जब केसरी इन्दिरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष होते थे तो एक कहावत चलती थी कि -‘खाता न बही जो केसरी कहे वो सही’।

जब केसरी इन्दिरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष होते थे तो एक कहावत चलती थी कि -‘खाता न बही जो केसरी कहे वो सही’।
June 27 12:22 2020

रामदेव लाया कोरोना की दवा

लूट की जल्दी में बिना किसी इजाजत व मंजूरी के लांच की

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

 

बाबा रामदेव ने मंगलवार, 23 जून 2020 को कोविड-19 बीमारी के लिये कोरोनिल व श्वास वटि नामक दो दवाइयां बाजार में उतारी। रामदेव की कंपनी पतंजली आयुर्वेद ने बताया कि ये दवाई उनकी पतंजलि रिसर्च इन्स्टीट्यूट हरिद्वार और एक अस्पताल नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंस जयपुर ने बनाई है। इससे पहले की रामदेव लूट कमाई शुरू कर पाते दवा बाजार में लाने के कुछ घंटे बाद ही आयुष मंत्रालय, भारत सरकार ने दवा के प्रचार-प्रसार व बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत सरकार ने उनसे दवा के पूरे फार्मूले , यानी इसमें मौजूद विभिन्न जड़ी-बूटियों के नाम व मात्रा के बारे में पूरी जानकारी देने को कहा है। पतंजलि को टैस्ट किये गये मानव समूह के बारे में भी विवरण देने को कहा गया है, जैसे कि नमूने का आकार (यानी मरीजों की संख्या), स्थान या उन अस्पतालों का ब्यौरा जहां पर कि यह अध्ययन /अनुसंधान किया गया है।

रामदेव ने दावा किया कि उनकी दवा से शत प्रतिशत मरीज़ ठीक हो गये। उनके अनुसार 100 मरीज़ों के समूह में से 69 प्रतिशत मरीज़ तीन दिन में ठीक हो गये जबकि बाकि सभी मरीज़ एक सप्ताह में ठीक हो गये। जीवन रक्षक उपकरणों यानी वेन्टिलेटर्स का सहारा ले रहे मरीज़ों पर यह ट्रायल नहीं किया गया। ट्रायल टैस्टिंग में 15-59 साल के मरीज़ों ने हिस्सा लिया। महिलाओं और पुरूषों के बारे में अलग-अलग कोई विवरण नहीं दिया गया। रामदेव के अनुसार ये ट्रायल दिल्ली, मेरठ और अहमदाबाद में किये गये। दवा के ट्रायल के लिये क्या किसी अधिकृत संस्था से इजाजत ली गयी थी या दवा को क्या किसी संस्था ने प्रयोग करने की मंजूरी दी है-इन सब सवालों का जवाब बाबा टाल गये।

विदित हो कि किसी भी दवा की खोज के बाद उसकी टैस्टिंग का एक प्रोटोकोल है। सबसे पहले तो आईसीएम आर या अन्य सम्बन्धित रिसर्च कंट्रोल करने वाली संस्थान से मंजूरी लेनी होती है। फ़िर तीन चरणों में पहले प्रयोगशाला में, फ़िर जानवरों पर और अंत में मनुष्यों पर दवा की टैस्टिंग की जाती है, इन सब टैस्टों में पास होने पर उसके बुरे प्रभाव (साईड इफैक्ट्स) आदि का अध्ययन करने के बाद ही कही किसी दवा को मंजूरी मिल पाती है। इसके अलावा टैस्टों से पहले दवा के बारे में एक ‘इथिक्स कमेटी’ से भी मंजूरी लेनी होती है। जिन मरीज़ों पर दवा की टैस्टिंग की जाती है उनकी पहले सहमति भी ली जाती है और उन्हें इसके कारण हो सकने वाले दुष्प्रभावों के बारे में भी बताना जरूरी होता है। अभी तक रामदेव ने कुछ नहीं बताया है कि उन्होंने इन फील्ड ट्रायल के लिये किसी अधिकृत संस्था या अधिकारी से कोई इजाजत ली थी या नहीं। क्या उन्होंने इस सम्बन्ध में सरकार या पेशागत संस्था द्वारा निर्धारित किसी प्रोटोकोल का पालन किया नहीं। क्या उन्होंने दवा उत्पादन के लिये किसी ड्रग कंट्रोलर से अनुमति ली है या नहीं।

जब केसरी इन्दिरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष होते थे तो एक कहावत चलती थी कि खाता न बही जो केसरी कहे वो सही। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही लगता है कि दवा को तैयार करके, गुपचुप तरीके से बिना किसी प्रोटोकोल के मनचाहे मरीजों के समूह (सैम्पल) पर उसकी टैस्टिंग की गयी और सफलता का प्रचार किया गया। नियमों के इतने खतरनाक उल्लंघन और मानव जीवन से खिलवाड़ करने के लिये रामदेव पर मुकदमा चलाने की मांग कुछ लोग उठा रहे हैं।

ध्यान रहे कि कोविड 19 के लगभग 95 प्रतिशत मरीज अपने आप ठीक हो जाते हैं। सिर्फ पांच प्रतिशत मरीजों को जीवन रक्षक उपकरणों और अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ती है और सिर्फ लगभग तीन प्रतिशत बीमार लोगों की ही मृत्यु होती है। उनमें भी 60 साल से ऊपर के और अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोग ही ज्यादा हैं। यानी रामदेव ने जिन मरीज़ों पर अपनी दवा की टैस्टिंग की वो लगभग सभी अपने आप ठीक होने वाली श्रेणी में ही आते थे। इसीलिये उनका इस दवाई से शत प्रतिशत मरीज़ों का ठीक होने का दावा एक झूठ या फ्रॉड ही प्रतीत होता है। इससे पहले भी ये बाबा शर्तिया लडक़ा होने की दवाई बेचने के कारण बदनाम हो चुके हैं। उस दवाई के बारे में भी इसी तरह से कोई टैस्टिंग वगैरा, इजाजत, मंजूरी लेना कुछ नहीं जरूरी समझा गया। लेकिन इसके अलावा लैंगिक भेदभाव के मसले पर ही महिला संगठनों ने उनकी वो खाल खींची की उनको उस दवाई को बंद करना पड़ा। मज़दूरों के शोषण आदि के आरोप भी पूर्व में इनकी कंपनी पर लगते रहे हैं जिनको सरकारों से सांठगांठ करके ये दबवाते रहे हैं।

दवाई प्रकरण में जो भी सच्चाई सामने आये लेकिन ये स्पष्ट है कि स्वदेशी के नाम पर लूट का कोई भी मौका रामदेव छोडऩे वाले नहीं हैं। इससे वो और लोगों से दो कदम आगे ही हैं।

इसी बीच खबर है कि उत्तराखण्ड सरकार के आयुष विभाग ने रामदेव की कंपनी को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया है कि इम्युनिटी बूस्टर, खांसी और बुखार के नाम पर दवा का लाइसेंस लेकर वह कोरोना की दवा के रूप में कैसे बना रहे हैं। भारत सरकार ने भी उनसे जरूरी कागजात जमा करवाने को कहा है जो कि कंपनी ने अगले ही दिन जमा करवा दिये। उधर राजस्थान सरकार ने जयपुर के उस अस्पताल को भी नोटिस जारी किया है जिसने दवा के अपने यहां क्लीनिकल ट्रायल यानी मनुष्यों पर प्रयोग किये थे। इस बीच पतंजली के डायरेक्टर बालकिशन ने थोड़ा पीछे हटते हुये कहा है कि उनकी दवा को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में तो इस्तेमाल किया ही जा सकता है।

सवाल ये है कि क्या इतने झूठे दावे करके, खुलेआम कानून की उल्लंघना करके मानव जीवन से खिलवाड़ करके भी कोई जेल की सलाखों के पीछे जाने से बच सकता है? क्या रामदेव की सरकार से नजदीकी उनकी ढ़ाल बनेगी। लगता तो यही है कि जल्द ही इस पर लीपापोती हो जायेगी और झूठे व ठग बाबा का कारोबार ऐसे ही चलता रहेगा।

 

 

 

नमूने पाकिस्तान में भी कम नहीं

पाकिस्तान की पर्यावरण मंत्री जरताज गुल वजीर ने एक इंटरव्यू में कोरोना वायरस की एक नयी परिभाषा दी। उन्होंने बताया कि ‘कोविड-19 का मतलब है कि इसमें 19 पॉइंट हैं। और ये एक तरह का फ्लू है जो किसी देश पर इन 19 में से किसी भी एक तरीके से हमला कर सकता है। और इसकी आक्रामकता उस देश के निवासियों की इम्युनिटी पर निर्भर करती है।’ यानी कम इम्युनिटी तो ज्यादा बड़ा हमला। कुछ महीने पहले भी ये मोहतरमा कोविड-19 का स्वागत ये कहते हुये कर चुकी हैं कि इससे हमारी हवा शुद्ध हो गई।

ट्वीटर पर उनके इस बयान का लोगों ने खूब मजाक उड़ाया। किसी ने कहा कि लड़ाकू जहाज एफ-16 में 16 सीटें होती है तो एक अन्य ने मन्त्री जी को सम्बोधित ट्वीट में कहा कि टी 20 मैच 20 प्लेयर खेलते हैं इसलिये उसे टी-20 कहा जाता है। कुछ भी हो ये जरूर सिद्ध हो गया कि राजनीति में नमूने सिर्फ हमारे यहां ही नहीं बल्कि वहां भी भरे पड़े हैं। और सोशल मीडिया पर लोग बख्शते किसी को नहीं है।

 

छात्र विरोधी भाजपा

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के अध्यापक प्रकोष्ठ ने सरकार से मांग की है कि वह छात्रों के दाखिले के लिये पिछले स्कूल से स्कूल छोडऩे का प्रमाणपत्र लेने की बाध्यता खत्म करने के अपने फैसले को रद्द करे। यह फैसला प्रकोष्ठ की 21 जून की ऑनलाइन बैठक में लिया गया जिसकी अध्यक्षता रामऔतार शर्मा ने की।

एसएलसी यानी पिछला स्कूल छोडऩे का प्रमाणपत्र प्राइवेट स्कूलों के हाथ में छात्रों को लूटने का ए क हथियार था। इससे वो छात्रों से मनमानी फीस वसूलते थे वरना छात्र को स्कूल छोडऩे पर एसएलसी नहीं देते थे जिससे वह आगे किसी स्कूल में प्रवेश नहीं ले सकता था। इसकी सरकारी स्कूलों में अनिवार्यता खत्म करने से बहुत सारे छात्र प्राइवेट स्कूलों की ब्लैकमेलिंग की परवाह न करके सरकारी स्कूलों में दाखिला ले लेंगे। लेकिन भाजपा अध्यापक प्रकोष्ठ को पता नहीं इसमें अध्यापकों का क्या नुकसान दिखा जो वो इसका विरोध कर रहा है। लगता है उनको न छात्रों की चिन्ता है न अध्यापकों की, उनको तो चिन्ता है उन प्राइवेट स्कूल के मालिकों की जो छात्रों को लूटते हैं और उसमें से शायद इनको भी थोड़ा बहुत टुकड़ा डाल देते होंगे।

आत्मनिर्भरता का नारा-रक्षा सामान करेंगे आयात

भारत की सेनाओं के लिये हथियार, गोला बारूद व अन्य सामान बनाने वाली फेक्ट्री के बोर्ड ‘आर्डिनेंस फैक्टरिज बोर्ड’ ने कहा है कि आर्मी ने 6 सामानों को उनसे खरीदने का आर्डर नहीं दिया है। इन छ: सामानों में चार एम्यूनेशन और दो फ्यूज हैं। कुल 45 सामानों की लिस्ट में से ये छ: के नाम गायब है जिन्हें पहले सेना इन फैक्टरियों से खरीदती रही है। इसलिये अब इन सामानों को बाहर से आयात किया जायेगा। भारत सरकार के रक्षा सामग्री उत्पादन विभाग ने सेना को ये छ: सामग्री बोर्ड से नहीं खरीदने को कहा था।

एक तरफ तो इन फैक्टरियों में लगे कर्मचारी इनके प्राइवेटाइजेशन का विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार इनसे सामान खरीदने के बजाय बाहर से आयात कर रही है। साथ ही साथ आत्मनिर्भर भारत का नारा भी दे रही है। स्पष्ट है कि सरकार की नीयत ठीक नहीं है। वह इन फैक्टरियों से सामान न खरीदकर इनको घाटे में लाना चाहती है ताकि इनको प्राइवेट हाथों में बेचा जा सके। क्या इससे हमारी देश की सुरक्षा खतरे में नहीं पड़ जायेगी?

अन्तिम मिसरा

पढ़े-लिखों से कोरोना की दवाई नहीं खोजी गयी, बाबा ने खोज ली।

समझ नहीं आता बच्चों को पढ़ाये कि बाबा बनायें!

 

 

 

 

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Mazdoor Morcha
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