फरीदाबाद (म.मो.) 14 अगस्त 2019 को आत्महत्या करने वाले एनआईटी डीसीपी विक्रम कपूर केस की जांच कर रही एसआईटी ने आरोपी इंस्पेक्टर अब्दुल शाहिद, कश्मीरी महिला व डीसीपी कपूर के मोबाइल फोन जांच के लिये एफएसएल हैदराबाद भेजे थे। करीब दो-तीन सप्ताह पहले वहां से आ चुकी रपोर्ट के बारे में न तो पुलिस प्रवक्ता कुछ बोल रहे हैं और न ही एसीपी क्राइम। हां, एक तथाकथित राष्ट्रीय अखबार में जरूर ‘सूत्रों के माध्यम से छपवा रहे हैं कि वहां से आई जांच रिपोर्ट में वह वीडियो मिल गयी है जिसके जरिये डीसीपी को ब्लैकमेल किया जा रहा था अथवा किया जा सकता था।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया बताते हैं कि वीडियो गुप्त कैमरे द्वारा किसी होटल में बना कर मोबाइल में डाली गयी थी। ‘सूत्र अभी इस बात को छुपा रहे हैं कि यह वीडियो उक्त तीनों में से किसके मोबाइल में मिली। यह भी नहीं बता रहे कि यह किस होटल की है।
पूलिस द्वारा अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में जो चालान कोर्ट में पेश किया गया था उसमें स्पष्ट लिखा है कि कपूर साहब उस कश्मीरी महिला के साथ मौज-मस्ती करने सूरजकुंड क्षेत्र में स्थित एक पंचतारा होटल विमांता में गये थे। जाहिर है यह वीडियो भी उसी होटल में तैयार किया गया होगा। चालान को पढने से पता चलता है कि पुलिस ने होटल वालों से न तो कोई पूछताछ की और न ही वहां से कोई चीज़ कब्ज़े में ली। परन्तु यह असम्भव है कि पुलिस ने वहां के सीसी टीवी की फुटेज व एंट्री रजिस्टर कब्ज़े में न लिये हों; यह भी असम्भव है कि पुलिस ने होटल स्टाफ से उक्त जोड़े के आने-जाने के समय के बारे में न पूछा हो और वे कितनी बार यहां आ चुके थे यह भी जरूर पूछा होगा; परन्तु ये सब जानकारियां चालान के माध्यम से सार्वजनिक करने से पुलिस बचना चाहती थी। चालान में होटल के किसी भी कर्मचारी का कोई बयान नहीं है। लेकिन अब पुलिस को उनसे भी बयान लेने पड़ सकते हैं। यदि बयान लेकर भी छिपाये गये थे तो अब सार्वजनिक करने पड़ेंगे क्योंकि गुप्त कैमरे द्वारा वीडियो बनाये जाने की पुष्टि होने पर होटल वाले भी संदेह के घेरे में तो आते ही हैं। कानूनी बहस में जब केस उलझेगा तो यह सवाल भी खड़ा होगा कि वीडियो बनाने से किसको क्या लाभ हो सकता है? इस पर तीनों पक्ष एक दूसरे पर कीचड़ तो उछालेंगे ही।
अब पुलिस के सामने बड़ी समस्या यह है कि उस महिला का क्या करें? उसे आईपीसी की धारा 120 बी के तहत मुल्जि़म बनायें या सरकारी गवाह? पुलिस के सामने दो चैलेंज हैं, एक तो आरोपी इंस्पेक्टर अब्दुल को सज़ा कराना, दूसरे उस महिला को वह सब उगलने से रोके रखना जिसमें उन तमाम उच्च पुलिस अधिकारियों के नाम आ सकते हैं जिनकी सेवा में अब्दुल ने उसे अर्पित किया होगा।
सम्पादक ने एसआईटी से आशंका जता दी थी कि दो पुलिस अफसरों ने अपने निजी खुंदक निकालने के लिये ‘मज़दूर मोर्चा संपादक सतीश कुमार को भी बिना बात के इस केस में लपेटने का पूरा प्रयास किया था, जिन्हें हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत प्रदान कर दी थी। शामिल तफतीश होने पर 26 सितम्बर को एसआईटी मुखिया अमिताभ सिंह ढिल्लों आईजी ने जब कपूर आत्म हत्या के कारण पर उनकी राय जाननी चाही थी तो उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था कि 36-37 साल पुलिस की नौकरी करके आईपीएस बनने वाला अधिकारी इस लिये तो कभी भी सुसाइड नहीं करेगा कि किसी ने उसकी रिश्वत लेते हुये की वीडियो बना ली है या दफ्तर की किसी फाइल में उसका कोई बड़ा घोटाला पकड़ा गया है।
वह केवल उसी हालत में सुसाइड कर सकता है जब उसकी पारिवारिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लगी हो। सार्वजनिक तौर पर इस केस में जिस कश्मीरी महिला का चर्चा हो रहा है उसके साथ किसी प्रकार की वीडियो के वायरल होने के भय के चलते सुसाइड संभव हो सकता है। इस पर ढिल्लों साहब ने कहा कि उन्होंने उस महिला को दो बार इंटेरोगेट कर लिया है, ऐसी तो कोई बात सामने नहीं आई है। जवाब में सम्पादक ने कहा कि यह तो आ जानो और आपकी तफतीश,आपने आत्महत्या के संभावित कारण बारे पूछा था सो बता दिया।
इस सारे मामले में बेशक पुलिस ने अब्दुल शाहिद को दोषी मानकर चालान किया है, रन्तु कम दोषी तो कपूर भी नहीं था जो अपने एक मातहत के सामने इस कदर नंगा हुआ पड़ा था। इन दोनों के अलावा वे उच्चाधिकारी भी कम दोषी नहीं ठहराये जा सकते जिनकी बदौलत अब्दुल एक के बाद एक पदोन्नति पाने के साथ-साथ मलाईदार तैनातियां पाता चला गया। वही अधिकारी कपूर की मौत के लिये जिम्मेदार हैं जिन्होंने कपूर के बारे में बहुत कुछ प्रकाशित होने के बावजूद प्रभावशाली संरक्षण के चलते उसे यहां तैनात रखा। इतना ही नहीं सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री ब्रह्म दत्त द्वारा इस बाबत उच्चतम प्रशासनिक अधिकारियों को पत्र लिखे जाने के बावजूद किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी थी।