पीपली में किसान पिटते रहे, दुष्यंत और दिग्विजय उल्लू बनाते रहे
मजदूर मोर्चा ब्यूरो
फरीदाबाद: कुरुक्षेत्र के पीपली में किसानों के पीटे जाने से हरियाणा की खट्टर सरकार का तानाशाही रवैया सामने तो आया ही है, लेकिन किसानों की हितैषी बताने वाली और भाजपा गठबंधन की सहयोगी पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का बहुत घिनौना चेहरा सामने आया है। पीपली के घटनाक्रम ने साबित कर दिया है कि किसानों से हमदर्दी के नाम पर चौटाला खानदान गद्दारी करता रहा है।
किसानों से फर्जी हमदर्दी
क्या आपको 15 दिसंबर 2017 की वो तस्वीर याद है जिसमें तत्कालीन इनैलो सांसद दुष्यंत चौटाला संसद भवन तक शीतकालीन सत्र में हिस्सा लेने पहुंच गया था। तब दुष्यंत ने बताया था कि किसानों की समस्याओं की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए उसने संसद तक ट्रैक्टर चलाया है। इसके बाद दुष्यंत ने कई बार इस ट्रैक्टर को हथियार बनाया। कभी वो वोट डालने ट्रैक्टर से गया, कभी रैली को संबोधित करने ट्रैक्टर से गया। किसानों में उसे उम्मीद दिखी। फिर इन लोगों ने अलग से जेजेपी बनाई। किसान मतदाताओं ने चौधरी देवीलाल का वारिस समझकर जेजेपी को पिछले चुनाव में खूब सारे वोट दिए। किसानों के वोट ने दुष्यंत चौटाला को इन हालात में ला दिया कि वो भाजपा से सौदेबाजी कर सकें और डिप्टी सीएम का पद हासिल कर लें। लेकिन इनकी मंजिल यहीं तक थी। सत्ता और पद पाने के बाद दुष्यंत किसानों को भूल गया।
पीपली में जब कल किसान पीटे जा रहे थे तो दुष्यंत का भाई दिग्विजय ट्वीट करके और मीडिया में बयान देकर नकली हमदर्दी जता रहा था। दिग्विजय ने कहा कि पीपली में किसानों को पीटे जाने की घटना निन्दनीय है। हम किसानों का दर्द अपना समझते हैं। इस घटना की जांच होनी चाहिए। लेकिन दुष्यंत चौटाला का इस घटना को लेकर कोई बयान नहीं आया। जबकि डिप्टी सीएम की नजर राज्य के चप्पे चप्पे के घटनाक्रम पर होनी चाहिए।
किसान पिछले दस दिनों से अपने आंदोलन की घोषणा कर रहे थे। मुख्यमंत्री के आदेश पर कोरोना की आड़ में किसानों के आंदोलन पर पाबंदी लगा दी गई। किसान फिर भी जब 10 सितंबर के प्रदर्शन के लिए अड़े रहे तो कुरुक्षेत्र और पीपली में धारा 144 लगा दी गई। लगभग सभी अनाज मंडियों में पुलिस तैनात कर दी गई। हरियाणा के विभिन्न हिस्सों से पीपली आ रहे किसानों को रोककर नजरबंद कर दिया गया।
किसानों को पीटने वाले सादा कपड़ों में कौन थे
किसान इसके बावजूद 10 सितंबर को पीपली आ पहुंचा। लेकिन वहां पुलिस के अलावा सादा कपड़ो में जवान लाठी लेकर इनका इंतजार कर रहे थे। घटनास्थल से खींचे गए फोटो और वीडियो इस बात की गवाही दे रहे हैं कि किस तरह बुजुर्ग किसानों को पीटा गया। भाजपा और आरएसएस अब किसी भी जन आंदोलन को कुचलने के लिए सादा कपड़ों में अपने ऐसे स्वयंसेवकों को घुसा देते हैं जिनका काम सिर्फ लोगों को पीटना है। अब तक दिल्ली के दंगों में, जेएनयू, जामिया और एएमयू में ऐसे गुंडे स्वयंसेवकों को लाठी भांजते देखा गया है। हरियाणा पुलिस में अधिकांश जवान किसानों के बेटे हैं। वे अपने ही बुजुर्गों को पीटने की गिरी हुई हरकत नहीं कर सकते। इसलिए संघ और भाजपा की सलाह पर आला अफसर ऐसे स्वयंसेवकों की सेवाएं लेने लगे हैं। इन बेरोजगार स्वयंसेवकों से कहा गया है कि निकट भविष्य में उन्हें पुलिस और सेना में नौकरी मिल सकती है।
पीपली में जुटे किसान क्या चाहते हैं
हरियाणा के किसान उन तीन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं, जिन्हें हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ने पास किया है। किसानों का ऐसा आंदोलन सिर्फ हरियाणा में ही नहीं हो रहा है। पंजाब के किसान भी इस मुद्दे पर आंदोलन कर रहे हैं। मोदी सरकार एक अध्यादेश का जोरशोर से प्रचार कर लाई थी – वन नेशन-वन मार्केट यानी एक देश और एक बाजार। सुनने में अच्छा लगने वाला शब्द है लेकिन दरअसल, इसकी आड़ में किसानों की मौत का परवाना साबित होने वाला है यह अध्यादेश। इससे फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाना खत्म हो जाएगा। इस कानून के तहत व्यापारी किसानों से बाहर ही उनकी उपज का सौदा कर लेंगे। किसानों की उपज मंडी में कभी पहुंचेगी ही नहीं।
अभी बाजार में क्या होता है कि किसानों की उपज सालभर तक मंडी में आती रहती है और रेट घटते बढ़ते रहते हैं। नया कानून सारा फायदा व्यापारियों के हाथों में दे रहा है। इससे कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग बढ़ेगी। यानी व्यापारी फसल आने से पहले ही किसानों के खेत बुक कर लेंगे। शुरू में किसानों को मुंहमांगी कीमत मिलेगी लेकिन बाद में किसानों की कमर तोड़ दी जाएगी। रिलायंस और अदानी कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में उतरने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं।
मोदी सरकार ने दूसरे अध्यादेश के जरिये आवश्यक वस्तु अधिनियिम 1955 को बदल दिया है। इससे फूड प्रोसेसिंग में जुटी रिलायंस और अदानी की कंपनियों को सीधा फायदा होगा। इसके तहत स्टाक की निश्चित सीमा खत्म कर दी गई है। यानी रिलायंस या अडानी प्याज और आलू का चाहे जितना स्टाक कर लेंगे। कई अनाज, दालों, खाद्य तेल को आवश्यक वस्तु अधिनियिम से बाहर करके इसके स्टाक की सीमा खत्म कर दी गई है। यानी व्यापारी एक बार सस्ते में किसानों से उनकी उपज खरीदकर बड़े पैमाने पर स्टाक कर लेंगे और उसकी कीमत अपने हिसाब से तय करेंगे। मसलन अडानी फॉरच्यून रिफाइंड तेल बेचता है। यह तेल सूरजमुखी के फूलों और अन्य चीजों से तैयार होता है। अब अडानी को किसानों से सूरजमुखी के फूल खरीदकर उन्हें स्टाक करने की खुली छूट होगी। फॉरच्यून रिफाइंड आयल इस देश में बहुत बड़ा ब्रैंड बन चुका है।
एक और खतरनाक अध्यादेश मोदी सरकार लाई है, जिसे फॉरमर्स एग्रीमेंट आन प्राइस एश्योरेंस एंड फॉर्म सर्विस आर्डिनैंस। इसके जरिए बड़ी कंपनियां किसानों से अनुबंध कर उनके खेतों को अपने कब्जे में ले लेंगी। किसान सिर्फ अपने खेत पर मजदूर बनकर रहेगा।
यूपी और महाराष्ट्र के आम उत्पादकों के साथ यह खेल हो चुका है। मलीहाबाद (लखनऊ) का दसहरी आम पूरी दुनिया में मशहूर है लेकिन बाजार में इसकी कीमत और उपलब्धता रिलायंस तय करता है। मलीहाबाद और आसपास के गांव में आम उत्पादक सिर्फ बाग की रखवाली करते हैं। भारत की मंडियों में बिकने वाला दसहरी, लंगड़ा, चौसा, तोतापरी आम भी अब रिलायंस से खरीदकर बेचा जाता है।
हरियाणा और पंजाब में किसान बड़े काश्तकार हैं। इन तीनों अध्यादेशों से सबसे ज्यादा नुकसान में रहेंगे। इसलिए सबसे ज्यादा विरोध इसी बेल्ट में हो रहा है। भाजपा ने किसानों के आंदोलन को कांग्रेस प्रायोजित बताकर इसे दूसरा रंग देना चाहा लेकिन इस आंदोलन से कांग्रेस का कोई संबंध नहीं है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला ने इसे नैतिक समर्थन दिया था और एक-दो ट्वीट किसानों के हक में किये थे। इससे ज्यादा उनका इस आंदोलन से कोई वास्ता नहीं है। इसे पूरी तौर पर भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) चला रहा है।