पत्रकार विनोद दुआ के छोटे से चैनल ने डराया भाजपा को, कराई एफआईआर सोशल मीडिया के लिए निर्णायक साबित होगी सरकार की यह गलती

पत्रकार विनोद दुआ के छोटे से चैनल ने डराया भाजपा को, कराई एफआईआर  सोशल मीडिया के लिए निर्णायक साबित होगी सरकार की यह गलती
June 07 05:09 2020

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

नई दिल्ली: जाने-माने पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दिल्ली पुलिस में केस दर्ज किया जाना सोशल मीडिया के इतिहास में टर्निंग प्वाइंट बन गया है। इस एफआईआर से साबित हो गया है कि मोदी सरकार सोशल मीडिया से किस कदर भयभीत है। भाजपा नेताओं की शिकायत पर दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने पत्रकार विनोद दुआ पर फर्जी न्यूज फैलाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की है। विनोद दुआ ने खुद फेसबुक और ट्विटर पर इस संबंध में जानकारी साझा की।

केंद्र में दोबारा सत्ता पाने के बाद मोदी सरकार ने पूरा फोकस मीडिया कंट्रोल पर कर दिया। इसका नतीजा यह निकला कि देश के सारे बड़े-बड़े चैनल और कुछ बड़े अखबार प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सामने रेंगते नजर आए। मोदी सरकार ने किसी मीडिया हाउस को समझाकर काबू किया तो किसी को विज्ञापन और सत्ता का डर दिखाकर काबू किया। अर्नब गोस्वामी, तिहाड़ी सुधीर चौधरी और अंजना ओम कश्यप जैसे तो मुफ्त में ही गिरने को तैयार नजर आए।

सोशल मीडिया का बड़ा काम

प्रधानमंत्री की तीखी आलोचना की वजह से कई पत्रकार नौकरी से हाथ धो बैठे। मीडिया हाउसों ने सरकार के इशारे पर ऐसे पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इन पत्रकारों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए फेसबुक और यूट्यूब पर अपने चैनल शुरू कर दिए या इन प्लेटफॉर्मों पर जो छोटे चैनल शुरू हुए उनमें काम शुरू कर दिया। इन पत्रकारों में सबसे उल्लेखनीय नाम विनोद दुआ, पुण्य प्रसून वाजपेयी और अभिसार शर्मा हैं। इसके अलावा नौकरी खो चुके असंख्य पत्रकारों ने फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जैसे मंचों पर सरकार विरोधी मोर्चा खोल दिया। सरकार और उसके नीति निर्धारक सोशल मीडिया पर चलने वाले चैनलों को इतनी गंभीरता से नहीं ले रहे थे।

लेकिन सोशल मीडिया के दम पर जब शाहीनबाग जैसा आंदोलन शुरू हो गया तो सरकार में घबराहट शुरू हो गई। बहुत बड़ी तादाद में टीवी चैनल देखने वाले दर्शकों का रुख सोशल मीडिया पर चलने वाले चैनलों की तरफ गया। यही नहीं खुद को बड़े अखबार कहने वालों का सरकुलेशन भी तेजी से गिरा, क्योंकि  पाठक सोशल मीडिया पर खबरें पढऩे लगे।

इसके बाद बड़े टीवी चैनलों और अखबारों ने प्रचार शुरू किया कि सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर फर्जी खबर पेश की जा रही है। इसलिए लोग इनके बहकावे में न आएं। लेकिन लोग इनके प्रचार के बहकावे में नहीं आए।

विनोद दुआ पर बचकाने आरोप

भाजपा नेताओं ने पत्रकार विनोद दुआ पर बचकाने आरोप लगाए हैं। शिकायत में कहा गया है कि अमेरिका में ब्लैक लोगों ने वहां राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ जो आंदोलन चलाया, विनोद दुआ ने अपनी खबरों में उसका जिक्र करते हुए भारत में वैसा आंदोलन शुरू करने की सलाह दी। शिकायत के मुताबिक एक तरह से मोदी सरकार के खिलाफ विनोद दुआ ने जनता को भडक़ाने की कोशिश की। …यह अलग बात है कि जनता भडक़ी नहीं। मजेदार बात यह है कि एक तरफ तो दुआ पर फर्जी खबर फैलाने का आरोप है, जबकि शिकायत में अमेरिका की सच्ची घटना का जिक्र किया गया है।

इसके अलावा दुआ पर भाजपा ने आरोप लगाया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आने वाले हैं। …अभी रुकिए, मूर्खता भरे आरोपों की सूची लंबी है। शिकायत में कहा गया है कि भाजपा के शासनकाल में व्यापम जैसे स्कैंडल हुए। विनोद दुआ ने फर्जी रिपोर्ट दिखाई कि देश में सीएए विरोधी 291 स्थानों पर प्रदर्शन हुए और गृह मंत्रालय के मुताबिक सभी शांतिपूर्ण रहे। विनोद दुआ ने खबर दिखाई कि दिल्ली के दंगे 36 घंटे तक काबू नहीं किए जा सके, ये तभी काबू हो पाए जब एनएसए डोभाल ने कार्यभार संभाला। विनोद दुआ ने अपने कार्यक्रम में कहा कि कोरोना, बेरोजगारी और गिरती अर्थव्यवस्था मुख्य विषय नहीं है बल्कि देश में छिन्न-भिन्न होता सामाजिक ढांचा मुख्य विषय है।

इस संवाददाता ने विनोद दुआ से जुड़े ये सारे वीडियो देखे लेकिन किसी में भी फर्जी खबर नहीं पाई गई, जैसा कि भाजपा और दिल्ली पुलिस ने अपनी एफआईआर में यह दावा किया है। कोई भी शख्स एफआईआर के आरोपों पर हंसेगा और लगता है कि अदालत भी इसे एक-दो तारीखों में निपटा देगी।

यह केस टर्निंग प्वाइंट क्यों है

मोदी सरकार की सबसे बड़ी चिंता अब सोशल मीडिया है। जहां उसके खिलाफ माहौल बन रहा है। सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों की तादाद बढ़ रही है। इनमें युवकों की संख्या ज्यादा है। सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ बन रही राय का असर जनता तक भी पहुंच रहा है। सरकार ने लॉकडाउन और कोरोना की आड़ में जो भय पैदा किया और मजदूरों की दुर्दशा की, उसे सोशल मीडिया ने बखूबी उठाया। सरकार तमाम कानूनों के सहारे सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश में लगी हुई है लेकिन कोई न कोई फटा हुआ कोना सामने आ ही जाता है। यूट्यूब पर जिस तरह रोजाना पांच हजार नए न्यूज चैनल आज के युवा खड़े कर रहे हैं, उसने सरकार को चिंतित कर दिया है।

मामूली घटना पर फेसबुक लाइव होने से सरकार परेशान हो जाती है। कोरोना के दौरान हाल ही में योगी सरकार और केजरीवाल सरकार के निकम्मेपन की दास्तान सोशल मीडिया ने सुनाई। विनोद दुआ पर एफआईआर की घटना के बाद उनकी विश्वसनीयता और यूट्यूब पर चलने वाले उनके चैनल की विश्वसनीयता बढऩी ही है। इससे बाकी सोशल मीडिया पर चलने वाले चैनलों पर भी असर पड़ेगा। इसलिए इस घटना को टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा है।

 

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