निगम ने कार्यवाही परिवहन मंत्री मूलचंद के कहने पर की है क्योंकि वरूण उनके सीकरी के पास जीटी रोड पर चल रहे अवैध बैन्कवट हाल की कई बार शिकायत कर चुका था।

निगम ने कार्यवाही परिवहन मंत्री मूलचंद के कहने पर की है क्योंकि वरूण उनके सीकरी के पास जीटी रोड पर चल रहे अवैध बैन्कवट हाल की कई बार शिकायत कर चुका था।
May 17 17:14 2020

मंत्री मूलचंद ने लिया बदला, वरूण को लपेटा झूठे मुकदमें में

फरीदाबाद (म.मो.) दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (डी एच बी वी एन) या संक्षेप में बिजली निगम कह लें,  श्री बीके रंजन, एक्सन रेवाड़ी ने 8 मई 2020 को थाना मुजेसर फरीदाबाद में आरटीआई कार्यकर्ता वरूण श्योकंद के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज करवायी है। यह शिकायत फर्जी दस्तावेज जमा करवा कर टेंडर लेने और धोखे से निगम का पैसा हड़पने के बारे में है। विदित है कि वरूण ने बीते दिनों मंत्री मूलचंद के कई काले कारनामे उजागर किये थे। वर्षों पहले वरूण ने बिजली विभाग में ठेकेदारी भी की थी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार वरूण ने अपनी फर्म श्योकंद इलेक्ट्रिकल के मार्फत साल 2011 में डीएचबीवीएन में कुछ माल सप्लाई करने का ठेका लिया था। 16 मई 2011 को $कार्य आदेश संख्या 35 और 36/एसईसी/एफबीडी/टीईडी/24/2011-12 के तहत 7339436.67 रुपये का सप्लाई का और कार्य आदेश संख्या 99 और 100 एसईसी/एफबीडी/टीईडी/24/2011-12 के तहत 362867.17 रुपये का इरेक्शन का काम उन्हें दिया गया था। दोनों काम 90 दिनों के अंदर पूरे किये जाने थे। वरूण की कंपनी ने ये दोनों काम पूरे करके बिजली निगम से अपने बिल के सारे पैसे भी वसूल पा लिये थे। बता दें कि सरकारी विभाग में सारे पैसे तभी मिलते हैं जब जेई, एसडीओ व एक्सइन सभी कार्य स्थल पर जाकर पूरा काम स्वयं देख लेते हैं, नाप लेते हैं और उसकी गुणवत्ता और पैमाइश पूरा होने की पुष्टि कर देते हैं। इसके बाद ठेकेदार की जिम्मेवारी, कहीं छोटी-मोटी रिपेयर की जरूरत हो तो वो करने तक सीमीत होती है।

एक्यसईन रंजन साहब द्वारा दी गई शिकायत के अनुसार श्योकंद ने अपनी फर्म के फर्जी कागजात जमा करवाये जिनके आधार पर उनको इस टेंडर के लिये योग्य पाया गया और उनका टेंडर सबसे ‘लोवस्ट’ टेंडर होने यानी सबसे कम रेट होने के कारण उन्हे यह काम दे दिया गया। काम पूरा करके उन्होंने अपनी सारी पेमेंट भी बिजली निगम से ले ली। लेकिन अब एक्सईन साहब का कहना है कि उन्होंने सीईआई (चीफ इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर)के अधिकारियों के कार्य पूर्ण होने के झूठे व फर्जी प्रमाणपत्र जमा करवाये जिनके आधार पर उनको पेमेन्ट कर दी गयी। इसलिये वो बिजली निगम का पैसा अवैध रूप से लिये हुए है।

हम इस बारे में पहले संक्षेप में बिजली निगम की कार्यप्रणाली समझ लें। निगम किसी भी काम के लिये अखबारों में और वेबसाईट पर सूचना जारी करता है जिसे ‘एनआईटी’ कहा जाता है। जिसमें काम का पूरा ब्यौरा होता है। ठेकेदार को दो हिस्सों में इस टेंडर को भरकर जमा करवाना होता है-एक भाग टेक्नीकल और दूसरा फाइनेंशियल कहलाता है। टेक्नीकल भाग में ठेकेदार को अपने वो सभी कागजात जमा करवाने होते हैं जो निगम उसकी योग्यता जांचने के लिये मांगता है ताकि निगम को विश्वास हो कि ठेकेदार यह कार्य करने की न सिर्फ तकनीकी योग्यता रखता है बल्कि उसके पास इसके लिये स्टाफ, मशीनरी व पैसे भी हैं। दूसरे हिस्से में ठेकेदार रेट भरता है।

जब कोई ठेकेदार टेक्नीकल में योग्य पाया जाता है तभी उसकी फाइनेंशियल बिड’ खोली जाती है। फाइनेंशियल बिड में जिस भी ठेकेदार के रेट सबसे कम पाये जाते हैं उसे काम दे दिया जाता है। टेक्नीकल  में ठेकेदार को अपने पिछले तीन साल की इन्कम टैक्स की रिटर्न व बेलेन्स शीट, बिजली निगम व श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन आदि की प्रतियां जमा करवानी होती है। कार्य पूर्ण होने पर सीईआई उसकी जांच करता है जांच में सुरक्षित पाये जाने के बाद ही उन उपकरणों या लाइनों में बिजली चालू की जा सकती है। एक्सईन को सीईआई के प्रमाणपत्र की जरूरत सिर्फ अपने उपकरणों में बिजली सप्लाई चालू करने के लिये है, पेमेंट के लिये नहीं। सीईआई अपना प्रमाणपत्र सीधा एक्सईन को भेजता है व ठेकेदार को भी उसकी एक प्रति मिलती है।

बिजली निगम के एकसईन रंजन की शिकायत के अनुसार वरूण की फर्म श्योकंद इलैक्ट्रिकल की बैलेंस शीट किसी ‘तायल एसोसिएटस’ नई दिल्ली द्वारा बनाई व ऑडिट की गयी है जो झूठी व फर्जी है। यदि वह अपनी असली बैलेंस शीट लगाता तो उसे ये काम नहीं मिलता क्योंकि उसकी फर्म का पिछले सालों में इतना ‘टर्नओवर’ नहीं था। दूसरा आरोप ये है कि वरूण द्वारा जमा किया गया सीईआई का सर्टिफिकेट जाली है। न तो उसने काम पूरा किया और न ही सीईआई ने उसको कोई सर्टिफिकेट दिया। उसने खुद ही ये जाली सर्टिफिकेट बना कर जमा करवा दिया जिसके आधार पर निगम के एक्सईन ने उसे पेमेंट दे दी। इसलिये उस पर टेंडर का पैसा हड़पने का आरोप निगम लगा रहा है।

बिजली निगम के ये दोनों ही आरोप हास्यास्पद और आधारहीन प्रतीत होते हैं। वरूण का दावा है कि फाइल में मौजूद तथाकथित फर्जी बेलेन्स शीट उसने बिजली निगम को कभी जमा ही नहीं की। न ही उस पर उसके हस्ताक्षर है। विदित हो कि टेंडर के साथ लगाये अपने सारे सर्टिफिकेट आदि सहित हर कागज पर ठेकेदार हस्ताक्षर करता है। तो साफ है कि उस पर अगर वरूण के हस्ताक्षर नहीं है तो ये उसका नहीं है और अगर है और वो उन्हे अपना नहीं मानता तो उसे फारेंसिक लैब में भेजकर उसकी जांच करवाई जानी चाहिये थी। झूठ पकड़ा जाता। जहां तक सीईआई के सर्टिफिकेट का सवाल है तो नियमानुसार सीईआई की प्रमाण पत्र सिर्फ बिजली के उपकरणों की सुरक्षा जांच के बारे में है, उसके बिना किसी ऐसे सर्किट में बिजली चालू नहीं की जा सकती। उसके प्रमाणपत्र का काम पूरा न होने से कोई सम्बन्ध नहीं है। काम स्पेसीफिकेशन, पैमाइश व गुणवत्ता के अनुसार पूरा हो इसकी पूरी जिम्मेवारी सम्बन्धित एक्सईन की है। उसे व उसके स्टाफ का काम ही ठेकेदार के पूरे काम की क्वालिटी और क्वंटिटी चैक करने का हैं। सीईआई का सटिफिकेट हो तब भी काम पूरा होने की सारी जिम्मेदारी एक्सइन व उसके स्टाफ की है। इसलिये अगर ठेकेदार द्वारा बिना काम पूरा किये या बिना सही गुणवत्ता का काम किये उसको पेमेन्ट की गयी है तो उसके लिये निगम का सम्बन्धित एक्सइन ही जिम्मेदार है,चाहे सीएईआई का सर्टिफिकेट झूठा ही क्यों न हो। एफआईआर में भी एक्सइन की मिलीभगत का जिक्र तो किया गया है लेकिन कहा गया है कि उन पर विभागीय कार्यवाही की जा रही है। ये न्याय के और कानून के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। अगर निगम के अधिकारी ठेकेदार के साथ मिलकर निगम को लाखों रुपये का चूना लगा रहे थे तो उन पर भी आईपीसी की धारा 120 के तहत जुर्म के षडयंत्र में शामिल होने का मुकदमा चलाया जाना चाहिये।

हैरानी की बात ये है कि 2011 में हुये इस काम में गड़बड़ी पर बिजली निगम की नीन्द नौ साल बाद खुली और उसने एक लूली लंगड़ी सी एफआईआर ठेकेदार के खिलाफ दर्ज करवा दी। सूत्रों के अनुसार निगम ने ये कार्यवाही परिवहन मंत्री मूलचंद के कहने पर की है क्योंकि वरूण उनके सीकरी के पास जीटी रोड पर चल रहे अवैध बैन्कवट हाल की कई बार शिकायत कर चुका था। बहरहाल चाहे बिजली निगम खुद ही जागरूक हुआ हो या मूलचन्द ने जगाया हो, वरूण पर निगम के पैसे हड़पने का मुकदमा तो नहीं ही बनता है। यदि उसने काम पूरा नही किया और उसको पेमेंट कर दी गयी है तो बिजली निगम के अधिकारियों पर मुकदमा दर्ज होना चाहिये। हां अगर फर्जी कोई भी दस्तावेज वरूण द्वारा जमा किया जाना सिद्ध होता है तो उसकी सज़ा उसे जरूर मिलनी चाहिये। लेकिन साथ ही परिवहन मंत्री मूलचन्द के उस बेन्क्वेट हाल पर भी पुलिस एक नज़र मार ले तो अच्छा रहे जो सीकरी के पास जीटी रोड पर अवैध रूप से चलता बताया जा रहा है।

फिलहाल वरूण अग्रीम जमानत के लिये प्रयासरत हैं। स्थानीय सैशन कोर्ट द्वारा उनकी अग्रीम जमानत की याचिका रद्द कर दिये जाने के बाद वे पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट चंडीगढ से अग्रिम जमानत प्राप्त करने का प्रयास कर रहें हैं। विदित हो कि राजनीतिक दबाव के चलते पुलिस किसी को भी झूठे मुकदमे में लपेट कर गिरफ्तार कर लेती है, टॉर्चर करती है और जेल भेज देती है। बाद में चाहे झूठे मुकदमे में बेशक कोई बरी हो जाये।

 

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Mazdoor Morcha
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