ईएसआई कॉर्पोरेशन वसूली में तगड़ी, खर्चे में पिछड़ी, ‘रेफरल’ में माहिर

ईएसआई कॉर्पोरेशन वसूली में तगड़ी, खर्चे में पिछड़ी, ‘रेफरल’ में माहिर
October 16 14:49 2023

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) हरियाणा भर के 28 लाख मज़दूरों सहित देश भर के करीब पौने चार करोड़ मज़दूरों के वेतन से चार प्रतिशत वसूलने में तो कॉर्पोरेशन तगड़ी है। इसके विपरीत, उन्हें चिकित्सा सेवाएंं प्रदान करने में नितांत पिछड़ती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप कॉर्पोरेशन के निष्क्रिय खजाने में हो रही वृद्धि का आंकड़ा एक लाख पचपन हज़ार करोड़ को पार कर चुका है।

कल्याणकारी राज्य होने का दावा करने के नाते प्रत्येक नागरिक को मुफ्त चिकित्सा सेवा देना राज्य का प्रथम कर्तव्य बनता है। इसके बावजूद औद्योगिक श्रमिकों को अधिक बेहतरीन सेवाएं देने के नाम पर ईएसआई कॉर्पोरेशन अधिनियम बनाया गया। इसके द्वारा मज़दूरों के वेतन से साढ़े छ: प्रतिशत (जिसे अब घटाकर चार प्रतिशत कर दिया गया है) वसूली का नियम बनाया गया था। इस कानून के तहत कॉर्पोरेशन ने वसूली तो जमकर की लेकिन सेवाएं देने से हमेशा कन्नी काटती रही। इसके परिणाम स्वरूप इसके खजाने में दिन दूनी-रात चौगुणी वृद्धि होती गई।

मज़दूरों से वसूले धन पर कुंडली मारे बैठा कॉर्पोरेशन बेहतरीन सेवाएं देने पर विचार करने के बदले हर समय यही सोचता रहता है कि किस प्रकार मज़दूरों को सेवाओं से वंचित करके मरने के लिये छोड़ दिया जाए। कॉर्पोरेशन के अस्पतालों में सुविधाओं के अभाव के चलते मरीजों को व्यापारिक अस्पतालों में रेफर करने का प्रावधान है। लेकिन वहां, क्योंकि कॉर्पोरेशन को मोटे-मोटे रेफरल बिलों का भुगतान करना पड़ता है, इसलिये ताजातरीन आदेश के अनुसार व्यापारिक अस्पतालों के रेफरल को रोक कर सरकारी अस्पतालों को रेफर किया जाए। इन गांठ के पूरे व आंख के अंधों से कोई यह पूछे कि सरकारी अस्पतालों में जाने का रास्ता तो अन्य लोगों की तरह बीमाकृत मज़दूरों को भी पता है। इसके लिये उनके रेफर करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि उन्हें सरकारी अस्पतालों में ही इलाज कराना है तो कॉर्पोरेशन उनसे किस बात की वसूली कर रही है?

बीते मंगलवार को स्थानीय ईएसआई मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कॉर्पोरेशन की ज़ोनल मेडिकल कमिश्नर डॉ. वनोरा ई नोमग्रम ने दौरा किया। इनके अधिकार क्षेत्र में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़ व दिल्ली आते हैं। चंडीगढ़ से चलकर आई ये मोहतरमा यह देखने आईं थीं कि यहां का रेफरल व दवाओं का लोकल परचेज़ कितना है? इन्होंने सलाह दी कि सभी मरीज़ों को व्यापारिक अस्पतालों में रेफर न करके सरकारी अस्पतालों में किया जाए। जब उन्हें बताया गया कि यहां के किसी भी सरकारी अस्पताल में आईसीयू एवं अन्य किसी भी गंभीर इलाज की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली के तमाम सरकारी अस्पतालों में कोई बेड खाली नहीं रहता, इसकी जानकारी उन्हें रहती है। ऐसे में अस्पताल प्रशासन उन्हें सरकारी में रेफर करके उनकी मौत का गुनाह अपने सिर नहीं ले सकता।

लोकल परचेज़ के बारे में उन्हें बताया गया कि कैंसर मरीज़ों के लिये उन्हें जो दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं वे रेट कॉटै्रक्ट में शामिल ही नहीं हैं। दरअसल, ये दवाइयां इतनी महंगी होती हैं कि कॉर्पोरेशन के सामने मरीज़ों की जान बहुत सस्ती होती है। इसलिये दवाओं पर खर्च करने के बजाय कैंसर मरीज़ों को मरने के लिये छोड़ देना ही बेहतर समझा जाता रहा है।
दरअसल, बदनीयत एवं जनविरोधी कॉर्पोरेशन अधिकारियों के $फरमान के मुताबिक मरीजों को पहले सरकारी अस्पतालों में रेफर किया जाए, वहां जगह न मिलने के बाद ही व्यापारिक अस्पतालों में भेजा जाए। सुधी पाठक समझ गए होंगे कि इसी रेफरबाज़ी के चक्कर में मरीज़ इलाज के अभाव में निपट जाएगा।

रेफरबाज़ी में दूसरा खेल मज़दूरों को भटकाने का खेला जाता है। मानेसर, गुडग़ांव, दिल्ली व गाजियाबाद आदि से मरीज़ों को यह जाने बगैर फरीदाबाद रेफर कर दिया जाता है कि यहां की वास्तविक स्थिति क्या है? इसके परिणामस्वरूप मरीज़ यहां से महीने दो महीने की तारीख लेकर अपना सिर धुनता हुआ चला जाता है। यदि कॉर्पोरेशन अधिकारियों को मज़दूरों से दुश्मनी न हो और उनके प्रति थोड़ी सी भी संवेदना हो तो तारीख लेने का यह खेल बड़ी आसानी से ईमेल एवं अन्य संचार माध्यमों के द्वारा भी खेला जा सकता है। इससे भी गंभीर सवाल यह उठता है कि रे$फर करने या तारीखें लेने की नौबत ही क्यों आती है, क्यों नहीं कॉर्पोरेशन अपनी सेवाओं का समुचित विस्तार करती?

कॉर्पोरेशन रेफरल रोकने की बात तो करता है लेकिन मरीजों को आवश्यक उपचार उपलब्ध कराने के लिये न तो पर्याप्त स्टाफ देकर राज़ी है और न ही अन्य तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा करता है। प्रति दिन 70-80 डायलिसिस के लिये कोई स्टाफ यहां नहीं है। केवल नौ सदस्यीय जो स्टाफ आईसीयू मरीजों के लिये हैं उसी स्टाफ से जबरन इतनी बड़ी संख्या में डायलिसिस कराये जा रहे हैं। कायदे से तो इन तमाम 70-80 मरीजों को व्यापारिक अस्पतालों में रेफर कर दिया जाए तो कॉर्पोरेशन में बैठे निकम्मे अधिकारियों को पता चल पाएगा कि रेफरल होता कैसे है और रुकता कैसे है, और इसके जिम्मेवार कौन है?

नई डिस्पेंसरियां नहीं खुलेंगी
मज़दूरों से पैसा वसूल करने के बाद कॉर्पोरेशन ने चिकित्सा सेवाओं को अपने व राज्य सरकार के बीच इस कदर उलझा कर रखा हुआ है कि पैसा देने के बावजूद भी मज़दूर को वांछित सेवाएं न मिल सकें। ईएसआई नियमों के अनुसार डिस्पेंसरियों व अस्पताल की इमारतों का निर्माण व रखरखाव तो कॉर्पोरेशन ही करेगी, उसके बाद इलाज देने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। इसके खर्च का भी 88 प्रतिशत कॉर्पोरेशन ही वहन करेगी।

पुराने नियमों के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र में ईएसआई लागू करने के लिये सरकार द्वारा नोटिफिकेशन किया जाता था। लेकिन अब वो चक्कर खत्म करके पूरा देश ही नोटि$फाई कर दिया गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि देश के हर कोने में ईएसआई कॉर्पोरेशन वसूली तो कर पा रही है लेकिन सेवाएं देने की उसे कोई आवश्यकता नहीं है। पहले नोटिफाइड एरिया होने पर ईएसआई को डिस्पेंसरी व अस्पताल की सुविधायें देनी होतीं थीं। लेकिन अब इसकी कोई आवश्यकता कॉर्पोरेशन नहीं समझता। हाल ही में जारी फरमान के अनुसार कॉर्पोरेशन ने कोई भी नई डिस्पेंसरी की इमारत बनाने अथवा किराये पर लेने से साफ मना कर दिया है। इसके चलते कोसली, फर्रुखनगर व पटौदी सहित चार डिस्पेंसरियों को चलाने की योजना फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है।

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Mazdoor Morcha
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