ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल का सत्यानाश करने पर तुली है केंद्र सरकार

ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल का सत्यानाश करने पर तुली है केंद्र सरकार
September 06 03:09 2023

510 बेड के अस्पताल में 950 मरीज भर्ती करने पड़े हैं

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) औद्योगिक मज़दूरों के वेतन से चार प्रतिशत (जो साल भर पहले तक 6.5 प्रतिशत होता था) काट कर जो ईएसआई कॉरपोरेशन एक लाख साठ हजार करोड़ अपने खज़ाने में भरे बैठी है, वह मज़दूरों को वांछित चिकित्सा सुविधाएं तक देने में गुरेज़ करती है।

एनएच तीन स्थित मेडिकल कॉलेज- अस्पताल 510 बेड का है और इसमें इस सप्ताह दाखिल मरीजों की संख्या 950 को भी पार कर गई। यह संख्या कोई यकायक नहीं बढ़ गई है मज़दूर मोर्चा बीते करीब एक साल से लिखता आ रहा है कि दाखिल मरीज़ों की संख्या लगातार छह सौ, सात सौ, आठ सौ तक होती जा रही है और अब तो 950 का आंकड़ा पार करने के बाद तो गजब ही हो गया। मरीज़़ों की इस बढ़ती संख्या से मौजूदा डॉक्टर्स व अन्य स्टाफ को बहुत भारी पड़ रहा है। यह जानकर आश्चर्य होगा अस्पताल में उतना स्टाफ भी नहीं है जितना कि 510 बिस्तरों के लिए आवश्यक है। इस पर मरीज़़ों की संख्या में करीब दो सौ प्रतिशत बढ़ोतरी हो जाने के बाद क्या तो मरीज़ो की हालत होगी और क्या डॉक्टरों एवं स्टाफ की, समझना कठिन नहीं है।

किडनी के कऱीब 70-80 मरीज़ प्रतिदिन यहां डायलिसिस कराने आते हैं जिसके लिए केवल नौ लोगों का पैरा मेडिकल स्टाफ है। स्टाफ की कमी के चलते जहां एक ओर मरीज़ो को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है वहीं स्टाफ को भी दस-दस घंटे की दो शिफ्टों में काम करना पड़ता है, कई बार तो इससे ज्यादा काम करना पड़ जाता है। इसके बरअक्स दिल्ली के बसई दारापुर स्थित मेडिकल कॉलेज में कभी भी दस से अधिक डायलिसिस नहीं होते और वहां तैनात हैं 26 पैरा मेडिकल कर्मचारी। संदर्भवश, जहां एक ओर यहां के मेडिकल कॉलेज की ऑक्यूपेंसी 200 प्रतिशत है वहीं बसई दारापुर के मेडिकल कॉलेज की ऑक्यूपेंसी 50 प्रतिशत से भी कम है, इसके बावजूद वहां स्टाफ की भरमार है। फरीदाबाद के इस अस्पताल में स्थानीय मरीज़ों के अलावा मानेसर, गुडग़ांवां, दिल्ली, नोएडा आदि तक के मरीजों की लाइन लगी रहती है। इसके नेफ्रोलॉजी विभाग में हाल ही में सेना से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए डॉ. यूके शर्मा ने यहां की दुर्दशा देख कर दांतों तले उंगली दबा ली। उन्होंने भयंकर हालात को देखते हुए संस्थान के डीन को चेतावनी देते हुए कहा कि इन हालात में कभी भी कोई भयंकर हादसा किसी भी मरीज़ के साथ हो सकता है क्योंकि कार्यभार की अधिकता के चलते स्टाफ के लोग वे तमाम सावधानियां एवं प्रक्रियाओं का पालन नहीं कर पा रहे हैं जो कि बहुत जरूरी होती हैं।

अस्पताल में बिस्तरों की कमी के चलते एक मरीज को, जिसका इलाज पहले से ही यहां चल रहा था उसे पार्क हॉस्पिटल में रैफर किया गया। जिस मरीज का इलाज कर रहे डॉक्टरों को जितना ज्ञान हो सकता है उतना पार्क के डॉक्टरों को नहीं हो सकता। जाहिर है इसका खमियाजा तो अंतत: उस मरीज को ही भुगतना होगा।

इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) जिसमें मरीज़ को गहन निगरानी में रखने की आवश्यकता होती है उसके लिए जो यहां स्टाफ रखा गया है वह केवल बीस मरीज़ों के लिए है जबकि वार्ड में बिस्तरों की संख्या 80से भी अधिक है। समझा जा सकता है कि जिन लोगों को केवल बीस मरीज़ों की निगरानी करनी थी उन्हें 80 मरीज़़ संभालने पड़ रहे हैं, जाहिर है ऐसे में वे कितनी और कैसी निगरानी कर पाते होंगे।
बीते करीब डेढ़ साल से हृदय रोगों के इलाज के लिए कैथ लैब शुरू किए जाने के बाद से यहां अनेकों हृदयरोगियों के सफल इलाज किए जा चुके हैं। अब तक करीब तीन हजार मरीजों की एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी, अनेकों मरीज़ों के हृदय वॉल्व सफलता पूर्वक बदले जा चुके हैँ। इसके बावजूद आज तक कैथ लैब के लिए न तो कोई टेक्नीशियन और न कोई पैरा मेडिकल स्टाफ उपलब्ध कराया गया है। जाहिर है इस कमी को पूरा करने के लिए अन्य वार्डों में लगे कर्मचारियों की सेवाएं ली जा रही हैं जिसके चलते वहां के मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

ऑन्कोलॉजी (कैंसर) चिकित्सा के लिए यहां मात्र 20 बेड भी जुगाड़बाज़ी से बनाए गए हैं। अब तक सैकड़ों मरीज़ स्वस्थ होकर यहां से जा चुके हैं। आज के दिन यहां 108 कैंसर मरीज लाइन में लगे हुए हैं। इन मरीजों को देखने के लिए महज एक ही डॉक्टर तैनात है जो पर्याप्त नहीं है। ऑन्कोलॉजी में बिस्तरों की कमी के चलते मेडिसिन अथवा अन्य विभागों के बिस्तरों पर भी मरीजों को कब्जा करा दिया जाता है जो एक गंभीर स्थिति का संकेत है।

ईएसआई मुख्यालय में बैठे हरामखोर कमिश्नरों की नीयत यदि थोड़ी बहुत भी काम करने की होती तो इस अस्पताल को दुर्दशा से बचाया जा सकता था! लेकिन लगता है वे तो यहां किसी भयंकर विस्फोट होने की प्रतीक्षा में हैं। उन्हें इतनी भी शर्म नहीं आती जब वे खुद अपने चहेतों एवं बड़े वीआईपी लोगों को अपने बसई दारापुर मेडिकल कॉलेज में न भेज कर फरीदाबाद भेज देते हैं, दिल्ली में स्थित तमाम ईएसआई अस्पतालों में मरीज कम हैं तो स्टाफ फालतू पड़ा है। दिल्ली में ही क्यों, पूरे हिंदुस्तान में ईएसआई अस्पताल में बेड ऑक्यूपेंसी 36 प्रतिशत से अधिक नहीं है। इसके बावजूद भी ये निकम्मे कमिश्नर लोग न तो फालतू के स्टाफ को यहां भेजते हैं और न ही नई भरती करते हैं। जाहिर है इनकी नीयत में भारी खोट है। इतना ही नहीं कोढ़ में खाज बढ़़ाने के लिए फैक्ल्टी के तबादलों का आदेश भी जारी कर दिया गया है, बेशक वह बीते दो-तीन माह से लंबित पड़ा है लेकिन फैक्ल्टी के दिमाग में एक अनिश्चितता का तनाव तो कायम है ही।

परिसर में स्थानाभाव
तीस एकड़ के भूखंड पर बने इस संस्थान को अब जगह की कमी महसूस हो रही है। बीते दो साल से छात्रावास की कमी के चलते सैकड़ों छात्रों को संस्थान से करीब बारह किलोमीटर दूर एनएचपीसी कॉलोनी में किराए के छात्रावास में रहना पड़ रहा है जिसके किराए व परिवहन पर कॉरपोरेशन का करोड़ों रुपयों के साथ साथ छात्रों का समय भी बर्बाद हो रहा है। कॉरपोरेशन के निकम्मे हरामखोर प्रशासन ने इस समस्या को हल करने के लिए नए छात्रावास बनाने की कोई योजना अभी तक तैयार नहीं की है। विदित है कि पीजी छात्रों का अस्पताल परिसर में रहना अति आवश्यक होता है क्योंकि उन्हें रात दिन वार्डों मेंं मरीजों व पढ़ाई के लिए अपने प्रोफेसरों के पास रहना पड़ता है, उनके पास दूर दराज से आने का समय नहीं होता।

करीब डेढ़ वर्ष पूर्व केंद्र सरकार ने यह फैसला किया था कि तमाम मेडिकल कॉलेजों को 1100 बिस्तरों का कर दिया जाए, उसके बावजूद इस दिशा में ईएसआई कॉरपोरेशन ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। फिलहाल जबानी चर्चा सुनने में आ रही है कि परिसर के एक भाग में जहां पुरानी इमारत खड़ी है उसे तोड़ कर नई दस मंजिला इमारत डबल बेसमेंट के साथ बनाई जाएगी। सवाल यह है कि चर्चा कब तक चलती रहेगी और धरातल पर काम कब शुरू होगा और कब पूरा होगा, कोई नहीं जानता।

यह स्थिति तो तब है जब कॉरपोरेशन के पास मज़दूरों से वसूले गए धन की कोई कमी नहीं है। अर्थात एक लाख साठ हजार करोड़ रुपया कॉरपोरेशन के खजाने में पड़ा है लेकिन मज़दूरों को सुविधा देने में इनकी जान निकलती है। पुरानी बिल्डिंग वाली जगह तो यह नई बिल्डिंग बन जाएगी लेकिन उसके बावजूद अन्य कामों के लिए जगह की बड़ी भारी कमी रहेगी। इसके लिए बीके अस्पताल की ओर तथा दशहरा ग्राउंड की ओर खाली पड़ी जमीन का कुछ भाग तो संस्थान को देने की बात तो चल रही है लेकिन उसमें कोई प्रगति होती नजर नहीं आ रही है।

स्थानीय सांसद, विधायक, मंत्री आदि की रुचि मज़दूरों के इस संस्थान की ओर केवल फटीक लेने तक की रहती है। तमाम राजनेतागण अस्पताल प्रशासन से अपने लगुए भगुओं निकम्मे कार्यकर्ताओं को नौकरी पर रखने की सिफारिश तो करेंगे लेकिन अस्पताल को दरपेश समस्याओं की ओर कभी ध्यान देने की जरूरत नही समझते। अपनी आदतों के मुताबिक ये सियासी लोग हर उल्टे सीधे काम के लिए तो संस्थान पर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं लेकिन कभी आवाज बुलंद करके राज्य अथवा केंद्र सरकार से यहां की समस्याओं का समाधान करने की बात नहीं करते। अगर इन नेताओं की जरा भी रुचि होती तो ये तुर्त फुर्त दशहरा ग्राउंड या बीके अस्पताल से लगती जमीन को इसके साथ जुड़वा सकते थे। केंद्रीय श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव को हडक़ा कर पूछ सकते थे कि उनके क्षेत्र में बने इस अस्पताल की दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेवार है? क्यों नहीं यहां पर पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध कराया जाता? क्यों नहीं समय रहते छात्रावास व अस्पताल की नई बिल्डिंग का निर्माण किया जाता? इससे सिद्ध होता है कि कहने भर को यह डबल इंजन की सरकार है करने धरने को कुछ नहीं। संदर्भवश, सुधी पाठक समझ लें कि ईएसआई कॉरपोरेशन को चलाने का पूरा खर्चा तो मजदूरों से वसूला जाता है लेकिन चलाने का दायित्व केंद्र सरकार के श्रम विभाग का है। किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि ईएसआई स्वास्थ्य सेवाओं पर केंद्र सरकार अपने पल्ले से कोई चवन्नी खर्च कर रही है बल्कि हर तरह का खर्चा मज़दूरों से वसूले गए पैसे से ही किया जाता है।

  Article "tagged" as:
  Categories:
view more articles

About Article Author

Mazdoor Morcha
Mazdoor Morcha

View More Articles