कानून सबके लिये बराबर है, यही दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है, बल्कि यह तो मकड़ी का वो जाला है जिसमे कीड़े मकौड़े तो फंस जाते हैं पर बड़े जानवर इसे तोड़ कर बाहर हो जाते हैं…

कानून सबके लिये बराबर है, यही दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है, बल्कि यह तो मकड़ी का वो जाला है जिसमे कीड़े मकौड़े तो फंस जाते हैं पर बड़े जानवर इसे तोड़ कर बाहर हो जाते हैं…
July 18 08:38 2020

पैसा है तो पसंदीदा धारा लगवाइये … पलवल पुलिस से

ग्राउंड जीरो से विवेक कुमार 

देश के प्रधानमन्त्री ने जनता से कहा आत्मनिर्भर बनो, हालाँकि उनके ऐसा कहने से पहले ही कई बने बैठे थे। पर प्रधानमंत्री को इन सबसे क्या? उन्होंने कहा बनो तो मतलब बनो। पहले से बने बैठे हो तो पहले भिखारी बनो और फिर घूम के आओ और आत्मनिर्भर बनो ताकि मोदी के नारे का असर लगे। ऐसे ही एक आत्मनिर्भर यूनिट को पुलिस और एक अखबार द्वारा बेबुनियाद मुक़द्दमे का डर दिखा कर भिखारी बनाने की कोशिशें फरीदाबाद-पलवल में चल रही हैं।

वरुण और गगनदीप दिल्ली राजेंद्र नगर और राजौरी गार्डन के रहने वाले हैं और 18 महीने पहले तक क्वालिटी लिमिटेड नामक कम्पनी में काम करते थे। क्वालिटी लिमिटेड कंपनी सूखे दूध पाउडर और उससे निर्मित उत्पाद बनाती है, जिसका प्लांट पलवल, ग्राम सोफ्ताका में स्थित है।  करीब डेढ़ वर्ष पहले कंपनी ने नौकरी छोडऩे के बदले अन्य कर्मचारियों की ही तरह इन युवकों से भी सेटलमेंट किया और एक तय मुश्त रकम देने के वादे के साथ काम से निकाल दिया। वरुण और गगन ने बताया कि एक तो वह पैसे आज तक कंपनी ने उन्हें नहीं दिए उल्टे पलवल के गद्पुरी थाने में अपने  रसूख का फायदा उठाकर एक फर्जी एफआईआर भी दर्ज करवा दी।

दरअसल इन दोनों नवयुवकों ने जो काम सीखा उसी को नौकरी जाने के बाद अपना कैरियर बनाने का फैसला किया। इसके तहत उन्होने एक प्रोडक्ट क्रीमी काउंटी (creamy county) को रजिस्टर करवाया। जिस क्वालिटी लिमिटेड नामक कंपनी में यह कार्यरत थे उस कंपनी के पास भी इससे मिलते जुलते नाम (kream kountry) का एक प्रोडक्ट पहले से था जैसा कि पुलिस की एफआईआर में लिखा गया है। दोनों नामो की स्पेलिंग में अंतर होने के नाते कानूनी दावपेंच का मामला नहीं बनता था और कॉपीराईट एवं ट्रेडमार्क इशू करने वाली संस्था जो कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स के अंतर्गत आती है ने इन्हें ट्रेडमार्क भी जारी कर दिया।

लम्बे वक्त के बाद क्वालिटी लिमिटेड के एमडी, फरीदाबाद सेक्टर 9 निवासी ऋषिपाल ने गद्पुरी पुलिस थाने में अब यह कह कर मुकद्दमा दर्ज करवाया कि उनके प्रोडक्ट जिसका कि कॉपीराईट उनके पास है, उसका डुप्लीकेट प्रोडक्ट ही यह युवक भी बेच रहे हैं। सूत्रों से ज्ञात हुआ कि क्योंकि ऋषिपाल जानते हैं कि उनके द्वारा की गई शिकायत में दम नहीं है इसलिए राजनैतिक दबाव डलवा कर पलवल पुलिस से एफआईआर करवा दी। पुलिस को आकाओं का इशारा मिले तो चाँद पर बैठे इंसान को गिरफ्तार कर ले ये दोनों तो फिर भी जमीन पर हैं।

पुलिस के पास इस मुकदमे में करने-धरने को कुछ है नहीं लेकिन वसूली फीस को हजम करने के नाम पर कागज काले कर रही है। वरुण ने बताया कि दो लोगों द्वारा फरीदाबाद सेक्टर 58 स्थित उनके माल बनाने से सम्बंधित प्लांट में मारपीट की गई। जब उसकी शिकायत पुलिस से की तो पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया। करीब 12 दिन बाद जा कर सिर्फ शिकायत को डायरी कर लिया गया। पुलिस ने कॉपीराईट एक्ट 1951 की धारा 63, आईपीसी 406 और 420 के तहत एकआईआर दर्ज करके आकाओं और कंपनी के ओहदेदारों को भी खुश कर दिया और कानून का कोई ज्ञान न होने वाले इन युवकों को भी डरा लिया। अब ये डर कितना काम करेगा यह तो वक्त बताएगा पर फिलहाल पुलिस की नीयत को ज़रा आंक लिया जाए।

एफआईआर में शामिल पहली धारा कॉपीराईट एक्ट की है जिसमे मज़े की बात है कि इन युवकों ने अपना ट्रेड मार्क सम्बंधित विभाग से लिया है (जैसा कि युवकों)  मामला तब बनता जब बिना पंजीकृत किये ये माल बेचते, और जब खुद पंजीकरण ही सरकारी विभाग ने दिया है तो उसकी जांच करने के उपरान्त ही दिया होगा। इस लिहाज से कोई भी ट्रेडमार्क के फर्जीवाड़े में अथॉरिटी की जिम्मेवारी पहले है, तो क्या पुलिस ने भारत सरकार के कॉपीराइट विभाग पर मुकदमा दर्ज किया?

देश का जाना माना अखबार नवभारत टाइम्स जो खुद अपने पत्रकारों को नौकरी से निकाल चुका है, है  उसने खबर को चार कदम आगे जा कर बिना क्रॉस चेक किये छापते हुए लिखा कि जिन पर एफआईआर है उनसे जल्द ही डुप्लीकेट माल की बरामदगी पुलिस करेगी। अब सवाल है कि दोनों प्रोडक्ट्स के नाम में अंतर है और पैकिंग में भी घनघोर फर्क है तो माल की डुप्लीकेसी अखबार ने कैसे साबित की? और जब मामला कानूनन इतना मजबूत है कि दोनों फर्मों को मार्का मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स से ही मिला है तो किस आधार पर नवभारत टाइम्स ने इन युवकों को फर्जी घोषित कर दिया?

मीडिया ट्रायल एक फैशन बनता जा रहा है इस देश में और फर्जी मुकदमा पुलिस का मानो हक। पर आत्मनिर्भरता की दुहाई देने वालों को आत्मनिर्भर होते युवकों की टांग खींचने वाली बड़ी कंपनियों पर लगाम लगाने की कोई जरूरत क्यों नहीं महसूस होती? अव्वल तो किसी भी किस्म की बौद्धिक सम्पदा की दुहाई ही बुद्धिजीवी वर्ग में चर्चा का विषय है फिर भी सच में यदि ये नियम काम करें तो सारा भारत ही नंगा होने पर आ जाएगा।

जिस पुलिसकर्मी ने फर्जी धारा लगाई हैं, वह खुद अपने घर में जा कर देखे तो reebok, nike, और addidas के नाम से reebuk, nikee, adhidas के जूते उसी के बच्चे या वो खुद पहन के घूमता होगा। पूरे देश में बतिश्ता और अंडरटेकर की तस्वीरों  में उनके हाथ पैर टूटे दिखा उन्हें जोडऩे का दावा गाँव के निठल्ले पहलवान करते हैं और सच मानिये यही पुलिस के आधे लोग अपने उतरे कंधे और कूल्हे उनसे जुड़वाने चले जाते हैं।

कानून सबके लिये बराबर है, यही दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है, बल्कि यह तो मकड़ी का वो जाला है जिसमे कीड़े मकौड़े तो फंस जाते हैं पर बड़े जानवर इसे तोड़ कर बाहर हो जाते हैं। 13 जून से हुई एफआईआर में आजतक पुलिस ने न कोई साफ कार्यवाही की न जांच। हाँ इन इन नवयुवकों को जरूर डरा कर इनका धंधा चौपट करने का एक रास्ता खोल दिया और इस बीच बड़ी कंपनी पैसे के दम पर गुंडा गर्दी से मामला हल करवाने की फिराक में लगी है। मामला अदालत से निबटेगा या पुलिसिया अंदाज से ये बाद की बात है, तब तक बेशक सारे आत्मनिर्भर भिखारी बना दिए जाएँ पर मोदी जी के भाषण से आत्मनिर्भर शब्द नहीं हटेगा।

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Mazdoor Morcha
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