क्या फौज इसी काम के लिए रह गयी है
विवेक कुमार
भारत में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (विपिन रावत) का पद बनाये जाने के बाद से 1 मई 2020 को पहली बार तीनों सेनाओं के प्रमुख व सीडीएस ने संयुक्त बैठक की। हालांकि आम दिनों में ऐसी बैठकें नहीं होती और इस प्रकार से सेना के टॉप कमांडर्स की मीटिंग का होना कोई आम बात है भी नहीं।
नागरिकों को सनद रहे कि इस प्रकार संयुक्त सैन्य बैठकें तानाशाही व्यवस्था वाले राष्ट्रों में विशेष महत्व रखती हैं। पर भारत जैसे देश में जहां लोकतंत्र लगातार ओंधे मुंह गहराईयां नाप रहा है वहां बिना अनुच्छेद 358 के लागू हुए, न इसकी संभावना के होते इस मीटिंग के क्या मायने हैं? यह सवाल विशेषज्ञों में कौतूहल पैदा कर गया।
खैर मीटिंग समाप्त हुई और जनता के सामने रोडमैप आया कि सेना डॉक्टरों व अन्य कोरोना वारियर्स का सम्मान करेगी। जिसमें आर्मी अस्पतालों ले लिए बैण्ड बजायेगी (वैसे अस्पताल के सामने नो हॉर्न के बोर्ड लगे होते हैं), नेवी अपने जहाजों पर रोशनी करेगी एवं एयरफोर्स हवा से अस्पतालों पर पुष्प वर्षा करेगी।
इस सम्मान कार्यक्रम को पाकर कितने सम्मानित होंगे कोरोना वारियर्स ये तो वही जानें। पर भक्तगणों का मोदी से सवाल है कि पिछले दिनों से कोई टास्क नहीं दिया था, क्या हम पर भरोसा नहीं रहा? इसका जवाब शायद अगले मन की बात में मिले।
पर चार सेना कमाण्डर क्या मात्र फूल बरसाने या ढोल बजाने का प्रोग्राम बनाने के लिए इकट्ठे हुए थे, यदि हां तो इससे ज्यादा शर्म की और क्या बात बची। जबकि यह काम किसी भी फूल वाले या बैण्ड वाले से करवाया जा सकता था।