‘आयुष्मान भारत’ के बाद मोदी का एक और हेल्थ ड्रामा
मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
नई दिल्ली: 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जुमलों की धुंआधार बरसात करते हुए एक जुमला देशवासियों की स्वास्थ्य सेवा को लेकर भी छोड़ा। इसके लिये पीएम मोदी ने देशवासियों की स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करते हुए एक और ‘ऐतिहासिक’ तोहफा दिया गया है। वैसे मोदी का हर काम ‘ऐतिहासिक’ ही होता है फिर भी वे बताना नहीं भूले कि उन्होंने देश के हर नागरिक को राष्ट्रीय हैल्थ मिशन के तहत डिजिटल हैल्थ कार्ड देने का निर्णय लेकर एक नया इतिहास रच दिया है। इस काम के लिये उनकी सरकार ने 500 करोड़ रुपये का प्रावधान भी कर दिया है।
सुधी पाठक भूले नहीं होंगे कि करीब ढाई वर्ष पूर्व इन्होंने दुनिया के इतिहास में एक नया ‘ऐतिहासिक’ कदम उठाते हुए देश की 50 करोड़ जनता के लिये ‘आयुष्मान भारत’ नामक गोल्डन कार्ड का आविष्कार किया था। इसके द्वारा पांच लाख रुपये तक के इलाज का बीमा करने की घोषणा की गयी थी। कार्ड-धारक योजना के तहत लिस्टेड किसी भी सरकारी एवं निजी अस्पताल में पांच लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त करा सकता है। लेकिन मोदी सरकार की इस फर्जी योजना को न तो किसी बीमा कम्पनी ने स्वीकार किया और न ही किसी निजी अस्पताल ने। हां सरकारी अस्पतालों में ‘गोल्ड-कार्ड’ बनाने की प्रक्रिया जरूर शुरू कर दी गयी थी जिसके लिये पागल होकर जनता सारा-सारा दिन कतारों में खड़ी रहती थी। दिखावे और प्रचार के लिये सरकार ने कुछ लो$गों का इलाज करके अपनी पीठ थपथपा ली थी।
कार्ड की जहां तक बात है तो देश में पहली बार ईएसआईसी ने 1952 में कार्ड जारी किये थे जिसके द्वारा कार्डधारक परिवारों को मुफ्त इलाज उपलब्ध कराने की बात कही गयी थी।
परन्तु वास्तव में यह भी मुफ्त नहीं था। इसके लिये श्रमिक के वेतन का 6.5 प्रतिशत वसूला जाता है। अपने प्रारम्भिक काल में तो इसके द्वारा औद्योगिक श्रमिकों को कुछ बेहतर स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध हुई, देश के कुछ भागों में तो अब भी कुछ बेहतर चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध हैं, परन्तु अधिकांश भागों में इस सेवा का हाल बेहाल है। दूर जाने की जरूरत नहीं इस योजना की दुर्दशा को $फरीदाबाद, गुडग़ांव सहित पूरे हरियाणा में देखा जा सकता है। मज़दूरों के वेतन से काटे गये पैसे के अम्बार लगे पड़े हैं लेकिन उसके बावजूद न तो पर्याप्त डिस्पेंसरियां व अस्पताल हैं और जो हैं भी उनमें न तो पर्याप्त स्टा$फ है और न ही आवश्यक उपकरण आदि हैं। ईएसआई कार्पोरेशन के पास पैसे की कोई कमी न होने के बावजूद सुविधाओं का नितांत अभाव रखने से स्पष्ट हो जाता है कि शासक वर्ग श्रमिकों के प्रति कितना उदासीन है।
नये ‘ऐतिहासिक’ शगूफे के तौर पर 15 अगस्त को छोड़े गये डिजिटल हेल्थ कार्ड के बारे में कहा गया है कि यह एक तरह से मरीज़ की जन्मकुंडली के समान होगा जिसे देखते ही डॉक्टर मरीज़ की सारी स्थिति को समझ कर इलाज शुरू कर सकेगा। इस कार्ड में जन्मकुंडली के रूप में मरीज़ का हाल कोई मन्दिर का महंत तो लिखने से रहा, इसके लिये तो मरीज को डॉक्टर के पास ही जाना पड़ेगा और जन्मकुंडली पढने वाला भी कोई डॉक्टर ही होगा तभी तो इलाज शुरू हो पायेगा। यानी कुल मिला कर बात तो वहीं आ गयी कि जनता की बीमारियों का इलाज तो अस्पतालों में डॉक्टर ही करेंगे न कि किसी प्रकार का गोल्डन अथवा डिजिटल कार्ड।
जाहिर है इसके लिये जरूरत है अस्पतालों की और उनमें पर्याप्त डॉक्टरों, अन्य स्टाफ और आवश्यक साजो-सामान की। इसके लिये जरूरी है विज्ञापनबाज़ी व ढकोसलेबाज़ी पर पैसा बर्बाद करने की बजाय वास्तविक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिये अधिक से अधिक मेडिकल कॉलेज व अस्पताल खोले जायें। मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई की गुणवत्ता बनाये रखने के लिये एमसीआई को भंग करने की जगह इसको और मजबूत एवं पारदर्शी बनाया जाए। टैक्स के रूप में जनता से लूटे जा रहे धन को अपनी अय्याशियों पर खर्च करने की अपेक्षा शासक वर्ग को हेल्थ सेक्टर पर मौजूदा खर्च चार गुणा तक बढ़ाना चाहिए। ज्ञातब्य है कि देश की कुल जीडीपी का एक प्रतिशत भी इस पर खर्च नहीं किया जा रहा। इसके अलावा इस बजट को पूर्व सवास्थ्य मंत्री नड्डा जैसे घोटालेबाजों की सेंधमारी से बचा कर रखना भी जरूरी है।