खट्टर ने तो संघ का बस्ता ढोया पर दुष्यंत चौटाला की तो खानदानी राजनीति ही किसान पर टिकी है, वे कहां तक अपना मुंह छिपायेंगे?

खट्टर ने तो संघ का बस्ता ढोया पर दुष्यंत चौटाला की तो खानदानी राजनीति ही किसान पर टिकी है, वे कहां तक अपना मुंह छिपायेंगे?
April 09 09:38 2020

कोरोना की आड़ में असली मार तो किसानों पर पडऩे वाली है

फरीदाबाद (म.मो.) एक तथाकथित राष्ट्रीय अखबार के पहली अप्रैल वाले स्थानीय संस्करण में पलवल के निकट किसी गांव में गेहूं की फसल काटते किसानों की फोटो के नीचे लिखा था लॉकडाउन के बावजूद किसान अपनी फसल काटने में जुटे हैं। तो क्या उन्हें लॉक डाउन हटने का इन्तज़ार करना चाहिये था जबकि इसकी निश्चित अवधि किसी को पता नहीं। खेती की थोड़ी सी जानकारी रखने वाले जानते हैं कि पकी हुई फसल को तुरंत काटना बहुत जरूरी होता है नहीं तो वह किसी भी तरह से नष्ट हो सकती है। ऐसे में किसान किसी लॉक-डाउन या कफ्र्यू के हटने का इन्तजार नहीं कर सकता है। हरियाणा भर में गेहूं की कटाई अप्रैल माह में लगभग पूरी हो जाती है। सरकार की ओर से भी मंडियों में गेहूं की खरीदारी का काम प्राय: पहली अप्रैल से शुरू हो जाता है। लेकिन इस बार हरियाणा सरकार ने सरकारी खरीद की शुरूआत 20 अप्रैल से करने की घोषणा की है।

पहला सवाल तो यह है कि 20 दिन तक किसान अपनी साल भर की मेहनत से तैयार की हुई फसल को रखेगा कहां और दूसरा प्रश्न उससे भी भयंकर है जो 20 तारीख के बाद सरकार की लचर तैयारियों के चलते खड़ा होने वाला है।

सुधी पाठक जान लें कि अधिकतर किसान आजकल हार्वेस्टर कम्बाइन से फसल कटाते हैं। इसके जरिये गेहूं सीधे ट्रैक्टर की ट्राली में भर दिया जाता है जो सीधे मंडी में जाकर खाली की जाती है। जो किसान थ्रैशर आदि से गेहूं निकालते हैं वे भी गेहूं के ढेर लगा कर फिर ट्रालियों में भर कर सीधे मंडियों में ले जाते हैं। अर्थात किसान अपने गेहूं को बोरियों में भर कर अपने घरों में नहीं रख सकता और न ही उसके पास किसी गोदाम में रखने की क्षमता होती है। उसे फसल बेच कर तुरंत पैसे की जरूरत होती है।

इन हालात में अब शीघ्र ही शुरू होने वाला है असली तमाशा। फसल कटाई शुरू हो चुकी है, किसान के पास गेहूं रखने की कोई जगह नहीं, वह मंडी की ओर भागेगा, वहां सरकार खरीद 20 अप्रैल से पहले करेगी नहीं तो क्या होगा? हंगामा, बड़े पैमाने पर, क्योंकि किसान आखिर गेहूं रखे तो रखे कहां? आंधी, बारिश, कीड़े-मकोड़े व आवारा पशुओं की फौज, सभी किसान के दुश्मन और ऊपर से खट्टर और दुष्यंत चौटाला की सरकार भी दुश्मनी निभाने में कोई कोर कसर छोडऩा नहीं चाहती। खट्टर तो चलो खट्टर है, उनका तो किसान व किसान राजनीति से कभी कोई वास्ता रहा नहीं, उन्होंने तो तमाम उम्र संघ के हिन्दुत्व का बस्ता ढोया है, बात आकर अटकती है दुष्यंत चौटाला पर जिनकी खानदानी राजनीति ही किसान पर टिकी है, वे कहां तक अपना मुंह छिपायेंगे?

दूसरा सवाल जो 20 तारीख के बाद खड़ा होने वाला है, वह खरीद की लचर-पचर एवं भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था। नियम यह है कि सरकारी खरीद का गेहूं केवल उन्हीं 50 किलो के कट्टों में भरा जाता है जिन पर सरकारी मुहर लगी होती है जो सरकार द्वारा आढती को दिये जाते हैं। किसान द्वारा लाये गये गेहूं के ढेर की खरीद करने के बाद गेहूं को उन कट्टों में भरा जाता है। भ्रष्टाचार एवं किसान की लूट यहीं से शुरू हो जाती है। मंडी में डालने की जगह नहीं होती। बड़ी मुश्किल से किसान कहीं उसे डालता है। उधर खाली कट्टे देने वाला सरकारी कर्मचारी तब तक आढती को कट्टे नहीं देता जब तक उसे चुग्गा-पानी न दिया जाय। इसके बाद ढेरी को खरीदने वाला कर्मचारी तब तक नहीं आता जब तक उसका मुंह न फूंका जाय।

गेहूं को कट्टों में भरने के बाद तुलाई में कम से कम डेढ-दो किलो का बट्टा किसान को लगाया जाता है। उसके बाद कट्टों की सिलाई (जो पहले सूए से होती थी अब एक मशीन से होती है) करने वाला और भरे कट्टों को उठा कर सरकारी गोदाम तक ले जाने वाला ठेकेदार अलग से ब्लैकमेल करता है क्योंकि जब तक वह कट्टों को उठायेगा नहीं तो और ढेरी वहां कैसे लगेगी? इस ‘मेहरबानी’ की कीमत वसूलना वह अपना अधिकार समझता है।

इन सब बातों के अलावा और भी कई अन्य तरीकों से किसान को लूटा जाता है। कभी उसके गेहूं में नमी तो कभी दाने के आकार-प्रकार को लेकर ड्रामेबाज़ी की जाती है। लेकिन सम्बन्धित अधिकारियों की मुट्ठी गर्म होने पर गेहूं के सारे ‘दोष’ दूर हो जाते हैं, न नमी रहती है न आकार प्रकार में कोई कमी। ऐसा नहीं है कि यह सब इतना गुप-चुप होता है कि किसी को पता ही न चले। यह सब खुले आम होता है। किसान चिल्लाते हैं, हंगामा करते हैं, शिकायतें करते हैं जिसके बदले सरकार एवं उच्चाधिकारी थोथे आश्वासन एवं उचित कार्यवाही का भरोसा दिलाते हैं। परन्तु सब कुछ साल दर साल ज्यों का त्यों चलता रहता है क्योंकि मंडी में लूट के लिये तैनाती पाने वाले कर्मचारी इसके लिये सम्बन्धित उच्चाधिकारियों व राजनेताओं को एडवांस भुगतान करके ही तैनाती पाते हैं।

मज़दूर मोर्चा’ यह सब पहली अप्रैल को लिख रहा है, जो पांच अप्रैल को वायरल हो जायेगा, लेकिन उसके बावजूद भी भ्रष्टतंत्र एवं लूट का धंधा ज्यों का त्यों चलता रहेगा। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अभी तक सरकार ने गेहूं भराई के लिये आवश्यक कट्टों की खरीद ही नहीं की है।

 

 

 

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Mazdoor Morcha
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