तेल डलवाने कब आयेंगे? क्या दफ्तर बीच में छोड़ कर आयेंगे?

तेल डलवाने कब आयेंगे? क्या दफ्तर बीच में छोड़ कर आयेंगे?
April 20 06:05 2020

शासन-प्रशासन की अक्ल से दुश्मनी है या फिर जनता से

 फरीदाबाद (म.मो.) जिस तरह बिना कुछ सोचे-विचारे मोदी जी रात के आठ बजे कुछ भी घोषणा करके उसे रात के 12 बजे से लागू कर देते हैं, ठीक उसी तरह उनकी अफसरशाही भी दिमाग का इस्तेमाल किये बिना जनता पर अपना तुगलकी फर्मान थोप देती हैं।

जि़ला मैजिस्ट्रेट के आदेशानुसार तमाम पेट्रोल-डीजल पम्प सुबह 11 बजे से सायं 5 बजे तक सेवा प्रदान करेंगे। अब कोई पूछे इन अक्ल के अंधों से कि यदि पम्प सुबह पांच बजे या छ: बजे या चौबीसों घंटे भी खुले रह जायें तो कोरोना संक्रमण कैसे बढ सकता है? सेवा देने के समय को यदि पम्प संचालक के विवेक पर छोड़ दिया जाय तो प्रशासन को क्या तकलीफ है? वह अपने आप ग्राहकों की आमदो-रफ्त के हिसाब से अपने पम्प को खोलने को स्वतंत्र होना चाहिये। विदित है कि यह कोई टोटल कफ्र्यू की स्थिति नहीं है। तमाम सरकारी कर्मचारी पुलिस, स्वास्थ्य विभाग, बिजली, बैंक, नगर निगम शिक्षा विभाग मीडिया आदि-आदि के कर्मचारी काम पर जा रहे हैं। अधिकांश लोग नौ बजे से पहले दफ्तर पहुंच कर सायं पांच बजे के बाद छूटते हैं तो पैट्रोल पम्प पर तेल डलवाने कब आयेंगे? क्या दफ्तर बीच में छोड़ कर आयेंगे?

इसी तर्ज पर बाजारों में भी आवश्यक चीज़ों की खरीदो-फरोख्त का समय भी पहले 11 से सायं पाच बजे तक का रखा था जो बाद में घटा कर तीन बजे तक का कर दिया गया। एक तरफ तो सामाजिक पृथकता का ढोल पीट कर भीड़ इकट्ठी न करने का शोर मचाया जा रहा है और दूसरी तरफ बाजार का समय बढाने की बजाय घटाया जा रहा है, क्या यह प्रशासनिक मूर्खता का बेहतरीन नमूना नहीं है?

शहर की शब्जी व फल मंडियों के संचालन की तो इन्हे कतई कोई समझ ही नहीं है। बीते सप्ताह में तीन बार इसके समय परिवर्तित कर चुके हैं। दो बार मंडियों को बंद भी कर चुके हैं।

विदित है कि इन मंडियों में मुंह-अंधेरे ही काम शुरू हो जाता है। प्रशासन को सिर्फ इतना ही करना था कि उस समय को और दो-तीन घंटे अंधेरे की ओर ले जाना था यानी प्रात: छ: बजे शुरू होने वाले काम को तीन-चार बजे शुरू कराना चाहिये था। किसी भी मंडी में पहला काम किसानों द्वारा लाये गये माल की नीलामी का होता है जो केवल थोक क्रेता एवं विक्रेता के बीच होता है, उसके बाद परचून का क्रय-विक्रय का काम चलता है जो, भीड़ से बचने के लिये सारा दिन भी चलाया जा सकता है। परन्तु यह सब तो केवल तब ही हो सकता है जब हाकिमों की अक्ल या जनता से दुश्मनी न हो।

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Mazdoor Morcha
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