अब एक अन्य मामले में पीड़ित पुलिस को पैसे खिलाने को तैयार है, हीला हवाला क्या दिया जा रहा है कि हम धंधा करने वाले लोग हैं कोतवाली-कचहरी के पचड़े में नहीं पड़ सकते…

अब एक अन्य मामले में पीड़ित पुलिस को पैसे खिलाने को तैयार है, हीला हवाला क्या दिया जा रहा है कि हम धंधा करने वाले लोग हैं कोतवाली-कचहरी के पचड़े में नहीं पड़ सकते…
July 18 09:24 2020

कायर हर रोज जूते खाकर मरते हैं!

मजदूर मोर्चा ब्यूरो

“वी वांट जस्टिस” ऐसे नारे फैशन से अधिक कुछ नहीं लगते जब असल में जस्टिस लेने के लिए डर से आप सहम जाएँ। क्या आप जानते हैं कि आपके साथ होने वाले अन्याय का सबसे बड़ा कारण क्या है? कारण है आपका डर। देश में सभी तरह के अपराधों के लिए कानून बनाये गए और राज्य नागरिक पर हावी न हो जाए उसके लिए जनता को मूलभूत अधिकारों की शक्ति संविधान ने दी। इन अधिकारों के तहत ही आपको न्याय और राज्य की किसी भी मशीनरी से सेवाएँ प्राप्त करने का पूरा हक है। इन बातों को सिर्फ लेख की शुरुआत करने के लिए नहीं लिखा गया है, इसके पीछे है वह भाव जिसका कारण भी जनता का डर है।

भारत कॉलोनी के सब्जी वालों का मसला पिछले अंक में मजदूर मोर्चा ने छापा, उसके बावजूद उनकी समस्या का कोई समाधान फिलहाल प्रशासन ने नहीं किया। जिनकी समस्या को लिखा गया उनको डर है कि कहीं रोहताश पहलवान उनसे नाराज न हो जाए और उसकी नाराजगी के चलते कहीं प्रशासन भी उन्ही पर मुकदमा न ठोंक दे। गरीब मजदूर के आधार कार्ड तक रोहताश पहलवान ने अपने पास रखवा लिए हैं। ये सब बताते हुए एक स्थानीय दुकानदार ने बताया कि भईया हम तो डर से अखबार भी नहीं ले रहे न ही अपना आधार कार्ड मांग रहे हैं वापस।

अब उनके इस डर का क्या इलाज किया जा सकता है जिनको डरने का शौक है। कई लोगों को लगा होगा कि गरीब सब्जी वाले हैं, डरने के अलावा कर भी क्या सकते हैं। देश में फैले लाखों अंधविश्वासों में से यह भी एक अंधविश्वास ही है कि गरीब डरता है। पिछले ही अंक में मकान से जुड़ी खबर लिखने पर सम्बंधित पीडि़त यह देख कर अवाक रह गए कि कैसे कोई अखबार सरकार पर इतना मुखर हो कर बोल पा रहा है, इतना ही नहीं सेवानिवृत फौजी भाइयों की हिम्मत भी जवाब दे रही है जहाँ बात किसी नेता, मंत्री या पुलिस से जुड़ी हो। इस मध्यम वर्ग ने भी डर के मारे अपने ही मामले का आगे संज्ञान लेना ठीक नहीं समझा।

अब एक अन्य मामले में पीड़ित पुलिस को पैसे खिलाने को तैयार है, हीला हवाला क्या दिया जा रहा है कि हम धंधा करने वाले लोग हैं कोतवाली-कचहरी के पचड़े में नहीं पड़ सकते। जबकि सच है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी से लेकर रिलायंस तक धंधा ही कर रहे हैं और लार्ड क्लाइव से लेकर माउंटबेटन तक ने धन्धे के नाम पर आईपीसी और पूरे लूटशाही तंत्र को बना डाला, और यह सब उन्होंने इसी कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़-पड़ के किया। जबकि हम डरपोक जनता के तौर अपने मान-सम्मान तक को बेच आये और अपनी बुजदिली को यह कहकर छिपाते हैं कि हम धंधा करने वाले हैं। सच ही है धंधा ही है अपने मान-सम्मान तक को बेच आना।

यदि जनता को डरने का शौक न होता तो क्या सच में हिम्मत थी पुलिस, नेता, अधिकारी की जो किसी को घर से गैर कानूनी तरीके से उठा ले जाये। क्या आपका-हमारा डर शासन तंत्र के कामचोरों और लुटेरों को हमपर अत्याचार करने और कानून का मजाक बनाने की हिम्मत नहीं दे देता? यह सब तब है जबकि इस तंत्र के लोग भी आप-हम ही हैं, जवाबदेह भी हैं और किसी न किसी रूप में किसी न किसी से परेशान हैं।

हमारे देश को भूल जाने की आदत है, बावजूद इसके याद दिलाना चाहूँगा कि इसी हरियाणा में बाबा राम रहीम के खिलाफ एक निडर पत्रकार छत्रपति ने कलम उठाई और जान भी गंवाई, और जिन लड़कियों ने 15 साल हार नहीं मानी उन्हें कितने डर का सामना करना पड़ा होगा? क्या कभी सोचा इस समाज ने? जिस बाबा ने हत्या और रेप किये उसकी सुनवाई विडियो कांन्फ्रेंसिंग  के माध्यम से होती थी और पीडि़त दो लड़कियों को सिरसा से चंडीगढ़ यही प्रशासन बुलाता था वो भी जब इन्हें जान का खतरा था। ये वो निडर खून था जिसने हत्यारे और बलात्कारी को जेल पहुँचाया। इनपर कभी कविता लिखी जाएगी क्या इस देश में?

वीर रस के इतिहास में डूबे भारत की गाथाओं पर शक होने लगता है जब ऐसी डरपोक जनता को बिना गलती किये एक अदने सिपाही को पैसे पकड़ाते हुए भी देखा जाए।

सिर्फ राजाओं के इतिहास से पटा भारत का वीर रस जनता के इसी डर के कारण एकतरफा सा जान पड़ता है। क्या हम जानते हैं कि हमारी इसी कमजोरी का राज्य फायदा न उठा ले उसके लिए हमे लिखित रूप में मूलभूत अधिकार संविधान में दिए गए।

अब जब इतना मिलने के बाद भी हमे डरने का शौक है तो लोकतंत्र और अन्याय का रोना अब बंद कर देना चाहिए।

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Mazdoor Morcha
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