नेहरू कॉलेज फरीदाबाद पढ़ाई-लिखाई गई भाड़ में सिर्फ रैंकिंग की चिन्ता…

नेहरू कॉलेज फरीदाबाद  पढ़ाई-लिखाई गई भाड़ में सिर्फ रैंकिंग की चिन्ता…
September 05 14:00 2020

फरीदाबाद (म.मो.) कोरोना काल में स्कूल कालेज बंद हैं ऐसे में फरीदाबाद का सबसे बड़े कॉलेज, नेहरु कॉलेज की कोरोना के बाद शुरू होने वाली क्लासेज को लेकर क्या तैयारी है और सरकार से किस प्रकार की गाइड लाइन कॉलेज को प्राप्त हुई हैं। इसका जायजा लेने के लिए मजदूर मोर्चा ने कॉलेज के प्रधानाचार्य ओ पी रावत से मुलाकात की।

प्रिंसिपल ओपी रावत ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण फिलहाल दाखिला लेने की कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है। सरकार के निर्देशानुसार विद्यार्थियों को ऑनलाइन माध्यम से ही सभी शिक्षक पढ़ा रहे हैं। यह पूछने पर कि जब दाखिला ही नहीं हुआ है तो किस आधार पर शिक्षक विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं, इस पर प्रिंसिपल रावत कोई संतोषजनक जवाब न दे सके। आने वाले समय में विद्यार्थियों को लेकर होने वाले एडमिशन के लिए कालेज की तैयारी में सोशल डिस्टेंसिंग और सेनिटाइजर के अलावा कालेज के हाथ में खास कुछ नहीं है।

कॉलेज में कोरोना के दौरान बंद होने के बावजूद सभी शिक्षकों को आना अनिवार्य है । पर जब ऑनलाइन माध्यम से ही पढ़ाना है तो ये काम शिक्षक घर से भी तो कर सकते हैं? प्रिसिपल ने बताया कि शिक्षकों को जिला प्रशासन की ओर से कोरोना से सम्बंधित कार्य भी सौंपे गए हैं जिसमे कि सर्वे करना एक महत्वपूर्ण कार्य है, और इसके लिए उन्हें कालेज आना पड़ता है। वैसे कॉलेज में ऑनलाइन पढ़ाई करवाने के लिए कंप्यूटर लैब उपलब्ध है।

क्या शिक्षकों को किसी किस्म का मेहनताना या अन्य किसी किस्म का भुगतान सर्वे जैसा काम करने के बदले में दिया जा रहा है? क्या उन्हें घर से ऑनलाइन पढ़ाई करवाने की आधारभूत संरचना तैयार करने के लिए किसी किस्म का राशी भुगतान किया गया? प्रिसिपल के अनुसार ऑनलाइन पढ़ाई के लिए उन्हें कालेज ही आना है और यहाँ लैब उपलब्ध है तो किसी अन्य संरचना की क्या आवश्यकता है, साथ ही प्रशासन के सर्वे वाले कार्य के लिए कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जा रहा। ऐसा भुगतान न मिलने पर भी अध्यापकों को कोई शिकायत नहीं क्योंकि वे तो सरकारी कर्मचारी हैं जो भी सरकारी काम कहा जाएगा खुशी-खुशी करेंगे।

प्रिसिपल रावत की ये बात कुछ जंची नहीं। जब अध्यापक को भर्ती किया गया है पढ़ाने के लिए तो उससे आप दूसरे काम कैसे करवा सकते हैं? क्यों सरकार अपने सर्वे के काम के लिए नयी भर्ती नहीं करती। यदि स्कूल कॉलेज बंद हैं तो क्या सरकारी मुलाजिम होने के नाते उनसे कोई भी सरकारी काम करवाया जा सकता है? इस प्रकार अगर देश में युद्ध नहीं चल रहा तो फौज से डाक-तार का काम करवाया जाने लगे? या अध्यापकों से गलियों का कचरा उठवाया जाने लगा जाए?

दरअसल असलियत यही है कि इस देश में अध्यापक को पढ़ाई छोडक़र बाकी सभी काम करने पड़ते हैं। जनगणना, वोटर लिस्ट से लेकर टीका लगाने तक के सभी सर्वे बेचारे अध्यापकों से करवाए जाते हैं। और अब कोविद के समय में घर-घर घूम कर आंकड़े इकठ्ठा करना भी इन बेचारों के सिर ही आया है। जबकि इतना जोखिम भरा और गर्मी के मौसम में काम करने वाले इन अध्यापकों को न तो किसी किस्म का ट्रांसपोर्ट और न ही एक बोतल पानी तक प्रशासन की तरफ से दी गयीं हैं। इन सबका बंदोबस्त अध्यापकों को अपने स्तर पर ही करना है।

नेहरु कालेज फरीदाबाद-पलवल के ग्रामीण इलाकों के बच्चों के लिए एक अच्छा विकल्प है और ग्रामीण इलाकों से आने वाले अधिकतर परिवारों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वे अलग-अलग बच्चे के लिए अलग-अलग स्मार्ट फोन खरीद कर इन्टरनेट रीचार्ज करवा सकें और खर्च उठा सकें। ऐसे में न तो कॉलेज ने और न ही प्रशासन ने कोई युक्ति निकाली जिससे कि बच्चों को शिक्षा मुहैया करवाई जा सके। दरअसल सरकार की प्राथमिकताओं में अब शिक्षा जैसा तत्व बचा ही नहीं है इसलिए अब सिर्फ रेटिंग एजेंसियों से करवाई गई फर्जी रेटिंग पर इनकी साख निर्भर करती है। प्रिंसिपल रावत ने बताया कि एनएएसी की रैंकिंग में कालेज का नाम दर्ज करवाना एक बहुत बड़ा मुद्दा है और इसी मुद्दे को सफल बनाने के लिए सभी अध्यापक और अन्य स्टाफ भी जी-जान से जुटा है। 1994 में स्थापित एनएएसी के तहत शिक्षण संस्थाओं को कई पहलुओं को जांचने के बाद रैंकिंग देने का कार्यक्रम है। नेहरू कालेज भी इसी रैंकिंग में अपनी दशा सुधारने में लगा है। बाकि अभी छात्रों की पढाई-लिखाई की चिंता किसी को नहीं है न सरकार को और न स्टाफ को।

 

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Mazdoor Morcha
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