फरीदाबाद (म.मो.) घोटालेबाज़ एवं फ्रॉडी फार्मासिस्ट वीरेन्द्र सांगवान के विरुद्ध बनाई जांच कमेटी, जिसका उल्लेख गतांक में किया गया था, सीएमओ कृष्ण कुमार ने दो अन्य डॉक्टरों के साथ डॉक्टर शशि गांधी को भी रखा था। डॉक्टर गांधी ने बजाय सही ढंग से जांच रिपोर्ट तैयार करने के उल्टे शिकायतकर्ता डॉक्टर मान सिंह पर दबाव बना कर उल्टा-सीधा लिखना शुरू कर दिया जिसका विरोध डॉ. मान सिंह ने तो किया सो किया कमेटी के दोनों सदस्यों ने भी किया।
डॉ. शशि गांधी फ्रॅाडी सांगवान का पक्ष क्यों ले रही थी, यह जानने के लिये जब उनका इतिहास खंगाला गया तो पाया कि वह तो सांगवान से भी कई गुणा अधिक काला है। इतना काला कि सन 2015 में हरियाणा के तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव डॉ. राकेश गुप्ता (जो यहां डीसी भी रह चुके थे) उन्हें रंगे हाथों पकडऩे के लिये रेड भी करवाई थी। जानकार बताते हैं कि सीएमओ की चहेती होने के नाते उन्हें पीएनडीटी रेड का काम स्थाई रूप से सौपा गया था। यह रेड उन अल्ट्रासाऊंड करने वाले डॉक्टरों पर की जाती है जो गर्भस्थ शिशु का लिंग बताते हैं। डॉ. गांधी के लिये यह मोटी कमाई का धंधा था।
इस धंधे में होता यह था कि लिंग बताने वाले को तो मोटे पैसे लेकर छोड़ दिया जाता था और न देने वाले को बेकसूर होते हुए भी लपेट दिया जाता था। किसी डॉक्टर ने हिम्मत करके यह मामला डॉ. राकेश गुप्ता के नोटिस में ला दिया। उन्होंने तुरन्त छापामारी टीम गठित की, छापा भी मारा गया परन्तु यह बच निकली। बच इसलिये निकली कि छापेमारी की योजना डॉ. राकेश गुप्ता ने चंडीगढ स्थित अपने कार्यालय में बनायी थी। उन्हें शायद ज्ञान नहीं था कि शशि गांधी के इस घोटाले की जड़ें का$फी गहरी हैं और तत्कालीन सीएमओ गुलशन अरोड़ा तक भी इसमें शामिल हो सकते हैं। लिहाज़ा चंडीगढ में ड्रग्ज़ विभाग के तनेजा नामक एक अधिकारी ने इसकी सूचना सीएमओ को दे दी जिसने डॉ. गांधी को सचेत कर दिया और वह बाल-बाल बच निकली।
सीएमओ गुलशन अरोड़ा ने उक्त छापेमारी के अतिरिक्त अनधिकृत रूप से गर्भपात करने वाले निजी नर्सिंग होमों पर छापेमारी का अधिकार भी डॉ. गांधी को ही दे रखा था। उनके अधीन इस तरह का काम करने को सक्षम दर्जनों डॉक्टर और भी मौजूद थे, लूट कमाई में से वे भी उन्हें हिस्सा तो देते ही, इसके बावजूद सीएमओ द्वारा गांधी पर मेहरबान होने के अन्य कारण भी हैं।
विदित है कि फरीदाबाद में तैनाती के बावजूद सीएमओ व डॉ. गांधी गुडग़ांव में निवास करते थे, वहीं से ड्यूटी करने यहां आया करते थे। सीएमओ अरोड़ा की डॉ. गांधी से घनिष्ठता इतनी थी कि वे घर से दफ्तर के लिये निकल कर अक्सर डॉ. गांधी के घर नमस्ते करने पहुंच जाया करते थे और ड्राइवर बाहर इन्तज़ार में कल्पता रहता था।
उधर डॉ. मान सिंह की शिकायत पर पुलिस के साथ-साथ विभागीय कार्यवाही भी ठप्प है। यद्यपि डॉ. मान सिंह ने डॉ. गांधी की नीयत को देखते हुए उनसे जांच कराने के लिये सा$फ इन्कार कर दिया है। इसके बावजूद डॉ. गांधी उनकी जांच करने के लिये जबरन दबाव बनाये हुए है। ऐसे में सीएमओ कृष्ण कुमार महज एक तमाशबीन की भूमिका निभा रहे हैं। फ्रॉडी सांगवान ज्यों का त्यों बीके अस्पताल में दनदना रहा है।
मजे की बात तो यह है कि बल्लबगढ के जिस अस्पताल में उसकी पोस्टिंग है वहां तीन फार्मासिस्टों की पोस्ट हैं जिनमें से एक रिक्त थी। दो तैनातियों में से एक पर सांगवान तथा दूसरी पर एक महिला तैनात है। सीएमओ द्वारा सांगवान को बीके में बुला लिये जाने से बल्लबगढ में तीन फार्मासिस्टों की जगह केवल एक महिला काम को जैसे-तैसे सम्भालने का यत्न कर रही है। समझ नहीं आता कि सांगवान में कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं जो सीएमओ कृष्ण कुमार इसे अपने साथ चिपकाये बैठे हैं?