फरीदाबाद डीसीपी विक्रम कपूर आत्महत्या काण्ड बीते साल अख़बारों में छाया रहने वाला एक चर्चित मुद्दा था| बिकाऊ अख़बारों ने उस वक़्त सतीश कुमार (संपादक मजदूर मोर्चा) को पुलिसिया इशारे पर गुनाहगार बनाना शुरू कर दिया था| जैसे–जैसे वक़्त बीता यह प्रयास गायब होता गया; कारण, खोदा पहाड़ निकला चूहा, यानी झूठ को सच साबित करना पुलिस के लिए भी उतना ही मुश्किल सिद्ध हुआ जितना बिकाऊ अख़बारों के लिए|
जिस डीसीपी कपूर के आत्महत्या के बाद पुलिस ने ये बताने का प्रयास किया कि उन्हें अपने अफसर की मृत्यु पर कितना गंभीर धक्का लगा है, उस पुलिस की असली बानगी यह है कि समय रहते अपने उसी अफसर को मृत्यु के मुंह से बचाने का तनिक भी प्रयास उसके आला अधिकारियों ने नहीं किया|
यहाँ पाठकों को बता दें कि 2-8 जून 2019 के मजदूर मोर्चा अंक में डीसीपी कपूर के सट्टा खिलवाने सम्बंधित छपी खबर को लेकर फरीदाबाद शहर के जाने-माने समाजसेवी और वकील डाक्टर ब्रह्मदत्त ने हरियाणा के डीजी लॉ एंड आर्डर के नाम 8 जून 2019 को एक शिकायत पत्र डाल कर एक्शन की मांग की थी|
इतना ही नहीं पद्मश्री डाक्टर ब्रह्म दत्त ने मजदूर मोर्चा की खबर गलत पाए जाने और स्वार्थपूर्ति के कारणों से छपने की सूरत में डीजी साहब से अखबार के विरुद्ध भी कड़ी कार्यवाही की मांग की थी| परन्तु डीजी लॉ एंड आर्डर को शायद यह गंभीर मामला जांच योग्य नहीं जान पड़ा और इस शिकायत का कोई जवाब नहीं दिया गया|
इसके बाद, पहले वाली शिकायत का हवाला देते हुए डॉ. ब्रह्मदत्त ने दूसरी चिट्ठी फरीदाबाद के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर संजय कुमार के नाम लिखी, जिसकी कॉपी फिर से डीजी लॉ एंड आर्डर को भी भेजी गयी थी| उन्होंने 05/07/19 की इस चिट्ठी में पुलिस की छवि के खराब होने का हवाला देते हुए मजदूर मोर्चा अखबार 23-29 जून में छपी खबर की प्रति भी संलग्न की|
लेकिन आला अधिकारियों का हाल जस का तस रहा और किसी प्रकार का संज्ञान न लेते हुए कमिश्नर फरीदाबाद एवं डीजी लॉ एंड आर्डर दोनों ने अपनी निष्क्रियता का परिचय दिया|
डीसीपी कपूर की आत्महत्या के सन्दर्भ में डॉ. ब्रह्मदत्त ने तीसरी चिट्ठी 29 नवम्बर 2019 को कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए डीजीपी हरियाणा पुलिस मनोज यादव को लिखी जिसे कमिश्नर फरीदाबाद केके राव को भी कॉपी किया और साथ ही पिछली दो शिकायतों को भी संलग्न किया|
इस चिठ्ठी में उन्होंने लिखा कि यदि उनकी शिकायतों पर गंभीरता से विचार किया गया होता तो डीसीपी कपूर की जान बच सकती थी| विभाग ने यदि अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए डीसीपी कपूर पर कोई जांच बैठाई होती और उनका तबादला कर दिया होता तो शायद इंस्पेक्टर, जिसका ज़िक्र सुसाइड नोट में डीसीपी कपूर ने किया है से लगातार प्रताड़ना का सिलसिला टूट गया होता|
यह कोई पहला अवसर नहीं है जब विभाग के भीतर इस प्रकार के परस्पर प्रताड़ना की शिकायत सामने आई हो| ऐसे में, यदि विभाग सजग होता तो अपने अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच स्वस्थ पेशेवर संबंधों को लेकर और पुलिसकर्मियों के संपर्क में आने वाले ज़रुरतमंदों से सावधानीपूर्ण बर्ताव को लेकर बड़े पैमाने पर ट्रेंनिंग एवम् काउंसलिंग भी आयोजित करता|
दुर्भाग्यवश ऐसा न हो सका और हद तो तब हो गई जब अपनी पहले की दो शिकायतों के सदर्भ में डाली आरटीआई के जवाब में हरियाणा पुलिस का जवाब आया कि उनके शिकायत पत्र ट्रेस नहीं हो सकते जबतक कि डॉ. ब्रहमदत्त डायरी नंबर में शिकायत की तारीख न बता सकें|
हैरानी की बात यह है कि वांछित जवाब पुलिस विभाग से अब तक भी नहीं मिला है| इस लापरवाही से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पहले जिन आला अधिकारियों को अपने महकमे की इज्ज़त सटोरियों के हाथ बिकते शर्म नहीं थी उन्हें आज अपने एक अधिकारी की जान जाने के बाद भी भविष्य में ऐसा न हो इसकी कोई परवाह नहीं| हाँ ठीकरा फोड़ने के लिए फिर किसी सतीश कुमार को अवश्य फंसा देंगे| नहीं फंसा सके तो कोई बात नहीं नयापालिका कौन सा इन्हें इस अपराध की सजा देगी, रोज का काम है यह सब पुलिस के लिए|