी प्राप्त कर सकती है। इस दस्तावेज़ को लेकर बिजली विभाग द्वारा लिखवाई गयी एफआईआर में कहा गया है कि श्योकंद ने टेंडर हथियाने के लिये अपनी आर्थिक हैसियत का गलत विवरण दिया था। इसके जवाब में श्योकंद के वकील शेखर ने कोर्ट को बताया कि उस वक्त के दस्तावेज़ स्पष्ट बता रहे हैं कि श्योकंद की टर्नओवर तीन करोड़ से भी अधिक की थी। इसके अलावा श्योकंद ने 87 लाख की बैंक गारंटी भी दे रखी थी।
सबसे बड़ी बात कोर्ट को यह भी बताई गयी कि काम पूरा होने के बाद तमाम सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा जांच एवं निरीक्षण करने के बाद काम को दुरूस्त पाये जाने के बाद ही श्योकंद को पेमेंट की गयी थी। यह सारा काम 2011 में ही निपट चुका था। करीब 9 साल बाद मामले को तब छेड़ा गया जब श्योकंद ने मंत्री मूलचंद के घोटालों को प्रकाशित करना शुरू किया। सबसे मजेदार बात तो कोर्ट को यह बताई गयी कि इस मामले की जांच बिजली विभाग ने अपने डीएसपी विजिलेंस से भी कराई थी जिन्होंने श्योकंद को बेकसूर पाया था मौजूदा एफआईआर में पुलिस अपने ही विभाग के डीएसपी की इस कार्यवाही को ‘कैलेस बिहेवियर’ यानी गलत अथवा बेअदबी पूर्ण बर्ताव लिख रही है। उक्त दस्तावेज जो इतना ही जरूरी है तो पुलिस अथवा उसके डीएसपी विजिलेंस ने उसी वक्त क्यों नहीं बरामद कर दिया। दर-असल ऐसा कोई दस्तावेज है ही नहीं।
वकील शेखर के तर्कों से कोर्ट सहमत हो गयी तो पुलिस अपने उसी पुराने तर्क ‘गहन पूछताछ’ पर लौट आई। इस पर कोर्ट ने साफ कह दिया कि इस बाबत वे 21 मई को ही लिख चुकी र्हैं कि वे कोई रिमांड नहीं देगी। जो वह पहले ही लिख चुकी है। फैसला सुनने के लिये वहां मौजूद श्योकंद के दर्जनों समर्थकों में कोर्ट के इस फैसले से खुशी की लहर दौड़ गयी और कहने लगे कि कोई तो मैजिस्ट्रेट है जो पुलिस एवं प्रशासन के दबाव से मुक्त है।
बेशक कोर्ट ने पुलिस रिमांड नहीं दिया लेकिन जमानत भी तो नहीं दी। अब हफ्ते दो हफ्ते, महीने दो महीने में जब भी जमानत होगी तब होगी। इसके बाद वर्षो तक मुकदमा कोर्ट में लटकता रहेगा और श्योकंद कोर्ट के धक्के खाता रहेगा। कोर्ट से बरी होने के बाद इस देश का कानून किसी अधिकारी को यह पूछने वाला नहीं है कि उसने वरूण के साथ ही यह सब ड्रामा क्यों किया?