प्रदूषण के लिये किसानों की पराली नहीं सरकारी निकम्मापन व भ्रष्टाचार जिम्मेवार है
फरीदाबाद (म.मो.) जिंदा रहने के लिये हर जीव को शुद्ध हवा सबसे जरूरी है। कोई भी जीव, भोजन बिना कई हफ्ते, पानी बिना कुछ दिन निकाल सकता है परन्तु सांस लिये बिना दो मिनट नहीं निकाल सकता। जब सांस लेने वाली हवा ही शुद्ध न होकर प्रदूषित एवं जहरीली हो तो कोई प्राणी कितने दिन जीवित रह पायेगा? यह प्रदूषित वायु एक प्रकार का धीमा जहर है जिसे ग्रहण करके मौत की ओर बढना जनता की मजबूरी हो चुकी है।
पानी सिर से ऊपर निकल जाने के बाद चेती सरकार ने इस प्रदूषण का कारण किसानों द्वारा पराली जलाया जाना बताया र्है। दूसरा कारण लोगों द्वारा जनरेटर चलाना व सडक़ों पर वाहनों का बढना भी माना जा रहा है। लेकिन हकीकत यह है कि पराली जलाने से मोदी सरकार के अनुसार चार प्रतिशत तथा अन्य विशलेषकों द्वारा 11 प्रतिशत माना जा रहा है। यदि सरकार ने समय रहते इस ओर ध्यान दिया होता और पराली के इस्तेमाल का सही विकल्प खोजा होता तो यह सब न होता।
रही बात जनरेटरों की तो इनके इस्तेमाल पर सरकार ने बेशक पाबंदी लगा दी है। लेकिन सरकार से कोई यह तो पूछे कि लोग जनरेटर चलाते क्यों हैं? क्या लोगों को जनरेटर की अपेक्षाकृत महंगी बिजली जलाना ज्यादा अच्छा लगता है? नहीं, बिल्कुल नही। सरकार की नालायकी, निकम्मेपन व भ्रष्टाचार के चलते बिजली की निर्बाध सप्लाई न मिलने के कारण लोगों को जनरेटरों का सहारा लेना पड़ता है। इसी शहर में अनेकों ऐसी सोसायटियां हैं जिनको बिजली कनेक्शन मिले ही नहीं, वे पूरी तरह जनरेटरों पर निर्भर हैं। किसी समारोह के लिये अस्थाई बिजली कनेक्शन लेने के झंझट में पडऩे की बजाय लोग जनरेटर का सहारा लेना पसंद करते हैं।
सबसे अधिक खतरनाक प्रदूषण धूल उडऩे से होता है धूल के अति महीन कण एक बार हवा में चढ़ जायें तो आसानी से नीचे नहीं गिरते। इस धूल का सबसे बड़ा स्रोत भवन निर्माण सामग्री के अलावा सडक़ें, खासकर टूटी सडक़ें व उनके कच्चे रेतीले किनारे हैं। इस शहर में शायद ही कोई ऐसी सडक़ हो जिस पर बने गड्ढों से धूल न उड़ती हो। रही सही कसर स्मार्ट सिटी के नाम पर खोद मारी सडक़ों ने पूरी कर दी है। झाड़ू से उडऩे वाली धूल को रोकने के नाम पर नगर निगम ने करोड़ों रुपये की सकर मशीनों वाले वाहन खरीद डाले जो झाड़ू का काम करते हैं। परन्तु ये सकर मशीने केवल वहां सफल हो सकती हैं जहां सडक़ें सही सलामत हों तथा उनके कच्चे किनारों पर मिट्टी न पड़ी हो। यहां जिन हालात में ये सकर मशीने चलाई जा रही हैं, वे शीघ्र ही कबाडख़ाने में पहुंच जायेंगी।
सार्वजनिक परिवहन की कमी तथा सडक़ों पर पार्किंग की वजह से लगने वाले जाम भी प्रदूषण को खूब बढा रहे हैं। विद्युतचालित ट्रेनों की बजाय सडक़ परिवहन को बढावा देकर भी वायु प्रदूषण को बढाया जा रहा है। सरकार द्वारा बनाये गये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उगाही करने वाले संस्थान बन कर रह गये हैं तो प्रदूषण कैसे नहीं बढेगा?