न्यूजीलैण्ड में हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम
न्यूजीलैण्ड की प्रधानमंत्री जेसीन्दा आर्डेरन ने कहा है कि हम लॉकडाउन से बाहर आने के बाद देश के आर्थिक हालात को सुधारने के लिये नये उपाय कर रहे हैं। एक नये सुझाव के तहत अब वहां हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम होगा और तीन दिन छुट्टी। इसके अलावा भी छुट्टियां बढाई जायेंगी। यारीददारी करेंगे जिससे देश के आर्थिक हालात सुधरेंगे। यानी लोगों को काम भी दो और कमाये हुये पैसे खर्च करने का समय भी। तभी हालात सुधरेंगे।
दूसरी तरफ भारत में अनेकों राज्य सरकारों ने काम के घण्टे बढाकर आठ से 12 कर दिये छुट्टी तो दूर रही। मज़दूर कानूनों में संशोधन करके नौकरियां छीनने का रास्ता साफ किया जा रहा है। इससे जाहिर है भारत में भूखमरी और बढ़ेगी और आर्थिक हालात भयंकर रूप से खराब हो जायेंगे। भारत सरकार का सारा जोर बड़े पूंजीपतियों के हाथ में पैसा देने का है जिनके पास पहले से ही यथेष्ट पैसा है। अरे भाई जब खरीददार के हाथ में पैसा नहीं होगा तो सामान बनाकर बेचोगे कहां। न्यूजीलैण्ड से हमें सबक लेना चाहिए।
पैसा भी आपसे ही उधार और आपसे ही ब्याज
इंग्लैण्ड की सरकार ने ऐसे बोंड जारी किये हैं जिन पर खरीददार को खुद ब्याज देना होगा। सूचना के अनुसार सरकार ने 4.6 अरब डॉलर के ऋण पत्र जारी किये हैं जिनकी अदायगी 2023 में होगी और इस पर -0.003 प्रतिशत ब्याज मिलेगा यानी कि जितने में खरीदे चार साल बाद उससे कम में वापिस बिकेंगे। कोरोना के कारण खराब हुये आर्थिक हालात में लोग किसी तरह अपनी जमा पूंजी बचाये रखने यानी कि ज्यादा घाटे में न जाने में ही गनीमत समझ रहे हैं।
शायद इसे ही कहते हैं कि भागते भूत की लंगोटी ही सही। इससे पहले तेल (क्रूड ऑयल) खरीदने में भी ऐसा ही चमत्कार हो चुका है जब तेल बेचने वाले फ्री में तेल देने के साथ 37 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से रुपये भी दे रहे थे। यानी उल्टे बांस बरेली को।
प्रियंका ने श्रमिकों के लिये बसें भेजी, योगी चैक कर रहा कागज़
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पैदल अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश लौटते श्रमिकों की मदद के लिये 1000 बसें देने की चिट्ठी लिखी थी। शनिवार को लिखी इस चिट्ठी ने योगी सरकार को सांसत में डाल दिया। उनको अनुमति दें तो, ना दें तो किरकिरी । लिहाजा कांग्रेस से बसों की लिस्ट मांगी गई। कांग्रेस ने लिस्ट दी तो योगी ने फटाफट उसमें दिये गये नम्बरों की जांच करवाई। उसमें कुछ कार व एम्बुलेंस के भी नम्बर थे। पर फिर भी 879 के करीब बसें थी जिनकी इजाजत दी जा सकती थी। लेकिन क्योंकि इजाजत नहीं देनी थी सो ड्राईवर, कण्डक्टर के लाइसेंस फोन नम्बर आदि सभी चीजें मांगी गई। जाहिर है इस सबमें टाइम लगना था, और कोई भी प्राइवेट गाड़ी इतने दिन इन्तजार क्यों करती। सो सारी बसें वापिस चली गई। मज़दूर बेचारे पैदल और ट्रकों में मर पड़ के जाते रहें।
इसे कहते हैं न मदद करूंगा न करने दूंगा। अब कहा जा रहा है कि लाखों मज़दूरों को भेजने का इन्तजाम एकदम से कैसे हो जाये। आप अपनी रेलें और बसें सामान्य रूप से और साधारण किराये अनुसार चला के तो देखिये मज़दूर तो अपने आप उनमें चले जायेंगे। पर शायद यूपी की व केन्द्र सरकार की नीयत ठीक नहीं है। ऊपर से यूपी के कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ बसों के नम्बर के मामले में फजी व झूठे दस्तावेज देने का मुकदमा बना कर उनको 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। क्या अब हिन्दू मज़दूरों की मदद करने पर भी भाजपा सरकारें मुकदमें दर्ज करेंगी।
अन्तिम मिसरा
इसे कहते हैं गुप्त दान, 20 लाख करोड़ दे भी दिये और लेने वालों को पता भी नहीं चला।