मजदूर मोर्चा ब्यूरो
नई दिल्ली: दिल्ली में हुए साम्प्ररदायिक नरसंहार में अभी तक 46 लोग मारे जा चुके हैं, सैकड़ों लोग घायल हैं और बड़ी तादाद में लोग गायब हैं। रोजाना लाशें बरामद हो रही हैं और हिंसक घटनाएं रुक नहीं रही हैं। यह महज हिंदू बनाम मुसलमान की लड़ाई नहीं है बल्कि उससे भी बड़ी साजिश है। जिसके तहत देश को एक साम्प्रदायिक राष्ट्र में बदलने की तैयारी है।
इन दंगों में प्रत्यक्ष रूप से आरएसएस का नाम, हाथ सामने आया है। देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के सामने आम लोगों ने खुलकर कहा कि यह दंगा आरएसएस ने आयोजित किया है। कपिल मिश्रा तो इस खेल का मात्र मोहरा भर है।
कैसे हुई शुरुआत
22 फरवरी शनिवार आधी रात को जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर कुछ महिलाएँ सड़क पर बैठ जाती हैं। सब शांतिपूर्वक बैठी रहती हैं।
23 फरवरी रविवार को दोपहर में भाजपा टिकट पर हार चुके कपिल मिश्रा का बयान आता है। एक वीडियो में एक डीसीपी की मौजूदगी में वह कहता नजर आता है कि अगर मौजपुर जाफराबाद रोड ख़ाली नहीं कराई गई तो वह और उसके समर्थक इन्हें हटा देंगे। वह अपने समर्थकों को सीएए के समर्थन में सड़कों पर उतरने को कहता है।
शाम होते होते उस गुंडे के नेतृत्व में लोग डंडे और लोह की रॉड लेकर जमा होने लगते हैं। दूसरी तरफ निहत्थी महिलाएं और उनके घर के लोग वहां बैठे हुए थे और नारे लगा रहे थे। उस गुंडे के नेतृत्व में भीड़ आगे बढ़ती है। वो आरोप लगाते हैं कि सामने से पथराव हुआ है। वे अपने डंडे बरसाने लगते हैं। पुलिस आती है। दोनों पक्षों को शांत कर वापस कर देती है। इसी दौरान उस इलाके के मोहन नर्सिंग होम से गोलियां बरसाई जाने लगती हैं। थराव होने लगता है। ताज्जुब है कि घटना के पांच-छह दिन बीत जाने के बाद एक भी एफआईआर मोहन नर्सिंग होम के खिलाफ दर्ज नहीं की गई है। हालांकि तमाम वीडियो के सबूत मौजूद हैं।
रविवार की रात बाबरपुर, मौजपुर, भजनपुरा, चांदबाग में भयानक दंगे शुरू हो जाते है। दोनों तरफ से रातभर ‘जय श्रीराम और ‘अल्लाह-ओ-अकबर की आवाजें गूंजती रहती हैं। पुलिस को यह सारी जानकारी रहती है। लेकिन इन इलाकों में दूर-दूर पुलिस का पता नहीं होता। वह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की सुरक्षा में चप्पे-चप्पे पर तैनात रहती है।
23 फरवरी रात के दंगों की कोई भी मीडिया रिपोर्टिंग न तो टीवी चैनलों पर और न ही अखबारों में नजर आती है।
24 फरवरी सोमवार को जब ट्रंप का हवाई जहाज अहमदाबाद में उतर रहा होता है और प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री उनकी अगवानी में खड़े नजर आते हैं तो उस समय उत्तर पूर्वी दिल्ली में भयानक नरसंहार चल रहा होता है। मीडिया में कहीं कोई हलचल नहीं। शाम होते – होते जब फील्ड रिपोर्टर अपने अपने दफ्तरों में भयावह दंगों की सूचनाएं देते हैं तब खबर मैनेजर सक्रिय होते हैं।
न्यूज चैनल कुछ मिनट के लिए जाफराबाद का एक वीडियो दिखाकर सबकुछ बंद कर देते हैं। वे फिर से ट्रंप पर जुट जाते हैं। कथित राष्ट्रीय अखबार तय करते हैं कि दंगों की खबरें पेज 1 पर रखनी तो पड़ेंगी लेकिन लीड यानी मुख्य खबर ट्रंप की ही रहेगी। 25 फरवरी को ट्रंप दिल्ली में होता है लेकिन इसे भारत का अंदरूनी मामला बताकर चुप हो जाता है। दंगे बदस्तूर जारी रहते हैं।
कुछ लोग गाडिय़ों से लाए जाते हैं। इनके सिरों पर हेल्मेट होते हैं ताकि इन्हें पहचाना न जा सके। यही आरएसएस से जुड़े लोग होते हैं जो कहीं पेट्रोल बम फेंक रहे होते हैं तो कहीं मस्जिदों में तोडफ़ोड़ मचाने के बाद उनकी मीनारों पर धार्मिक झंडे लगाते नजर आते हैं। लोगों को धार्मिक आधार पर पहचानकर लिंच किया जाने लगता है। खास घरों और धार्मिकस्थलों पर पेट्रोल बम फेंके जाते हैं। एक धार्मिक स्थल और एक पेट्रोल पंप फूँक दिया जाता है। घरों और वाहनों को जला दिया जाता है।
मीडिया वालों के पास जो फोटो और वीडियो हैं उनमें असंख्य फोटो और वीडियो में हेल्मेट पहने लोग हिंसा करते नजऱ आते हैं। लोगों को पहचानकर चुन-चुन कर हेल्मेट वाले डंडों से मारते हैं। गुजरात के अंदाज में हिंसा होने लगती है।
इस नरसंहार में नुकसान सिर्फ मुसलमानों का ही नहीं हुआ है। थोड़ा कम लेकिन हिंदुओं का भी नुकसान हुआ है। मारे गए 44 लोगों में 10 से ज्यादा हिंदू हैं। सभी गरीब लोग हैं। लेकिन इन हत्याओं में सबसे जघन्य हत्या दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल और आईबी के कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या है। रतनलाल की हत्या दंगाइयों ने पथराव करके की जबकि अंकित शर्मा पर चाकू से अनगिनत वार किए गए। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक 40 थे। ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने दंगे की आड़ में अंकित से पुराना बदला लिया है।
खजूरीखास के गामड़ी एक्सटेंशन में दंगाइयों ने एक ऐसी बिल्डिंग में आग लगा दी, जिसमें 85 साल की बुजुर्ग महिला अकबरी की मौत हो गई। अकबरी इस दंगे में मारी गई सबसे उम्रदराज महिला हैं।
दंगे में मारे गए 26 साल के रोहित सोलंकी के परिवार ने बेटे की हत्या के लिए भाजपा नेता कपिल शर्मा को जिम्मेदार ठहराया है। परिवार का कहना है कि कपिल के उत्तेजक भाषण की वजह से हालात बिगड़े और दंगाइयों ने लोगों की जान ले ली।
इस नरसंहार में आरएसएस से जुड़े लोग किस तरह लाए गए थे, उसका पता इस घटना से लगता है। एक 24 फरवरी को भजनपुरा के पास दुकानों में आग लगाता हुआ और जय श्रीराम के नारे लगाता हुआ लोगों को भड़काता हुआ वीडियो बना रहा था। उसकी खुद की वीडियो भी वायरल हुई थी। भजनपुरा मजार के पास कुछ लोगों ने उसको पहचानकर पकड़ लिया और चांद बाग ले आए। इसी दौरान वहां सलमान सिद्दीकी पहुंचे और भीड़ से बचाकर उस संघी युवक को घर में ले गए। फिर उन्होंने 100 नंबर पर कॉल करके पुलिस को बुलाकर उस युवक को पुलिस को सौंप दिया। सलमान ने मीडिया से कहा कि इंसानियत मुझे मेरे धर्म ने सिखाई है अगर हम लोग चाहते तो उसको मार भी सकते थे या उन लोगों के हवाले कर सकते थे जिन लोगों की इसने दुकानें जलाई थी। लेकिन हमारी इंसानियत ने ऐसा नहीं किया और उसको पुलिस के हवाले कर दिया।
ताहिर हुसैन की भूमिका
आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन की भूमिका इस दंगे में एक संदिग्ध के रूप में सामने आई है। पुलिस ने उसकी छत से पेट्रोल बम वगैरह बरामद किए हैं। उसके खिलाफ अंकित शर्मा की हत्या का केस दर्ज किया गया है। केस दर्ज होते ही सबसे पहले उसकी अपनी पार्टी आप ने उससे पीछा छुड़ाया और उसे पार्टी से निकाल दिया। मीडिया ने ताहिर हुसैन को विलेन के रूप में पेश कर दिया। मीडिया इस सवाल को न उठा रहा है और न पूछ रहा है कि ताहिर हुसैन के घर को घेरने वाले, आग लगाने वाले कौन थे। इस संबंध में तमाम वीडियो वायरल हैं जिनमें लोगों को उसके घर पर पथराव करते और आग लगाते देखा जा सकता है।
कहां गया शाहरुख
25 फरवरी को अचानक तमाम अखबारों और टीवी मीडिया में एक युवक का फोटो और वीडियो सामने आया। जिसमें एक युवक एक पुलिस वाले के माथे पर पिस्तौल लगा देता है, लेकिन फिर उसे छोड़ देता है। फिर वह भीड़ की तरफ आठ राउंड गोली चलाता है। पुलिस अधिकारियों ने उस समय उसका नाम शाहरुख बताया और कहा कि वह हमारे कब्जे में है। मीडिया में शाहरुख को लेकर हंगामा हो गया। टीवी पर डिबेट शो आयोजित हो गए। लेकिन इसी बीच पत्रकार सवाल उठाते रहे कि अगर शाहरुख पुलिस के कब्जे में है तो पुलिस उसके बारे में और जानकारी क्यों नहीं दे रही है। पुलिस उसे कोर्ट में क्यों नहीं पेश कर रही है।
28 फरवरी को पुलिस ने मीडिया को बताया कि शाहरुख तो उनके पास है नहीं, वो फरार हो गया है। पुलिस यह बता नहीं पा रही है कि आखिर वो किस थाने या चौकी से फरार हुआ।
फरारी के हालात कैसे बने। क्योंकि उस शूटर की तुलना जामिया आंदोलन के समय सामने आए एक हिंदू उग्रवादी युवक से की गई जो जुलूस के सामने भीड़ पर गोली चलाता नजर आया। फिर उसे नाबालिग बताया गया। उसके बाद उसका कोई पता नहीं है।
शाहरुख के सामने आने, उसके बारे में दावा किए जाने और अब उसके फरार होने ने इस मामले को संदिग्ध बना दिया है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने लिखा है कि वह शाहरुख नहीं बल्कि अनुराग मिश्रा है और कपिल मिश्रा का खास आदमी है। सन्यासी की ड्रेस में उसके कुछ फोटो भी सामने आए हैं। बताया जाता है कि शाहरुख को लेकर अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक चैनल और टाइम्स नाउ चैनल ने अपने ऊंचे रसूख का पुलिस में हवाला देकर इंटरव्यू करना चाहा लेकिन पुलिस ने इनके सामने भी शाहरुख को पेश नहीं किया।
तमाम खोजी पत्रकारों का कहना है कि तथाकथित शाहरुख दंगाइयों की भीड़ से निकलता दिखाई दे रहा है। वो दंगाई दूसरे समुदाय के लोग थे। लेकिन चूंकि पुलिस ने उसका नाम मीडिया को शाहरुख बताया था इसलिए लोगों ने उस समय मान लिया लेकिन अब वह कथित शाहरुख इन दंगों का एक रहस्यमय किरदार बनकर रह जाएगा।
सोचिए नुकसान किसका हुआ
दिल्ली नरसंहार में दोनों समुदायों के लोगों के मारे जाने और उनका आर्थिक नुकसान होने का अंदाजा करोड़ों में है। खजूरी खास में जिस टायर की दुकान को फूंका गया, वहां सात लोग काम करते थे। टायर दुकान के मालिक को जो नुकसान हुआ वो तो हुआ लेकिन उन सात लोगों की रोजी का क्या होगा। मौजपुर में जिन वाहन शोरूमों को जलाया गया है, वहां 150 लोग काम करते थे।
उनकी नौकरी अब कैसे मिलेगी, कोई नहीं जानता। अरुण पब्लिक स्कूल से कितना रोजगार जुड़ा हुआ था, उनका क्या होगा कोई नहीं जानता। दंगे ज्यादातर मुस्लिम बहुल इलाकों में हुए हैं। इन इलाकों में छोटा छोटा हुनरमंद काम करके लोग अपना पेट पाल रहे थे, वो धंधा अब पूरी तरह खत्म हो चुका है। इस नरसंहार में अगर कोई फायदे में है तो वह आरएसएस और राजनीतिक नेता है। जिनके बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ रहे हैं या विदेशों में हैं लेकिन दंगे की भेंट चढ़े परिवारों के बच्चों के बारे में कोई नहीं सोच रहा जिन्हें नेता भड़काकर गायब हैं।