फरीदाबाद (ममो) : धीरज नगर टीटू कालोनी थाना पल्ला की झुग्गियों में बीते 19 दिसम्बर को आग लगने से 12 झुग्गियाँ जल कर खाक हो गईं और इनमे बिट्टू (पाँच साल) और टीटू (तीन) साल के साथ-साथ दो बकरियाँ भी जल कर मर गईं।
30 वर्ष के राजीव और उनकी पत्नी अमृता नालंदा बिहार के रहने वाले हैं और वहाँ कोई रोजगार न मिलने के चलते फरीदाबाद में पिछले 8 साल से कचरा बीनने का काम करते थे। कुछ दिनों से फरीदाबाद में घर-घर कचरा उठाने वाली कंपनी ईको ग्रीन की गाडिय़ों में कचरा उठाने का काम करते रहे। इन्ही की तरह के करीब 70 परिवार टीटू कालोनी में कचरा उठाने का काम करते हैं। क्योंकि कचरे को फैलाना पड़ता है इसलिए इन लोगों को कोई मकान किराये पर लेकर रहना सुहाता नहीं और न ही कोई इन्हे किराये का मकान रिहाइशी इलाके में देता है।
राजीव और अन्य साथियों ने मिलकर पल्ला गाँव के एक आदमी से उसका खेत 15 हजार रुपये महीने किराये पर ले लिया। खेत में पन्नी की झुग्गियाँ बना कर 70 परिवार अपना जीवन बसर करते हैं। जो कचरा बीन कर दिन भर में इकठ्ठा होता है उसे खुले में झुग्गी के सामने ही फैलाया जाता है ताकि वह सूख सके और बाद में रीसाइकिल करने वाली कंपनियों को उनकी जरूरत के मुताबिक बेच दिया जाता है जो दाम कंपनियां तय करती हैं उनपर। इस तरह राजीव और अमृता दिन के 150 से 200 रुपये कमा पाते हैं।
सुबह 7:40 पर अचानक राजीव को पड़ोसियों का फोन आया कि झुग्गी में आग लग गई। राजीव ने बताया कि 100 नंबर मिलाने और फायर वालों को फोन करने पर न किसी ने फोन उठाया और न ही खुद से ही कोई आया। किसी तरह आग बुझाई गई। आग में राजीव के दोनों बच्चे फंस गए थे जिन्हे बचाने के प्रयास असफल रहे। साथ ही दो बकरियाँ भी जल कर मर गईं। इन सबके साथ-साथ झुग्गी में रखे जमा पैसे और बर्तन से लेकर कपड़े सब जल गया। कड़ाके की इस ठंड में 12 झुग्गी वाले खुले में रहने को मजबूर हैं और उनके पास किसी तरह की कोई मदद प्रशासन की तरफ से अब तक नहीं पहुंची है। आस-पड़ोस के लोगों और कुछ समाज सेवी संस्थाओं के प्रयास से एक टेंट लगाया गया है और सामूहिक रसोई से उनका गुजारा चल रहा है।
मौका-ए-वारदात पर आए पल्ला थाना के एसएचओ ने उल्टे इन गरीबों को डांट पिलाते हुए कहा कि तुम कबाड़े में रहते हो तो यही होगा। यूं तो टाउन प्लानर के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी से पूछा जाना चाहिए कि सबका साथ सबका विकास में ये लोग कैसे छूट जाते हैं। इस एक घटना ने प्रधानमंत्री मोदी की योजनाओं की कलई खोल कर रख दी।
200 रुपये कमाने वाले व्यक्ति के लिए 700 रुपये का सिलेंडर लेकर खाना बनाना असंभव काम है। मन मोटा करके सिलेंडर लेने की सोचे भी तो उसका कनेक्शन ले पाना लंका जलाने से कम नहीं और ले भी ले तो जिस दाम का सिलेंडर मोदी जी बेच रहे हैं उसे खरीदना अब अच्छे अच्छों के बस की बात नहीं। एकमात्र उपाय पास के जंगल से रविवार के दिन हफ्ते भर की लकड़ी इकठ्ठा करके पूरे हफ्ते चूल्हे पर खाना बनता है। अधिक संभावना है कि चूल्हे की ही कोई चिंगारी छिटक कर पन्नी में लगी और आग ने राजीव के दोनों बच्चों की जान ले ली।
सवाल है कि जब उज्जवला गैस सिलेंडर का इतना भयानक प्रचार मोदी ने किया था तो क्यों इन्हे सिलेंडर नहीं मिला। पन्नी की झुग्गी में बस रहे राजीव और उनके जैसे लाखों तक प्रधानमंत्री आवास योजना का मकान होता तो तो इनके बच्चे आग में झुलस कर न मरे होते। सारे भारत को स्वच्छ रखने जा जिम्मा जिनके सिर है वे राजीव जैसे लोग ही हैं पर खुद ही अमानवीय हालातों में रहने को अभिशप्त हैं।
शौचालय के नाम पर जंगलों और सडक़ों के किनारे ही ठिकाना मिलता है। जिस स्थान पर ये खाना बनाते हैं वह इतना गंदगी में डूबा है जिसका अंदाजा लगाना संभव नहीं। खैर आग लगी और उसमे दो बच्चे जल कर भस्म हुए। इसपर पूरे फरीदाबाद में शोर नहीं हुआ देश की तो बात ही क्या की जाए। प्रशासन की प्लैनिंग में ही यह लोग शामिल नहीं तो इनके मरने का कोई मुआवजा भी क्यों ही शामिल होगा।
नाम न छापने की शर्त पर एक व्यक्ति ने बताया कि पुलिस ने इन्हें कहा है कि यदि तूने किसी को बताया कि आग चूल्हे से लगी तो तू ही बंद कर दिया जाएगा। अब इन पीडि़तों का कहना है कि आग किसी ऊपरी हवा या मायावी कारणों से लगी है। बस प्रशासन ने अपना गला छुड़ा लिया और इनको भी इसी से संतुष्टि है कि आग मायावी शक्ति ने लगाई क्योंकि इस जमीन पर पहले कब्रिस्तान था। इन्ही अंधविश्वासों में सरकारें चल रही है और देश विकास कर रहा है।