वर्क फ्रॉम होम से वर्क ऑफ होम तक
विवेक कुमार, ग्राउंड रिपोर्ट
भाई मजा आ रहा है न? “वर्क फ्रॉम होम” से सीधा “वर्क ऑफ होम” हो गया? ललित ने अपने दोस्त दीपक की नौकरी चले जाने पर तंज़ कसा और दीपक समेत सभी के चेहरों पर शिकन की जगह ठहाकों ने ले ली। पर क्या ये ठहाके सच में वैसे ही हैं जैसे दिख रहे हैं? कोरोना के बाद आर्थिक आपदा में भारत का युवा कैसे फंसा और क्या सोचता है, मजदूर मोर्चा की ग्राउंड रिपोर्ट।
34 वर्षीय दीपक सेक्टर 30 फरीदाबाद के निवासी हैं। एमिटी इंटरनेशनल की साकेत दिल्ली ब्रांच में बतौर मार्केटिंग मैनेजर दीपक को एक लाख पच्चीस हजार तनख्वाह मिलती थी और उनके जिम्मे काम था मेडिकल व् इंजीनीयरिंग की कोचिंग के लिए बच्चों की पौध और नर्सरी तैयार करना। मतलब कि जो बच्चे अभी बारहवीं से निकलने वाले हैं उनकी कैरियर काउंसलिंग करना।
दीपक ने बताया कि इस काउंसलिंग के नाम पर दरअसल हम अभिभावक जो पहले ही न जाने क्या-क्या सोच कर डरे रहते हैं, के डर को और बढ़ाते है और अंत में उन्हें यकीन दिलाना होता है कि हम हैं न आपकी मदद के लिए। इसके बाद बच्चे का दाखिला जैसे तैसे करवाना और फिर अगला अभिभावक पकडऩा होता है।
इस काम में माहिर दीपक की तरक्की होती गई और उसी दम पर दीपक ने मकान और गाड़़ी से लेकर आई$फोन इत्यादि बेतहाशा खरीदा। फिर बारी आई ‘अच्छे दिनों’ की और कोरोना के नाम पर लॉकडाउन हो गया। एक लाख पच्चीस हजार कमाने वाले दीपक को संस्थान ने दो माह की तनख्वाह भी नहीं दी और अब पूछा है कि यदि 25 हजार रुपये पर काम करना पसंद है तो करें अन्यथा वह जा सकते हैं, सीधा एक लाख का फटका।
अभिभावकों को झूठा डर दिखा कर अपना घर बनाने वाले दीपक को पता ही नहीं चला कि जिनके लिए वह गुर्गा बन लोगों को उल्लू बनाते थे दरअसल उसी संस्थान ने उन्हें उल्लू बना दिया है। इतना ही नहीं दीपक के फेसबुक पेज पर नजर डालने पर हमने पाया कि दीपक हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए मरे जा रहे थे और इसी क्रम में उन्होंने फर्जी विडियो भी फैलाया हुआ है जिसमे अमेरिका और ब्रिटेन मोदी से आग्रह कर रहे हैं कि हमारे देश को कोरोना से बचाइए।
30 वर्षीय प्रशांत दरियागंज स्थित एक पब्लिकेशन हाउस में ऊँचे पद पर आसीन थे। चार रोज पहले ही वह भौंचक्के रह गए जब देखा कि कंपनी ने उनके बैंक खाते में मात्र 30 हजार रुपया ही बतौर वेतन जमा किया है जबकि वेतन डेढ़ लाख रुपये है। इस बाबत प्रशांत ने सीधा मालिक से संपर्क किया और अपना विरोध दर्ज कराया तो मालिक ने कहा, दो माह “वर्क फ्रॉम होम” में तुमने वक्त पर रिपोर्ट जमा नहीं करवाई इसलिए तनख्वाह काट ली गई।
प्रशांत हर महीने 60 हजार घर की किश्त और अपनी बेटी की स्कूल फीस देने के साथ-साथ कई खर्चे उठाते हैं। गुस्से में प्रशांत ने अपना इस्तीफा तुरंत दे दिया और अब घर पर रह कर सोच रहे हैं कि क्या करें?
दीपक और प्रशांत दो अलग तरह के व्यक्तित्व और सोच रखने वाले व्यक्ति हैं पर इनमे दो बातें एक जैसी हैं। पहली कि दोनों की कंपनियों ने पीएम केयर फण्ड में मोटा पैसा जमा किया है और दूसरी बात कि आज इनकी आर्थिक दशा बिल्कुल एक जैसी है। दोनों ने बताया कि जब नौकरी में डूबे थे तब कभी राजनीतिक खबरों पर खास ध्यान नहीं देते थे। प्रशांत का मानना था कि राजनीतिक बातें खाली बैठे लोगों का काम है जबकि दीपक ‘मजदूर मोर्चा’ की हर खबर को मोदी विरोधी समझ कर डिलीट कर दिया करते थे। आज प्रशांत और दीपक का मानना है कि कंपनी पीएम् केयर जैसे फर्जी फण्ड में पैसे जमा करा सकती है पर अपने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं दे सकती। दीपक को तो यहाँ तक यकीन था कि जब प्रधानमंत्री ने कहा है कि सबको सैलेरी मिलेगी तो फिर किसकी हिम्मत जो पैसे न दे। पर आज जब सच्चाई सामने आई तो उसमे यह भी सामने आया कि इसी केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कह दिया कि सैलेरी का मसला कर्मचारी और संस्था का अपना मसला है उसे वे खुद देखें।
भारत के टॉप इंजीनीयरिंग कॉलेज डीसीई से पढ़े सौरभ ऐरिसेंट जैसी मल्टीनेशनल में बतौर सॉफ्टवेयर डेवलपर कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि कंपनी ने सभी कर्मचारियों की तनख्वाह से पैसे काट कर पीएम् केयर फण्ड में दिए हैं और आरोग्य सेतु ऐप को डाउनलोड करना भी जरूरी करार दे दिया है। क्योंकि मैं एक सॉफ्टवेयर बनाने वाला आदमी हूँ तो मैं जानता हूँ कि इस तरह हमारी निजी जानकारी और यहाँ तक कि बैंक डिटेल्स भी असुरक्षित हो सकती हैं। मजबूरीवश सब किया क्योंकि कंपनी को तो बस अब कोई बहाना मिल जाए निकालने का, और इस मंदी में नौकरी जाने का खतरा तो मोल नहीं ले सकता।
जिन तीन लोगों के हालातों के बारे में हमने यहाँ जिक्र किया वो दरअसल इस समय पूरे देश के मध्यम वर्ग की कहानी है। जब सडक़ो पर मजदूर पैदल चल रहे थे और दुर्घटनाओं का शिकार हो अपनी जान गंवा रहे थे उस समय वर्क फ्रॉम होम करने वाले अधिकतर लोग उनका मजाक भी बना रहे थे। कुछ ने तो उन्हें कोरोना फैलाने का दोषी करार दे दिया। दीपक ने यहाँ तक कह दिया था कि जब प्रधानमंत्री सबको घर बैठे राशन और पैसा दे रहे हैं तो ये किसके इशारे पर पैदल चल रहे हैं, कुछ दिन ये जाहिल रुकते क्यों नहीं एक जगह, जब नहीं मानेंगे तो मरेंगे ही न?
आज दीपक की आँखों से भक्त का चश्मा उतर चुका है हांलाकि कह नहीं सकते कितने दिन के लिए और प्रशांत को भी यह समझ आ गया कि “आप राजनीति में बेशक दिलचस्पी न लेते हों पर राजनीति आपमें भरपूर दिलचस्पी लेती है”। सौरभ जिस डर के साये में अपनी मर्जी के खिलाफ पीएम केयर में पैसे देकर यह समझ रहे हैं कि ऐसे नौकरी बचा लेंगे तो उन्हें भी दीपक और प्रशांत से समझना चाहिए कि मुद्दों से डरना या चुप रह जाना आपका बचाव नहीं कर सकता। बचाव का एकमात्र साधन है बोलना।